Wednesday, December 16, 2009

अब भी उसे जब याद करता हूं, तो बहुत शिद्दत से याद करता हूं

समय के साथ बहुत कुछ बदला है.. मैं भी बदला हूं, मेरी सोच के साथ-साथ परिस्थितियां भी बदली है.. कई रिश्तों के मायने बदले हैं.. पहले जिन बातों के बदलने पर तकलीफ़ होती थी, अब उन्ही चीजों को देखने का नजरिया भी बदला है और उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ने की प्रवॄति भी आ गई है.. जिन चीजों के बदलने पर तकलीफ होती थी अब उन बातों को आसानी से स्वीकारने भी लगा हूं..

जिस मित्र के साथ हर बात बांचते थे और जिसके पास मेरे बैंक एकाऊंट का पासवर्ड होना भी कोई मायने नहीं रखता था, अब उन्ही मित्रों से कई बाते छुपा जाया करता हूं.. वे भी अमूमन वैसा ही करते हैं, जैसा मैं करता हूं.. वे भी तब वैसा ही करते थे जैसा मैं करता था.. मुझमें और उनमें कोई अंतर बाकी ना रहा.. ना तब, और ना अब..

पहले कुछ भी अपना नहीं होता था, अब कई चीजें सिर्फ अपने लिये होने लगी हैं.. कभी-कभी लगता है कि कहीं स्वार्थी तो नहीं होता जा रहा हूं? मगर फिर लगता है कि अगर यह स्वार्थीपना है तो हम चारों ओर स्वार्थियों से ही घिरे हुये हैं.. वहीं कभी आशावादी तरीके से भी सोचता हूं.. सोचता हूं कि यही तो जीवन का सत्य है.. मानव स्वभाव है.. इसमें स्वार्थीपना कहीं भी नहीं है.. हर कोई अपना एक स्पेस चाहता है, तो उस स्पेस में क्यों जबरन घुसा जाये?

अपने शहर में जाता हूं तो अपने घर के इर्द-गिर्द कई नये बेजान से मकानों को देखता हूं.. हर छः महिने में कम से कम 2-3 नये मकान.. उस मैदान पर जहां मैं क्रिकेट खेला करता था और जिस पर 2-3 टीम एक साथ खेलती थी, उस पर अब एक छोटी सी टीम के खेलने लायक जगह भी नहीं बची है.. बदलावों के बयार में तो हर कुछ बह रहा है..

अब रोना कम हो गया है.. पहले हर इमोशनल बातों पर रोना आता था.. अब वैसी बाते आने पर हंसी आती है.. खिसियानी हंसी.. लगता है जैसे खुद को धोखा देने कि कोशिश में लगा हूं.. दुनिया को दिखाना चाहता हूं कि देखो, मैं कितना प्रैक्टिकल हो गया हूं.. प्रक्टिकल होना या प्रोफेशनल होना अब भी मेरी समझ के बाहर की चीज है.. अब हर बात को पॉलिटिकली करेक्ट करने की कोशिश अधिक लगती है बजाये की दिल कि बात कही जाये.. प्रैक्टिकल होना या प्रोफेशनल होने का अभी तक एक ही मतलब समझ पाया हूं, महसूस कम करना.. कुछ भी महसूस ना करना.. जो जितना कम महसूस करता है, वह उतना ही प्रैक्टिकल है..

एक बात तो समझ में आती है कि मैंने मन में गांठ बांध लिया है की "बदलाव ही जीवन का अटूट सत्य है".. देर से ही सही, समझ में तो आया.. अब तुम्हारा वह पहाड़ी वाला शहर भी अधिक तकलीफ़ नहीं देता है, और ना ही यादों में अधिक ढ़केलता है.. सच कहूं तो तुम्हारे उस शहर में जाकर अंतरमन में रस्साकस्सी बहुत अधिक चलती है.. दिल उन यादों में डूबना चाहता है, मगर दिमाग कहीं और खींचना चाहता है..

कुछ दिन पहले उसी शहर में रहने वाला एक मित्र पूछ बैठा था तुम्हारे बारे में, "क्या उसे अब भी याद करते हो?" "ना!!" तुरत जबान से निकल पड़ा.. आधे मिनट की चुप्पी के बाद मैंने कहा, "अब यादों में डूबे रहना जमाने को प्रैक्टिकल नहीं लगता है.. मगर अब भी उसे जब याद करता हूं, तो बहुत शिद्दत से याद करता हूं.." पता नहीं क्यों, मैं उससे झूठ नहीं बोल पाया.. मगर कई बातें नहीं कह पाया.. जैसे.. उस शहर में अब भी तुम्हारी खुश्बू महसूस करना चाहता हूं, मगर अब उस अहसास का पीछा नहीं करता हूं.. समझ गया हूं.. यह एक मृग-मरिचिका से अधिक और कुछ नहीं है..

चलते-चलते : एक बात जो समझा हूं, एक चीज कभी नहीं बदलती है.. चाहे सारा जमाना बदल जाये.. सारे रिश्तों के मायने बदल जाये.. ब्रह्मांड के बदलाव के नियम को झूठलाते हुये ना बदलने वाली चीज है, मां-पापा का प्यार और स्नेह..

13 comments:

  1. देखा तो ये देखा कि न देखा कुछ भी,
    जाना तो ये जाना कि न जाना कुछ भी।

    मरीजे मोहब्बत खुद ही का फ़साना,
    सुनाता रहा दम निकलते निकलते,
    मगर जिक्रे शामें अलम जब के आया,
    चरागे सहर बुझ गया जलते जलते।

    उन्हे खत में लिखा कि दिल मुस्तरिब है,
    जवाब उनका आया कि मोहब्बत न करते।

    तुम्हे दिल लगाने को किसने कहा था,
    बहल जायेगा दिल बहलते बहलते।

    रस्में उल्फ़त अदा नहीं करते,
    हुस्न वाले वफ़ा नहीं करते,
    इस पे जवाब उनका आया,
    इश्क वाले गिला नहीं करते,

    चलो जल्द ही इस शानदार ख्याल को कव्वाली की शक्ल में तुम्हे सुनवायेंगें।

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  2. ब्रह्मांड के बदलाव के नियम को झूठलाते हुये ना बदलने वाली चीज है, मां-पापा का प्यार और स्नेह..

    सत्य कहा!!

    बाकी सब तो वक्त के अनुरुप बनता बिगड़ता रहता है.

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  3. practically बहुत सही लिखा है..... सच है ...आज हम दोस्तों से भी छुपाते हैं..... और वो भी ....बहुत अच्छा लगा यह लेख.....

    Change is inevitable....

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  4. हाँ ये तुमने सही कहा ..दुनिया की हर एक चीज बदल जाती है..चाहे वो रिश्ते क्यूँ ना हो..!
    जमीं पर रहने वाला इंसान बदल जाता है..घर में रहने वाला परिवार बदल जाता है..स्कूल और कॉलेज में पढने वाले बच्चे बदल जाते है.. पूरा मंत्री मंडल बदल जाता है..! ग्रहों की चाल बदल जाती है..यानि सभी चीजे जो है वो कल बदल जाएँगी..! ना बदलेगा तो माँ और पिता का स्नेह और प्यार..! पर कुछ चीजे और भी है जो कभी-कभी नहीं बदलती है..वो है भाई -भाई का प्यार.. दो दोस्तों का लगाव और प्यार..!!
    ऐसा सही है की इंसान समय के बदलाब के साथ थोडा स्वार्थी हो जाता है..लेकिन ये वो स्वार्थीपन नहीं है जो की एक स्वार्थी इंसान के अन्दर होती है..ये वो स्वार्थीपन है जो की अपने भविष्य के लिए है..अपने भविष्य को सुरछित करने के लिए है..!! शायद मैं सही सोच रहा हूँ..पता नहीं..!! खैर.. कोई बात नहीं..!! सोचना कोई बुरी बात नहीं.. पर ज्यादा सोचना अपने बर्तमान और भविष्य को हानि दे सकता है...!!
    एक उम्दा किस्म का आत्ममंथन है ये..!! मुझे काफी पसंद आया..क्यूंकि दुनिया में में कई लोग ऐसे है जो ये सब सोच ही नहीं पाते..!!

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  5. Tum mujhe fir emotional kar rahe ho... pichhle dino aisi hi kisi situation par nazma likh chuki hun.. ye post us ka bhavanuvad hai....!!

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  6. बदलाव तो प्राकृति का नियम है इस लिए यह तो होता ही रहता है...

    आपने बहुत ही बढ़िया लिखा-

    " सारे रिश्तों के मायने बदल जाये.. ब्रह्मांड के बदलाव के नियम को झूठलाते हुये ना बदलने वाली चीज है, मां-पापा का प्यार और स्नेह.."

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  7. @ मनोज - अच्छा लिखने लगे हो.. बहुत जल्द ही लिखने की कला में पारंगत होते जा रहे हो.. :)

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  8. फिर से सेंटी कर गए !

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  9. सेन्टियानी बीमारी के मरीज़ तुम भी हो..

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  10. बहुत अच्छा लिखा है ।

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