Sunday, November 06, 2011

कहाँ जाईयेगा सsर? - भाग ३

दिनांक २३-११-२०११

सबसे पहले - मैंने गिने-चुने लोगों को ही बताया था कि मैं घर, पटना जा रहा हूँ.. घर वालों के लिए पूरी तरह सरप्राईज विजिट.. अब आगे -

मेरे ठीक बगल में एक लड़का, जिसकी दाढ़ी के बाल भी अभी ठीक से नहीं निकले थे, बैठा हुआ था.. वो काफी देर से मेरे DELL Streak को बालसुलभता से देख रहा था.. मगर बात नहीं कर रहा था.. अजनबियों से बात ना करने की सीख सबसे अधिक फ्लाईट में ही निभाई जाती है, जिसकी वजह से ही मुझे फ्लाईट की यात्रा सबसे उबाऊ यात्रा लगती है.. खैर, मैं ही बात शुरू की, और बात शुरू होने पर सबसे पहले उसने मेरे मोबाईल के बारे में ही पूछा.. बात आगे बढ़ने पर पता चला की वह दिल्ली के किसी स्कूल में बारहवीं का छात्र है और दिवाली कि छुट्टियाँ मनाने बिहारसरीफ जा रहा है.. मैंने आश्चर्य से पूछा की इतनी रात गए तुम पटना से बिहारसरीफ कैसे जाओगे तो उसने बताया की मम्मी आई हुई है उसे लेने के लिए.. उस वक्त मैं सोच रहा था कि 16-17 साल का यह लड़का दिल्ली से पटना कि यात्रा फ्लाईट से पूरी कर रहा है, और वह भी दिवाली के वक्त जब दिल्ली से पटना की फ्लाईट दस हजार से ऊपर चल रही है.. अधिक वक्त नहीं बीता है, बामुश्किल दस-पन्द्रह साल.. मगर हमारे समय में मैंने अपने किसी भी मित्र को थर्ड एसी में भी यात्रा करते नहीं देखा था उस उम्र तक..

किन्ही वजहों से फ्लाईट कुछ देर हो चुकी थी और शायद रनवे खाली ना होने के कारण से लगभग आधे घंटे और तक रात के समय पटना देखने का मौका मिलता रहा.. कुछ देर में ही पटना में फ्लाईट लैंड कर चुकी थी.. मैं अपना सामान लेकर बाहर निकल रहा था तभी अभिषेक का फोन आया, मैं उससे बाते करते हुए बाहर आया और सारे टैक्सी-ऑटो वाले मेरे कानों के पास आकर चिल्लाने लगे "कहाँ चलिएगा सsर?" पहली बार उन्हें इशारों से बताया की रुको, अभी फोन पर बात कर रहा हूँ.. वे चुप नहीं हुए तब दुबारा बताया.. फिर भी वे चुप नहीं हुए तो खीज कर अभिषेक को होल्ड पर रख कर लगभग उन पर चिल्लाने ही जा रहा था कि अंतरआत्मा से आवाज आई "शांत गदाधारी भीम, शांत" और उनसे पूछा, "पहले फोन पर बात तो खत्म करने दो दोस्त".. वे भी एक अच्छे दोस्त की तरह बात एक बार में ही मान गए.. :)

अभिषेक से बात करके मूड फ्रेश हो चुका था.. अब उन ऑटो-टैक्सी वालों से बात करने की बारी थी..
- कहाँ जाईयेगा सsर? चलिए ना टैक्सी में ले जायेंगे..
- नहीं-नहीं.. टैक्सी नहीं, ऑटो नहीं है क्या?

यह सुनते ही दो बंदे बीच में कूद पड़े और पहला वाला निराश हो कर दूसरे ग्राहक की तलाश में निकल लिया..
- हाँ हाँ, चलिए ना..
- तुम क्या ले जाओगे, सsर हमरे साथ चलेंगे.. कहाँ जाईयेगा?
- लाल बाबू मार्केट, शास्त्रीनगर..
- चलिए ना..
"चलिए ना"
बोलकर मेरा सामान पकड़ने लगा.. मैंने रोककर पूछा "कितना लोगे?" और साथ ही इस शहर से अनजान बनने का नाटक करते हुए अगला सवाल भी रख दिया "कितनी दूर है? जादे है का?"
- साढ़े तीन सौ..
उसका कहना था और मेरी हंसी छूट गई..
- साढ़े तीन किलोमीटर का साढ़े तीन सौ..
- सsर, जब जानते हैं त काहे पूछते हैं?

झेंपते हुए वो बोला.. खैर, खूब मोल-मोलाई(मोल-भाव) हुआ और पचास रूपया में वह तैयार हो गया.. :)

10 comments:

  1. हा हा टैक्सी वाले तो बस विनोद कर रहे थे।

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  2. रक्सा पकडना था जी.

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  3. Bole to.. ishtyle h likhne ka... :)

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  4. उस वक्त मैं सोच रहा था कि 16-17 साल का यह लड़का दिल्ली से पटना कि यात्रा फ्लाईट से पूरी कर रहा है, और वह भी दिवाली के वक्त जब दिल्ली से पटना की फ्लाईट दस हजार से ऊपर चल रही है.. अधिक वक्त नहीं बीता है, बामुश्किल दस-पन्द्रह साल.. मगर हमारे समय में मैंने अपने किसी भी मित्र को थर्ड एसी में भी यात्रा करते नहीं देखा था उस उम्र तक..


    kyaa vishwaas karogae mae tumko aur tumhari yatra aur yatra kae dauraan blog ko lae kar yahi soch rahee thee ki duniya kitni badal gayee haen

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  5. सही है! अब आगे का इंतजार है! :)

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  6. अजनबियों से बात ना करने की सीख सबसे अधिक फ्लाईट में ही निभाई जाती है, जिसकी वजह से ही मुझे फ्लाईट की यात्रा सबसे उबाऊ यात्रा लगती है..

    सटीक बात कही है आपने...

    नीरज

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  7. रोचक श्रृंखला लगती है।

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  8. ५० रुपया भी जादे ही है थोडा देर और खींचते तो तीसो में ले जाता :)

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  9. एक ठो अगला पार्ट भी लिख डालो बे :)

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