Thursday, March 11, 2010

बाथ टब कि कहानी


"पछान्त मामू, आपके पास टब है?" उसके अजीब सवालों में एक और सवाल शामिल था अभी.. मुझे समझ में नहीं आया कि अचानक से साईकिल चलाते हुए वह टब या यूं कहें कि बाथ टब पर कैसे आ गई.. मैंने भी उसके बालमन को दिलासा देते हुये "हां" कह दिया..

"कितना बड़ा है आपका वाला टब?" अगला सवाल.. मुझे घर में घुसे हुये बस दो-तीन घंटे ही हुये थे, सो अभी तक मेरा धैर्य उसके सवालों का जवाब देते हुये चूका नहीं था.. फिर भी मुझे समझ में नहीं आया कि क्या कहूँ, कि कितना बड़ा है? उसी ने समझाते हुए पूछा, "वन है या हन्ड्रेड?" मैंने पूछा "वन और हन्ड्रेड क्या होता है?"

मेरे नासमझ से सवाल ने उसे हंसा दिया.. मन ही मन सोची होगी कि मामू इत्ते बड़े हो गए हैं फिर भी कित्ते बुद्धू हैं.. "वन मतलब थोडा सा, और हन्ड्रेड मतलब सबसे बड़ा.." बोलते हुए वह अपने छोटे से हाथ को जितना फैला सकती थी, फैला लिया.. अब जबकि सारा मामला साफ़ था तब भला कोई खुद को कम क्यों बताये? मैंने भी हन्ड्रेड ही बताया..

"आप मुझे नहाने दोगे?"
"नहीं."
"मैं अच्छी लड़की हूँ.. बदमाशी भी नहीं करती हूँ.."
"अच्छा! क्या-क्या बदमाशी नहीं करती हो? पहले ये बताओ फिर हम बताएँगे कि तुमको नहाने देंगे कि नहीं."
"मैं जो हूँ न.. मैं जो हूँ न.." सोचते हुए थोडा सा हकलाने लगी.. जो उसके झूठ बोलने कि कोशिश करने कि शुरुवात जैसा कुछ लगा.. "मैं अप्पू को नहीं मारती हूँ.." हाँ, झूठ ही बोलने वाली थी.. दीदी से जब भी बात होती है तब ये जरूर सुनने को मिलता है कि आज फिर दोनों बहन झगडा कि है.. ये दीगर बात है कि ये अपनी छोटी बहन अप्पू को तभी मारती है जब उसकी शैतानियाँ इसके बर्दास्त से बाहर होता है..

"और क्या बदमाशी नहीं करती हो?" मेरे मन में अब उसकी सभी बदमाशियों को जानने का लालच जाग गया था..
"मैं किसी से किट्टा भी नहीं होती हूँ.. मम्मी से तो कभी नहीं.." उसने कभी नहीं पर जोर डालते हुए कहा.. हफ्ते भर पहले ही दीदी से हुई एक बात याद आ गई, जब यह मुझे दीदी से बात नहीं करने दे रही थी और दीदी के डांटने पर उससे बार-बार किट्टा हो रही थी.. मैं मन ही मन अपनी कामयाबी पर खुश होते हुए मुस्कुरा दिया..

"और?"
"और, मैं हूँ ना.. पौटी भी नहीं बोलती हूँ.." मुझे उसके भोलेपन पर प्यार आ गया.. मुझे याद आया जब मैं उससे पिछली बार मिला था तब वह गुस्से में आकर पौटी बोलती थी और सभी उसे समझते थे कि यह अच्छा शब्द नहीं है.. उसका कहना होता था कि क्या पौटी लगने पर भी पौटी नहीं बोलना चाहिए? तब फिर से उसे समझाना पड़ता था कि जब पौटी लगे तभी पौटी बोलना चाहिए.. नहीं तो नहीं.. इस बार उसके मुह से एक बार भी किसी और के लिए पौटी शब्द नहीं सुना.. लगा शायद पहले से अधिक समझदार हो गई है..

फिर बात आई-गई हो गई.. २ घंटे कि नींद भी मैंने मार लिया.. और वह जो दिन में नहीं सोती है सो मामू के पास रहने के लालच में मेरे पास ही सो भी गई.. उसके पास खिलोने वाला घर भी है, जिसे वह हाउस कहती है.. उसके लिए छोटे-छोटे फर्नीचर भी हैं.. मुझसे जिद करके वह सारा फर्नीचर उस छोटे से घर में सजवाया गया.. मैंने भी बहुत जतन से उसे सजाया भी.. मगर उससे क्या होता है भला.. मैंने जिस काम के लिए आधे घंटे का समय लिया था उसे उसने बस आधे मिनट में ही तितर-बितर किया और फिर से मेरे पास लेती आई.. "मामू ये खराब हो गया.. फिर से सजा दो.."

रात में फिर से उसे मेरा टब याद आया.. "मामू, आपका टब बहुत बड़ा है?"
"हाँ.."
तभी किसी कमरे से अप्पू कि रोने कि आवाज आने लगी.. उसे इसमे भी एक नया सवाल मिल गया..
"मामू, जो बच्चे रोते हैं वो गंदे बच्चे होते हैं ना?"
"किसने बोला?"
"मिस ने.." शायद स्कूल वाले मिस कि बात हो..
"नहीं बेटू, जो बच्चे बिना बात के रोते हैं वो गंदे होते हैं.."
"तो जब मैं आकांक्षा को मारती हूँ और वह रोती है तब वह गन्दी बच्ची नहीं होती हूँ ना?"
मन ही मन में हंसी आ गई.. खुद बुरा काम करके आकांक्षा को अच्छी बच्ची साबित कर रही है.. मगर यह आकांक्षा है कौन? यह सवाल मन में आया मगर मैंने पूछा नहीं.. उसकी ही रौ में बहना अच्छा लग रहा था..
"लेकिन किसी को मारना बहुत बुरी बात होती है.." मैंने कहा..
"जो बच्चा किसी को मारता है उसे आप टब में नहीं नहाने देते हैं?"
"नहीं.."
"अब से मैं किसी को नहीं मारूंगी.." मगर मेरे चहरे पर सपाट भाव देख उसे लगा कि मैं उसकी बात पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ.. "सच्ची मामू.." मुझे हर हाल में वह सहमत करना चाह रही थी..
"ठीक है.. फिर नहाने दूँगा.."

रात के खाने के बाद वह दीदी से जिद करने लगी कि मैं मामू के पास सोऊंगी.. दीदी उसे मन कर रही थी.. मैंने दीदी को बोला कि सोने दो आज.. दीदी का कहना था कि तुम्हारे साथ तो कोई बात नहीं है, मगर कोई बाहरी मेहमान आएगा तब भी ये जिद करने लगेगी.. इसकी आदत यही हो जायेगी.. मेरा कहना था कि एक दिन में कोई आदत नहीं लगेगी और उसे अपने पास सुला लिया..

अचानक से उसे फिर से उसका टब याद हो आया.. अब यह जादुई टब मेरा कहाँ रहा.. अब तो उसी का हो गया था.. उसे भरोसा हो गया था कि यह मेरा और उसका ज्वाइंट वेंचर है.. और हम दोनों जिसे चाहेंगे उसे ही उसमे नहाने देंगे.. बोली, "मामू, जो कच्छा बोलता है उसे भी नहीं नहाने दूँगी न?"
"नहीं", मैंने कहा फिर पूछा, "कौन कच्छा बोलता है?"
"राहुल जो है ना, वो बोलता है.." अब राहुल कौन है भाई? मगर पूछा नहीं.. अगले दिन अहले सुबह वाली फ्लाईट कि याद आ गई.. और सोने कि जुगत में लग गया..

सुबह-सुबह उसे सोता ही छोड़ मैं घर से निकल गया.. चेन्नई उतरने के बाद दीदी को फोन लगाया तो पता चला कि मेरे जाने के १५ मिनट बाद ही उसकी नींद खुली और मुझे नहीं देख कर दीदी के पास गई.. लगभग रोने ही वाली थी कि दीदी उसे गले से लगा कर सुला दी.. सुबह उसे याद ही नहीं कि मामू आया था और चला गया.. स्कूल से आने के बाद अचानक से याद आने पर अपनी मम्मी के पास जाकर फूट-फूट कर रोने लगी कि मामू चला गया.. चुप होने से पहले वाली आखिरी सिसकी में बोली "मामू मुझे टब में भी नहीं नहाने दिया.." बाद में जब दीदी से टब के बारे में बताया टब दीदी बोली कि टब में पानी बहुत खर्च होता है सो इसे नहीं नहाने देते हैं.. इसलिए तुमसे बोल रही थी कि मुझे टब में नहाने दो..


अदिति अप्पू साथ-साथ. अदिति रूठी हुई है और अप्पू पीछे से उसके रूठने जैसी एक्टिंग करने कि कोशिश कर रही है.

22 comments:

  1. बढ़िया यादें ले आये...भांजी के साथ अच्छा समय बीता..बच्चों की दुनिया निराली.

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  2. बहुत बढ़िया संस्मरण है मामू।
    आनंद आ गया। और तस्वीरें शानदार।
    भांजियों को प्यार इस मामा का भी।

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  3. मुझे ताई कहानी याद आ रही है।..आप इसे विस्तार दें तो एक संस्मरणात्मक कहानी जरुर बन जाएगी। बहुत अच्छा।...

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  4. छोटी सी ये दुनिया,छोटी छोटी खुशियाँ ......और इन खुशियों को हम तक पहुचने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.....

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  5. इस वाले मामा का भी प्यार देना पीड़ी भांजियों को।मुझे भी जाना है सोलह को अपने छोटे भांजे के जन्मदिन पर आपने उसकी याद ताज़ा कर दी।

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  6. सच में छोटी सी ये दुनिया हैं, और हम इसमें छोटी छोटी खुशियाँ बटोर लाते हैं।

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  7. अपनी दोनो भाजियां तो बस मौका मिलते ही फोन घुमा डालती हैं और आदेश आ जाता है मामा आप फोन कीजिए...फिर मैं और मेरा फोन कब तक बिजी रहेंगे ये उन पर मयस्सर रहता है...

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  8. बच्चों की अजब - गज़ब दुनिया

    रोचक शैली में बढ़िया संस्मरण

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  9. हम भी ऐसे कई सवालों से अक्सर भीड़ जाते है.. फर्क सिर्फ इतना है कि हम चाचु होते है और तुम मामू..
    इस बार तो मज़ा ही दिला बैठे पछान्त मामू

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  10. बच्चों का मन, निर्मलतम ।

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  11. कभी अप्पू की बातें भी बताईयेगा
    अच्छा लगता है

    प्रणाम

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  12. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 13.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  13. बच्चे के आँसू खर्च हो जायें इससे तो अच्छा है कि टब का पानी ही खर्चा हो जाये । क्या मामू.....।

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  14. बहुत सुन्दर प्यारी पोस्ट! पछान्तू मामू की जय हो!

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  15. अच्छा लगा पढ़ कर। छोटे बच्चों का साथ भी जीवनीशक्ति को बढ़ाने का उत्तम उपाय है, एक अग्रिमपंक्ति का तनाव से मुक्ति का साधन होने के कारण।
    आपकी अभिव्यक्ति काफ़ी स्वाभाविकता लिए हुए है।

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  16. मै न.. मेरी भी झूठ की शुरुआत होने वाली है.. :)

    बहुत ही प्यारा संस्मरण..वाह..

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  17. Sansamaran behad mazedar laga!

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  18. कि‍तनी मोहक बातें थी। एक अलग ही दुनि‍या होती है बच्‍चों के साथ।

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  19. प्रशांत,
    बस यूँ ही पहुँच गई आपके ब्लॉग पर दोबारा. बड़ी मज़ेदार है आपकी अदिति. मेरी दीदी की बेटी शीतल भी ऐसी ही है. मुझे बहुत चाहती है और जब मैं दीदी के यहाँ जाती हूँ, तो मेरे पास सोने की ज़िद करती है. और जब मैं चली आती हूँ, तो मखा के बैठी रहती है और कोई मौका मिलने पर रोने लगती है. अब तो नौ साल की हो गई है. उसका चार साल का भाई है, जो अक्सर उसे पीटता रहता है. बेचारी कुछ नहीं कर पाती.

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  20. मुक्ति जी, आपकी शीतल तो बिलकुल मेरी दीदी जैसी है.. मैं दीदी से तीन साल छोटा हूँ, और बचपन में दीदी को खूब मारता था.. मगर कभी भी दीदी ने मुझपर हाथ उठाया हो ये मुझे याद नहीं है.. और जब पापाजी मुझे मारने आते थे तब भी दीदी मुझे बचाया करती थी.. मेरी दीदी जैसी प्यार करने वाली दीदी किसी कि नहीं हो सकती ऐसा मेरा मानना है.. (-:

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