Sunday, March 28, 2010

क्या हम खुद को गलत मानने कि हद तक मैच्योर हैं?

११ मार्च को आखिरी दफ़े कुछ लिखा था यहाँ.. १५ दिन से ऊपर गुजर गए हैं यहाँ कुछ भी लिखे हुए.. मैं कभी भी इस मुगालते में नहीं रहा कि लोग मुझे पढ़ने को बेचैन हैं और मुझे अपने पाठकों के लिए कुछ लिखना चाहिए.. मुझे पता है कि लोगों कि यादाश्त बहुत कमजोर होती है और जो सामने उन्हें दिखता है बस उसे ही याद करती है.. बाकी बाते तो इतिहास के पन्नों में छिप जाया करती है.. अच्छे-अच्छे लेखक को भी लोग भूल जाया करते हैं, मैं तो लेखक भी नहीं हूँ..

कई लोग हैं जो मुझसे यह बात पूछ चुके हैं कि तुम कुछ लिख क्यों नहीं रहे हो? कुछ फोन पर, कुछ चैट पर और कुछ ई-पत्र के जरिये.. मैं अच्छे से जानता हूँ कि इसका कारण मेरा लिखा पढ़ने कि इच्छा के बदले उनको यह जानने कि उत्सुकता है कि मैं कभी भी इतने अंतराल तक अपने ब्लॉग को खाली नहीं छोड़ा करता हूँ.. आज भी कुछ बकवास ही लिख कर जा रहा हूँ..

चलिए मैं बता ही देता हूँ कि इन दिनों क्या किया?

इन दिनों खूब पढ़ा हूँ, जिसमे कंप्यूटर कि किताबों से लेकर साहित्य और दर्शन तक शामिल है.. अभी भी कई किताबें बची हुई है जो समयाभाव में मेरी राह तक रही हैं.. अपने स्वाभानुसार खूब सोचा भी हूँ, जिसमे इन साहित्य और दर्शन से लेकर अपने जीवन और भविष्य से संबंधित बाते भी हैं.. कई नए अनुभव भी मिले हैं इन पन्द्रह दिनों में ही जो शायद जीवन में तब तक काम आयें जब तक उसे गलत साबित करने वाले नए तथ्य सामने ना आ जाये..

काफी कुछ लिखा भी हूँ.. मगर सिर्फ और सिर्फ अपने लिए.. किसी और को उस जगह झाँकने नहीं देना चाहता हूँ.. क्योंकि मेरा मानना है कि हिंदी ब्लॉग जगत अभी तक उतना मैच्योर नहीं है कि उसे हजम कर सके.. लोग यहाँ चार-पांच साल पुराने लिंक को भी संभाल कर रखते हैं जिससे समय आने पर सामने वाले पर कीचड़ उछाला जा सके.. सामने वाले को नंगा कर खुद को सभ्रांत लोगों में शुमार दिखना चाहते हैं.. कुछ कुछ यही हाल मैं समाज के बारे में भी कहूँगा.. समाज के लोग तिलमिला उठते हैं ऐसी बाते सुनकर.. अपनी भ्रांतियों को टूटते देखना उनकी आदत में नहीं है.. कुछ लोग जल्दी और कुछ देर से मगर तिलमिलाते सभी हैं, और उसपर भी अगर बात सच्ची हो और उसे काटने का कोई तर्क उन्हें नहीं दिखे तो उसे अश्लील या वल्गर कहकर ख़ारिज कर देना चाहते हैं..(सनद रहे कि मैं भी इसी समाज और हिंदी ब्लॉग जगत ही ही बासिन्दा हूँ.. सो यह सब मुझपर भी लागू होता है..)

सभी कुछ लिखता हूँ अपनी वेब डायरी में.. एक ऐसे ब्लॉग पर जो मेरा नितांत निजी ब्लॉग है और उसपर मेरे अलावा किसी और को भटकने का अधिकार मैंने नहीं दिया है.. कुछ ख़्वाब ख्यालात कि बाते भी हैं उस पर, कुछ रूमानी बाते भी और कुछ समाज, दोस्ती और रिश्तों कि बाते भी.. कुछ बाते मैंने अपने कुछ मित्रों से भी कि उन विषयों पर जिन पर मैंने वहाँ लिख छोड़ा है, मगर उनके शब्द या व्यवहार फिर से बिना किसी तर्क के उसे ख़ारिज करने पर ही लगा हुआ था.. हो सकता है कि कभी मैं खुद ही उन्हें खारिज कर दूं, और बिना किसी गवाह या सबूत के उसे डिलीट होने का सजा भी सुना दूँ..

फिलहाल जिन किताबों को पढ़ रहा हूँ उसका चित्र मैं यहाँ लगा रहा हूँ.. जिन्हें जल कर ख़ाक होना है वह हो जाए और जिन्हें यह सोचकर गर्व करने का मौका मिल जाए कि "हुंह, यह सब तो मैंने दस साल पहले ही पढ़ रखे हैं" तो वे गर्वित भी हो सकते हैं..



कुछ अंग्रेजी कि पुस्तके भी हैं, जिनकी तस्वीर यहाँ नहीं लगा रहा हूँ, जिनमे प्रमुख रूप से रोबिन शर्मा कि किताबें शामिल है..

फुटकर नोट : कभी कभी लगता है वे मनुष्य जो सबसे अधिक अनैतिक होते हैं, नैतिकता का सबसे बड़ा लेक्चर उन्ही के पास होता है..

33 comments:

  1. भाई आप लेखक चाहे अच्छे हो या न हो ( वैसे हमारी सोच में तो अच्छे ही हो ) पर पाठक बहुत जबरदस्त हो !

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  2. ढेर फिलोसफी बतिया रहे हो...सब ठीक है न? अच्छा लगता है जब भाग दौड की जिंदगी में कुछ पल अपने लिए मिल जाते हैं. उसमें सोचो, किताबें पढ़ो, दोस्तों से गप्पें मारो...ये कुछ पल सोच कर बड़ा अच्छा लगता है बाद में.
    तुमने भी लगता है काफी कुछ जुटा लिया है अपने लिए इन दिनों.

    और किताब की फोटो लगाने का आईडिया मेरे ब्लॉग से उठाया...चोर!

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  3. एक अच्छे सोच की अच्छी प्रस्तुति। बेहतर लेखन के लिए लिए लगातार पढ़ना भी एक जरूरी है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. कुछ अच्छा लिखने के लिए बहुत पढना जरूरी है। फिर खुद को गलत मानने की हद तक मैच्योर भी हुआ जा सकता है।

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  5. पढ लो बिटवा सब पढ लो ..एक दू बरस और है उसके बाद जौन कितबा सब का फ़ोटो लगाओगे न उ सब का हम पहिले से ही खींच कर रखे हैं

    आईए सीखें भोजन बनाना ...अपने लिए भी और अपनी .....के लिए भी

    बच्चों के एक हज़ार एक नाम

    कैसे बचाएं पैसे ...किताब को खा पी के हजम भी कर जाओ तो बचा कर दिखाओ पैसे..

    पूरा लिस्ट है ..भिजवाते हैं मेल से ....तब तकले पढे जो ..गिरमिटिया

    अजय कुमार झा

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  6. चोर!! :)
    अच्छा लेखन क्या होता है?

    आप धीरे धीरे ये मकाम हासिल करते है.. शुरुआत तो वही नीव से होती है न, ताजमहल तो बाद मे बनते है.. और तुम एक बहुत अच्छे ब्लागर हो.. ब्लागर एक साहित्यकार हो जरूरी तो नही.. ब्लागर तो एक आम आदमी है जो वेब २.० को अपने ढन्ग से यूज करता है..

    मुझे एक बात पता है कि तुम एक बहुत अच्छे इन्सान हो.. वही बहुत है..
    बाकी हम तो ठहरे बैड मैन.. अभी अभी तुम्हारा फ़ीड काउन्ट देखा... :( :(

    ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से.. :)

    keep rocking!!

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  7. ब्लॉगर एक अच्छा लेखक हो जरुरी तो नहीं, पर हाँ अगर बिना लाग लपेट के लिखा जाये तो शायद अच्छा ब्लॉगर होता है, पर फ़िर भी हमें तुमसे जलन तो है, सोचते हैं कि कितना तेज दिमाग चलता है कि कित्ते सारे लेख पढ़ लेता है बंदा और केवल अच्छे लेख ही पढ़ता है और साथ में शेयर भी कर देता है, "वाट टाईप ओफ़ माईंड ही हैज"।

    वैसे तुमसे मिलकर कभी लगा ही नहीं कि पहली बार मिले हैं, और जो सुख आजकल आप ले रहे हैं, बहुत ही किस्मतवालों को मिलता है।

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  8. वाह किताबें पढने में लगे हो जी, बहुत अच्छे। किताबे ही सच्ची साथी होती है। लगे रहो। और हाँ अगर ई बुक हो कुछ तो भेजना भाई। और हाँ एक आईडिया पूजा जी के यहाँ से प्रंशात जी से होते हुए मेरे पास आया है। कह कर चोरी करने में कितना मजा आता है ना।

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  9. जब लगे कि शब्द आकार नहीं ले रहे हैं, सिमट लीजिये अपने आकारों में । कुछ पुस्तकें, कुछ व्यक्तित्व, सड़कों पर लम्बी, अकेली पैदल यात्रायें, दुकानदार से स्वास्थ्य और बच्चों के बारे में बातें,भिखारी से दिनभर की कमाई के बारे में प्रश्न, कैरोके में दिनभर गलाफाड़ गान । देखिये न, कितनी बड़ी है दुनिया ।

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  10. इतनी किताबें एक साथ ! मेरे मुंह में तो पानी आ गया...काश हमारी भी एसी किस्मत होती.

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  11. मैंने सिर्फ़ पहला गिरमिटिया पढ़ी है, वो भी सात-आठ साल पहले. ये कोई अच्छी बात थोड़े ही है कि इतनी अच्छी-अच्छी किताबें दिखाकर जलाओ.bad boy !!!
    और हाँ मैं भी ये मानती हूँ को ब्लॉगर कोई अच्छा साहित्यकार हो, ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं. अगर सिर्फ़ साहित्यकार ही होते ब्लॉग जगत में तो मैंने अपना ब्लॉग शुरू ही नहीं किया होता. पूरे एक साल ब्लॉग पढ़कर तब पिछले साल शुरू किया. मैं तो अपने आप को लेखिका भी नहीं मानती, तो क्या करूँ ? just forget all the things and enjoy reading.

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  12. फुटकर नोट : कभी कभी लगता है वे मनुष्य जो सबसे अधिक अनैतिक होते हैं, नैतिकता का सबसे बड़ा लेक्चर उन्ही के पास होता है..
    वह क्या जुमला मारा है पी डी ,सहमत !
    किताबे आकर्षक है -कुछ पढ़ी भी हुयी मगर बस
    दिखाकर नहिये रह जाईयेगा -कुछ बताईयेगा भी एक एक कर

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  13. अपना फुटकर नोट : कभी कभी लगता है ये डायलोग जिन पर एप्लाय होता है वही लोग इसकी तारीफ़ भी करते है.. नहीं क्या?

    वैसे जो सामने दीख्ता है उससे बेखबर.. मैं भटकते हुए कुछ भी पढ़ लेता हूँ.. देखो ना भटकते भटकते यहाँ तक पहुच गया..!

    जानते हो..मैं गर्वित नहीं हो रहा कि मैंने इन्हें दस साल पहले पढ़ा है.. इन फैक्ट मैंने तो इन्हें कभी पढ़ा ही नहीं.. और जल भी नहीं रहा हूँ क्योंकि ऐसी कोई इच्छा अभी जागी भी नहीं है.. अब बताओ मुझ जैसी तीसरी दुनिया के लोगो के लिए क्या कहोगे तुम.. ?

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  14. ई त बड़ा गड़बड़ मामला है, भाई !
    हमको पत्तै नहीं था की ईहाँ अपनी पढ़ी कीताब सब भे देखाना पड़ता है ?
    अउर एकाँतवास में ई सबका हम तेसरका रीभिजन करते जा रहें है, हैं न हम बुड़बक ?

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  15. मैंने इनमें से एक भी क़िताब नहीं पढ़ी।
    ब्लागर का लेखक होना ज़रुरी नहीं। उसके पास कहने को कुछ है और अपनी बात ठीक से लोगों तक पहुंचा पा रहा है, इतना ही काफ़ी है।
    ख़ुदको ग़लत मानने की हद तक मैच्योर होने के लिए पहले तो वही क्रूर और निष्पक्ष दृष्टि और विश्लेषण-क्षमता अपने प्रति भी चाहिए जो हम दूसरों के प्रति रखते हैं। उसके बाद एक अपेक्षाकृत उदार समाज या कम से कम मित्र-मंडली तो चाहिए ही। अन्यथा तो होता यही है आप अपनी एक ग़लती स्वीकार करते हैं तो दूसरे अपनी भी दस आप पर लाद देते हैं।
    यह अपने और दूसरों के अनुभव से कह रहा हूं।

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  16. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि लोग समझ रहे हैं कि "मैं खुद के लेखन को साहित्यिक दृष्टि से अच्छा ना समझ कर किसी ग्रंथि से ग्रस्त हूँ".. कम से कम मुझे लोगों के कमेन्ट से तो यही आभास हो रहा है.. मैं बता दूँ, कि ऐसा बिलकुल नहीं है.. हर किसी का अपना क्षेत्र होता है.. मैं कभी भी हीन भावना से तब ग्रस्त होता हूँ जब कोई प्रोग्राम मुझसे नहीं बनता है.. इस क्षेत्र में हीन भावना से ग्रसित होने का भी अधिकार उन्हें ही है जिनका व्यवसाय लेखन है.. :)

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  17. मुझे आपसे जलन हो रही है.....काश कभी इतना वक्त मिले की मैं भी इतनी किताबें पढ़ सकूं! बहरहाल आपने अपने समय का अच्छा उपयोग किया!

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  18. लेनिन नहीं पढ़ी है ...रेणू का फेन हूँ ...ओर मैला आंचल मेरी फेवरेट है .एक कारण ये भी के हीरो डॉ है ...किताबे सबसे शानदार चीज है ....तुमने" मोटरसाइक्लिस्ट की डायरी "पिक्चर देखी है ......देख लेना .

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  19. अनुराग सर, मैंने मैला आँचल नहीं पढ़ी है मगर पढ़ने का इच्छुक हूँ और रेणू जी का फैन भी हूँ.. आपने डा. कि बात तो कि मगर उनका नाम नहीं लिया.. नहीं पढते हुए भी मुझे पता है कि उनका नाम प्रशान्त ही है उसमे.. :-)

    जानना चाहते है कि मुझे क्यों पता है? मेरे पापाजी को उस कैरेक्टर ने इतना प्रभावित किया था कि वह आठवीं कक्षा में ही अपने बेटे का नाम प्रशान्त रखने का सोच लिए थे.. सोचे तो थे कि बेटे को डा. बनाऊंगा, मगर यह नालायक साफ्टवेयर कि बीमारी ठीक करने में लगा हुआ है.. (-:

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  20. क्या गलत और मैं? ऐसा सोचने की गलती मैं कर ही नहीं सकती। :D
    बढ़िया पढ़ रहे हो। थोड़ी सी ईर्ष्या तो अपेक्षित है ना!
    घुघूती बासूती

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  21. मैं भी आजकल पढ़ रहा हूँ किताबें, इतनी जमा हो गयी हैं कि लगता है ख़त्म ही नहीं होंगी. कौन कमबख्त कहता है की परेशान हो? मुझे तो नहीं लगते :)

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  22. मोटरसाइक्लिस्ट की डायरी "पिक्चर देखी है ??

    nahee dekhi, to yahan dekh lo :)
    http://pupadhyay.blogspot.com/2009/08/blog-post_02.html

    (hum bhi apne aap ko chota blogger hi consider kar rahe hain..chote bane rahne mein bahut fayde hain yaar!!)

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  23. हाय..! मैने एक भी नही पढ़ी इनमे से :( हो सकता है अमृता प्रीतम की कुछ कहानियाँ पढ़ी हो ...!

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  24. मोटरसाईकिल डायरी मैंने डाउनलोड तो कि थी मगर देखी नहीं है अभी तक.. उम्मीद है कि जल्द ही इन किताबों को पढ़ने के बाद सिनेमाओं पर टूट पडूंगा.. फिलहाल तो LSD, इश्किया, वेल डन अब्बा और अतिथि तुम कब जाओगे कतार में है.. अब मोटरसाईकिल डायरी भी जुड गई है.. :)

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  25. कंचन दीदी, वह अमृता प्रीतम कि कविताओं का संकलन है.. कहानियों का नहीं.. :)

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  26. अभिषेक भाई, हाँ परेशान तो नहीं हूँ.. बस अपने हालत से खुश भी नहीं हूँ.. :)

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  27. यहाँ आने और मुझसे इर्ष्या करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.. :)

    कुश, तुम तो हो ही अजूबे इस दुनिया के.. तो और क्या उम्मीद करें? ;)

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  28. वल्लाह ये साफ़गोई...

    ओरकुट पे ये फुट-नोट देखकर मुस्कुराया था और "अब मुझे कोई इंतजार कहाँ’ सुना कर तुमने सेंटी कर दिया लड़के। मोना सत्तर एम एम पे देखी थी ये फ़िल्म और इस गाने ने ग़ज़ब ढ़ंग से छुआ है।

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  29. गौतम भैया - और मोना में साथ में भाभी भी रही होंगी, तभी तो सेंटी गाना सुन कर सेंटिया गए.. है ना भैया? :)

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  30. हम्म्म्म...ठीक पकड़ा। वैसे तेरी भाभी ने हैलो भेजा है तुम्हें!

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  31. अभी तक पूजाजी के बयान पर कुछ नहीं कहा गया। मतलब जो उन्होंने कहा वो सच है! चोर! :)

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  32. @ अनूप जी - वह तो हम चिटठा चर्चा में कह ही आये हैं.. जिन्हें पढ़ना हो उनके लिए लिंक यह रहा.. :)

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  33. यह भी सही है कि हम जो अध्ययन करें वह औरों के साथ शेयर करें । मेरा मानना है कि लिखने के लिये पढ़ना बहुत ज़रूरी है ।

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