ये दोनों ही मेरे कालेज के मित्र हैं.. पहले जब कभी बैंगलोर जाना होता था तब मेरी प्राथमिकता में तीन लोग हुआ करते थे, जिनसे मिले बिना मैं नहीं आना चाहता था, बाकी काम बाद में.. चंदन, प्रियंका और रविन्द्र.. जिसमें चंदन और प्रियंका मेरे एम.सी.ए. के मित्र हैं और रविन्द्र मेरे उन सबसे पुराने मित्रों में से है जिससे पहले पहल पटना में दोस्ती हुई थी.. अबकी बार बैंगलोर गया तो एक नाम और जुड़ गया, नीता.. यह भी एम.सी.ए. वाले दोस्तों में से ही है.. बैंगलोर शिफ्ट हुये जुम्मा-जुम्मा चार दिन भी नहीं हुये हैं इसे.. अबकी बार बैंगलोर गया तो नीरज और गार्गी से भी मुलाकात होनी थी, या यूं कहें कि उन्हीं दोनों से मिलने के लिये खास बैंगलोर गया था(चंदन, प्रियंका और नीता अभी बैंगलोर से कहीं भागने वाले भी नहीं हैं).. नीरज के भैया की शादी ती और उसी कारण से वे दोनों कलकत्ता से बैंगलोर आये थे..
बायें से - मैं, नीता और चंदन
अबकी बार बैंगलोर के लिये निकला तो अपने लिस्ट में दो और नाम जुड़े हुये थे जिनसे मुलाकात करने की बहुत इच्छा थी, मगर मुलाकात हो ना सकी.. पहला नाम तो पूजा मैडम का था और दूसरा नाम मेरी पटना कि ही स्कूल के जमाने की मित्र निवेदिता उर्फ रोजी थी.. सच कहूं तो रोजी से मिलने से ज्यादा उसकी बिटिया से मिलने का मन अधिक था..
पिछले 3-4 बार से जब भी बैंगलोर गया था तब हमेशा यह शहर मेरा स्वागत ठंढ़ी फुहारों से करता रहा है, मगर शायद यह शहर भी एकरसता से ऊब गया होगा.. तभी इस बार नहीं बरसा.. सुबह-सुबह चंदन के घर पहूंच कर उसकी पिटाई की तब जाकर मन को तसल्ली मिली.. बहुत दिनों से साले को पीटा नहीं था.. :D
पता नहीं शिवेंद्र को इतनी नींद आती कहां से है? और आती है तो रखता कहां है?(एक सिनेमा से इन्सपायर्ड डायलॉग मारा हूं :)).. रात भर सोने के बाद भी चंदन के घर में पहूंचते ही बिस्तर देख लम्बा हो गया.. वह भी मेरे साथ चेन्नई से बैंगलोर आया था.. फिर थोड़ी देर बाद प्रियंका के घर को निकल लिये पेट-पूजा करने को.. मेरे और प्रियंका के बीच पहले ही बात तय हो चुकी थी कि मुझे चिकेन खिलायेगी.. उसने जब पूछा कि शिव कैसे खायेगा? मेरा कहना था, "शिव खाता नहीं है, मगर सूंघने से उसे परहेज थोड़े ही ना है?" खैर चिकेन भी आया और दबाकर खाया भी गया.. शाम में चंदन और शिवेन्द्र की इच्छा ना होते हुये भी, प्रियंका और मैं जबरदस्ती उठा ले गये सिनेमा दिखाने को, कुर्बान नाम है सिनेमा का.. सिनेमा महा बकवास थी, मगर दोस्तों का साथ था यह क्या कम था? फिर घर पहूंच कर दिन का बचा चिकेन भी दबा गया.. उधर नीता दिनभर एक अदद घर की तलाश में भटकती रही..
अगले दिन नीता से भी मुलाकात हुई और नीरज-गार्गी से भी.. कुछ ही महिने पहले इनसे कलकत्ते मे भी मुलाकात हुई थी और शिव भैया(शिव कुमार मिश्रा जी) को भी इनसे मिलवाया था.. वहीं अंतिम बार नीता से भी मुलाकात हुई थी.. मगर इतने पास होने पर भी बैंगलोर जाकर नहीं मिलने का बस एक ही मतलब था कि इन सबसे खूब गालियां खाना.. सोचा कि क्यों ना भैया की शादी का पर्टी ही खा लूं, गालियां खाने को तो ऑफिस है ही.. सो चला आया था यहां..
बायें से - नीता, प्रियंका, शिवेन्द्र, गार्गी, मैं और नीरज(सबसे दाये वाला नीरज का मित्र है जिसका नाम मुझे नहीं पता)
अब शुरू हुआ नीता के इंतजार का सिलसिला जिसके चक्कर में मैंने पूजा और रोजी को मना कर दिया था इस बार मिलने से.. मगर वह तब आयी जब चंदन ने अपने घोड़े(बाईक) को उसके घर तक लगभग 35 किलोमीटर दौड़ाया.. फिर रात ढ़लने से पहले ही उस जगह भी पहूंच ही गये जहां पार्टी चल रही थी.. इसके लिये नीता और प्रियंका भी जिम्मेदार थी जो आश्चर्यजनक रूप से बस 10 मिनट में ही तैयार हो गई थी.. :D
पार्टी में पहूंच कर मैंने नीरज से सबसे पहले बोला, "अबे तू वेटर जैसा नहीं लग रहा है, मुझे तो लगा था की पांच सितारा होटल में तू वेटर जैसा ही दिखेगा.." चलो अच्छा ही हुआ जो उसने मेरे कमेंट को कंप्लीमेंट समझ लिया, नहीं तो पांच सितारा होटल में खाने का मौका हाथ से निकल जाता.. ;)
खैर एक बार फिर से चिकेन दबा कर खाया और निकल लिये ट्रेन पकड़ने को.. आते समय नीता को धमका आया कि चंदन को तो कहीं भी पीट सकता हूं, मगर तुम्हें बीच सड़क पर पीटूंगा तो खुद ही पिट जाऊंगा.. सो यह प्रोग्राम अगली बार के लिये स्थगित..
चलते-चलते : आज(मेरे लिये तो यह अभी भी आज ही है, सुबह उठुंगा तब यह कल होगा :) ) 1 दिसम्बर को नीता का जन्मदिन भी है..
बढ़िया रहा दोस्तों से मेल मिलाप, मार पीट. आपकी मित्र को जन्म दिन की शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत गुंडागर्दी कर रहे हो, उसपर धौंस जमा रहे हो ब्लॉग पर. हम भी सोच रहे हैं की तुम अबकी बंगलोर में पैर धरो और तुम्हारी ही पिटाई करवा डालें. तुम्हारे ये दोस्त घूमते टहलते मिल ही जायेंगे, मिल कर प्लान बना डालेंगे :)
ReplyDeleteपता नहीं यार कैसे जातरा बना के आते हो, हमेशा कुछ ऐसे काम में फसे रहते हैं की मरने का फुर्सत नहीं...खैर अब तो लम्बे टाइम के लिए आ रहे हो...कुछ न कुछ जुगाड़ भिड़ा ही लेंगे...वैसे भी किसी को पिटवाने का आकर्षण कम थोड़े होता है :)
संभल के जवान,
ReplyDeleteवैसे भी हमारी पीढी को गालियाँ ही मिलती हैं। अभी कोई पोस्ट लिख देगा कि पाश्चात्य शिक्षा पद्यति और पश्चिम के अन्धानुकरण के चलते पीडी ने अपने संस्कार खो दिये, ;-)
वैसे फ़ुटवा तो हम आर्कुट पर देख ही चुके थे किस्सा और सुनने को मिल गया। डेढ पसली के हो और कुचलने मसलने जैसी बातें करते हो, कहीं किसी रोज मामला उल्टा हो गया तो, खैर खुदा खैर करे...;-)
वैसे बढिया कपडों में चमाचम दूल्हा टाईप लग रहे हो, कब चढ रहे हो घोडी? ;-)
चिकेन को दो बार दबाया! ऐसा क्यों भाई! एक बार में ही काम ठीक से करना सीख लो। पूजा मैडम की धमकी को गम्भीरता से लोगे या ऐसे ही? नीरज रोहिल्ला तुमको घोड़ी पर चढ़वाना चाहते हैं --खुद को क्यों नहीं?
ReplyDeleteमैं भी सोच रहा हूँ कि चेन्नई आ कर एकाध दौर चला ही लूँ पिटाई का :-)
ReplyDeleteबी एस पाबला
मार और पीट :)
ReplyDeleteतुम भी मियाँ
शक्ल से तो बड़े भोले लगते हो :)
खुद ही पीट जाने के डर से स्थगित प्रोग्राम...क्या अगली बार पहलवान बन कर आओगे जो पीटने का डर न रहेगा? :)
ReplyDeleteनीरज जी से सहमत ..(ध्यान दिया जाये एक -एक शब्द से) :-)
ReplyDeleteसावधान सब लगे हैं चढाने में ." चढ़ जा बेटा घोड़ी में राम जी भला करेंगे " :)
ReplyDeleteभैया आप तो बहुत हीं डेंज़रस आदमी मालूम होते है । यह टिप्पणी भी डरते डरते कर रहा हूँ, आखिर पिटने से कौन नही डरता :)
ReplyDeleteपहली बार ब्लाग पर आया हूँ पर अब लगता है नियमित रूप से आना पड़ेगा । आपने पटना की याद ताजा कर दी ।
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
ReplyDeleteमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
कुछ प्यारे दोस्त होते ही कुटने के लिये.. और हम भी किसी के एसे प्यारे दोस्त हो सकते है..
ReplyDeleteNice Post!! Nice Blog!!! Keep Blogging....
ReplyDeletePlz follow my blog!!!
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दोस्तों को कूटने का आनंद अनिर्वचनीय होता है.. अगर सामने वाला सिंगल चेसिस हो तो आनंद ही आनंद।
ReplyDeleteवैसे बंगलौर भी उकता गया होगा अक्सर आने वाले इस मेहमान को देखकर, इसीलिये नहीं बरसा होगा इस बार।
सिंगल चेसिस !!
ReplyDelete:-)))
बी एस पाबला