इस इन्तजार में कि शायद तुम उस रास्ते से गुजरो अपनी उसी काली छतरी के साथ..
मैं उन रास्तों पे चलना चाहता हूँ,
इस यकीन के साथ के कि कल तुम यही से गुजरी थी..
और कल फिर गुजरोगी,
उसी नीले कपड़े में या शायद गुलाबी..
मैं वह पहाड़ हो जाना चाहता हूँ,
इस विश्वास के साथ के कभी
तुम जरूर अपनी उन छुट्टियों को जाया करने
यहाँ मुझसे मिलने जरूर आओगी..
मैं वह पहाड़ी नदी हो जाना चाहता हूँ,
इस उम्मीद के साथ के तुम
इसकी कल-कल सुनते हुए अपने नंगे पाँव इसमें रख कर
अपनी थकान जरूर भूल जाओगी..
मैं वह छोटा बच्चा हो जाना चाहता हूँ,
जिसे देख तुम मुस्कुरा उठो
थोड़ी देर के लिए खेलते हुए अपने गम भूल जाओ..
मैं वह हवाई जहाज हो जाना चाहता हूँ,
जिसे देखते हुए तुम सर ऊंचा करती हो..
वह ऊंचा सर,
गर्व सा ऊंचा सर सा ही कुछ दीखता है..
मैं वह तन्हा शहर हो जाना चाहता हूँ,
जिसमें भटकते हुए तुम्हे मंजिल ना मिले,
वह भटकाव अनंत हो ताकि अनंत समय तक तुम मुझमें रहो..
मैं वह मुस्कान बन जाना चाहता हूँ,
जो तुम्हारे होठों से हमेशा लगा रहे,
तुम्हारा ही एक हिस्सा बन कर..
तुम मुस्कुराओ तो मैं भी मुस्कुरा सकूँ..
मैं वह छोटा तुलसी पौधा हो जाना चाहता हूँ,
जिसे सींचते हुए एक नमी मेरे-तुम्हारे बीच हमेशा बनी रहे..
एक पवित्र बंधन जैसा ही..
मैं वह किताब हो जाना चाहता हूँ,
जिसकी कहानियां तुम रोज रात पढते-पढते सो जाया करती हो,
अपने सीने पर रखकर और उनके पात्र बनकर
मैं तुम्हारे ख्वाबगाह में बेखटक भटकना चाहता हूँ..
मैं बस तुम में हो जाना चाहता हूँ, कि कभी तुमसे जुदा ना हो पाऊं..
aur main computer virus ban jana chahti hun...... abhi ke abhi ..... taaki tumhara blog sab kha jaoun...... yummy yummy yummyyyyy......
ReplyDeleteDear Prashant ,
ReplyDeleteitna gahara dard ,
post to bahut hi achhi hai , but , isko padkar , pata nahi kyoun maan dukhee ho gaya .
har line bejod hai .
ताकि अनंत समय तक तुम मुझमें रहो..
तुम मुस्कुराओ तो मैं भी मुस्कुरा सकूँ
एक पवित्र बंधन जैसा ही
मैं बस तुम में हो जाना चाहता हूँ, कि कभी तुमसे जुदा ना हो पाऊं..
Regards--
Gaurav Srivastava
क्या-क्या हो जाना चाहता है बालक! :)
ReplyDeleteइतना कुछ हो जाना चाहते हो भाई!!!
ReplyDeleteख्याल अच्छा है...
hrudaysparshi kavita ....badhai
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी पंक्तियाँ..... मन भावों को सच्चाई के साथ लिखा.....
ReplyDeleteख़याल तो अति उत्तम हैं...वैसे इसके अलावा और भी बहुत कुछ बनने की संभावनाएं हैं!
ReplyDeleteयह सब, वह सब होने में अपना होना ना भूल जाना.
ReplyDeleteपता नहीं क्यों इस कविता को पढने के बाद मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है.
ReplyDeletevery touching and impressive write up !!
ReplyDeleteभगवान तुम्हारी मुराद पूरी करे भाई.:)
ReplyDeleteबेहतरीन ख़याल है वैसे.
बहुत ही सुंदर, धन्यवाद
ReplyDeleteहज़ारों ख्वाहिशें ऐसी....
ReplyDeletekhavihishen..........
ReplyDeletehajaron khavhishen kaese puri hongi.....
vaese dil sala khvahishon ka karkhana hi to hai...jab dekho tab ak na ak dimand kiye rahta hai.....
is kavita ko likhte likhte tum tum na rahe.. afsos.... tum koi aur ho gaye Prashant :)
ReplyDeleteमैं बस तुम में हो जाना चाहता हूँ,
ReplyDeleteकि कभी तुमसे जुदा ना हो पाऊं..
आखिर में आ ही गए मूल बात पर |
अपनी असली औकात पर ||
गोल-गोल घुमाने की जरुरत क्या--
इसीलिए तो गुस्सा आता है इस मर्दजात पर ||
भगवान् करे ---
कभी जुदा ना हो
जिओ!!!!!
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