Sunday, March 25, 2012

मुट्ठी भर हवा

मुझे भरोसा था, तब भी और अब भी, कि मैं हवा को हाथों से पकड़ सकता हूँ. कई सालों से मैंने कोई कोशिश नहीं की, मगर फिर भी बचपन के उस भरोसे को नकारना नामुमकिन है. बचपन का हर भरोसा आज भी उतना ही पुख्ता लगता है, जिसे नकारने की बात सोचना भी गुनाह से कम नहीं, और उस भरोसे को साबित करने की चेष्टा भी किसी मूर्खता से कम नहीं. किसी यूनिवर्सल ट्रुथ की तरह, जो बिना सिद्ध किये ही जैसा है वैसा ही रहेगा, टाइप.

बचपन के भरोसे का भी कोई भरोसा नहीं, हर किसी बात पर यकीन हो जाता है. घर के पास वाले उस नदी में एक लंबे दांतों वाला राक्षस रहता है, किसी ने कह दिया और यकीन हो चला, ना कोई सवाल ना कुछ और, सीधा विश्वास. दादी-नानी कि कहानियों में रहने वाले हर एक पात्र पर भरोसा, चिड़िया, बाघ, शेर-चीतों से लेकर राजा-रानी और परियों पर भी. रात के अंधेरों में आने वाले भूत पर भी जो नहीं सोने वालों को खा जाता था. मयूर पंख को चूना या चौक खिलाने से वो बड़ा होता है.

मैं मुट्ठी बंद करता था, और महसूस करता था, हवा की छटपटाहट. मानो हवा का दम घुट रहा हो, वह बस किसी भी हाल में निकल भागने को बेक़रार हो, किसी उम्र कैद की सजा पाए कैदी के मानिंद. मगर बच्चे कि मुट्ठी में बंद सपनों की माफिक उस बच्चे से पीछा छुडा पाना बेहद कठिन होता. बच्चे के सपनों का क्या! वो तो हर पल बदलता है. कुछ ऐसी ही सोच में हवा भी रहती हो शायद. मगर बच्चे का क्या, गर गलती से मुट्ठी खुल भी जाती तुरत वह दूसरी मुट्ठी में हवा धर लेता.

मुझे पता है कि मैं आज भी अपनी मुट्ठी बंद करूँगा तो हवा वैसे ही छटपटाएगी, बेआवाज अनुनय-विनय भी करेगी जैसे बरसों पहले करती थी. मगर फिर भी मैं मुट्ठी में हवा बंद नहीं करता. डरता हूँ, कहीं वैसा अब नहीं हुआ तो? कुछ भरोसों को शायद नहीं ही टूटना चाहिए, भले ही वह भरोसा महज एक झूठ ही हो! भरोसा भी आखिर भरोसा होता है, उसमे शक की कोई गुंजाईश नहीं होती है!!!!!

10 comments:

  1. बिल्कुल सहमत, भरोसा कभी टूटना नहीं चाहिये ।

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  2. आपको हो न हो, मुझे पूरा विश्वास है कि आप हवा को हाथों में बाँध सकते हैं।

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  3. ये अपने आप पर भरोसा है। यही तो जीवन में सब दुष्कर काम करवा डालता है।

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  4. काश बचपन कि हर एक बात सच होती है और हर बार सच्चाई कि जीत होती ... चाहे वो प्यार हो या दादी नानी कि बातें ;) ;)

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  5. Hmm bachpan k bharose kabhi nahi toota karte.. jaise hichki aane pe koi yaad kar raha hoga... lekin kuchh log aapke bharose, aapki manyatao ki buniyadein hilane k lie zindagi me aate hain ...

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  6. बहुत सुन्दर....
    नासमझी बहुत बड़ा वरदान है...
    अक्ल ज्यादा तो भरोसा कम.....

    आपके लेखन से बेहद प्रभावित हुई...

    सादर.

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  7. भरोसा इसलिए नहीं टूटा क्योंकि तुम्हारे अंदर का बच्चा अब भी अपनी मौजूदगी बचाए हुए है. हम सभी के अंदर बचपन जिंदा रहना चाहिए, जिंदादिली से जीने के लिए.

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  8. बच्चों के नन्हें हाथों को चाँद सितारे छूने दो
    चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे

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  9. बहुत खूब ... सच है भरोसे का भरम रहना चाहिए ... नहीं जो जीवन टूट जाता है कभी कभी ... गहरा एहसास ...

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  10. यही तो अंतर है बचपन और अब में पी डी भाई!!!
    अब हम हर चीज़ में लोजिक ढूढने लगते हैं |

    बहुत कुछ याद दिला दिया यार कहानियों की बातें करके !!!!!

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