Thursday, November 15, 2007

ययाति

मैं जब घर से चला तो मैंने पापाजी से हमेशा की तरह पूछा, कोई अच्छी किताब मिलेगी क्या? उन्होंने कहा, "उधर रैक पर से कोई सा भी उठा लो"। मेरी नजर सबसे पहले ययाति पर पड़ी और मैंने उसे ही उठा लिया और पापाजी से पूछा कि ये कैसी है, और उनका उत्तर सकारात्मक पा कर मैं उसे लेकर घर से निकल पड़ा। इधर कुछ दिनों से मुझे कुछ भी पढना नहीं भा रहा था, इसका क्या कारण था ये मुझे नहीं पता पर जब मैंने इसे पढना शुरू किया तो मेरे भीतर पढने की पूरानी भूख फिर से जाग उठी और मैंने इसे एक सुर में ही पढ डाला। इस किताब को पढने से और कुछ हुआ हो चाहे ना हुआ हो, पर एक आत्मिक सुख की प्राप्ति तो जरूर हुई। मन कई विचारों में उलझा हुआ था पर इस किताब को पढकर उसे सुलझाने में कुछ मदद मिली।

इसमे एक तरफ तो शर्मिष्ठा का त्याग था जिसके कारण वो ययाति से दूर अपने बच्चे पूरू को लेकर जंगल और पहाड़ों में भटकती रही तो दुसरी तरफ देवयानी का अहंकार, ऐसा अहंकार जिसके आगे वो किसी को कुछ भी नहीं समझती थी।

एक तरफ महाराज नहुश को मौत का भय सता रहा था तो दूसरी तरफ ययाति को मुकुलिका के अधरों का पान करने का नशा था, ययाति का उन्माद था, ययाति का उन्माद भरा विलाश था।

एक तरफ शुक्रचार्य का विनाश करने को तत्पर रहने वाला स्वभाव जो उन्हें हमेशा कठोर तपस्या करने के लिये प्रेरित करता था तो दूसरी तरफ कच का दुनिया को बचाने के लिये हमेशा तत्पर रहते हुये उसी के लिये कठोर तपस्या करते रहना।

एक तरफ देवयानी को नीचा दिखाने और अपनी इच्छा-लालसाओं को पूरा करने की धुन में अपने ही पुत्र से ययाति द्वारा यौवन कि भीख मांगना, तो दूसरी तरफ एक पुत्र का बिना किसी झिझक के अपना यौवन अपने पिता को सौंप देना तो वहीं दूसरे पुत्र का यह सब देख कर वहां से भाग जाना।

राजमहल के उन्माद से लेकर दासियों की करूण स्थिति भी। एक नवयुवक का उत्साह ययाति के रूप में दिखाया गया है जिसमें वो किशोरावस्था में ही अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा लेकर विश्व विजय को निकल पड़े थे। सुख और दुख कि अजीब परिभाषा भी, जिसके अनुसार जो अभी इस क्षण हमारे लिये सुख है वो संभवतया किसी और के लिये दुख का कारण हो। और जिसे हम दुख समझ रहें हैं वो यथार्थ मे किसी और को सुख देता हो। यथार्थ में हमें ये भी पता नहीं होता है की हम सुखी हैं या दुखी।

अंत में कुछ अपने बारे में बताना चाहूंगा, मैं अभी दिपावली में घर(पटना) चला गया था जहां मेरा समय बहुत अच्छे से व्यतीत हुआ और कुछ रोचक किस्से भी बने। उन किस्सों के साथ मैं जल्द ही आपके पास आऊंगा।

6 comments:

  1. ययाति की संक्षिप्त कथा अच्छी लगी. आपके घर (पटना) के रोचक किस्सों का इंतजार है.

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  2. ययाति कि कथा भी अच्छी है और वी एस खाण्डेकर का उपन्यास भी। अच्छे पुस्तक पढ़ी आपने।

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  3. "ययाति" की चर्चा के लिए धन्यवाद !
    तो आपने भी मेरी तरह इस बार बरसाती दीपावली मनाई होगी पटना में .

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  4. kabhi muka milta hai to main bhi pdhoonga is book ko.......vaise un rochak kisso ke baare mein jald bataaye.....

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  5. आप का विवरण पढ़ कर मेरे भी मन में ययाती को पढ़ने की इच्छा जाग उठी है, मौका मिलते ही पढ़ूंगी। आप मेरे ब्लोग पर आये और मेरी साधारण सी पोस्ट में खुद को देख सके जान कर अच्छा लगा। आप के ब्लोग पर आप के बारे में पढ़ कर लग रहा है मानो मेरा ही बेटा बोल रहा है। मुझे आप को और जान कर खुशी होगी। आप का इ-मेल पता समझ नही आया इस लिए यही धन्यवाद देने की द्र्ष्टता कर रही हूं आशा है आप बुरा नहीं मानेगें। अपना इ-मेल पता दें तो मुझे अच्छा लगेगा।

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  6. नमस्कार प्रशांत जी
    ययाति की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की थी जिसने प्रायः विलासिता पूर्ण जीवन ही व्यतीत किया था और इस जीवन की सत्यता से परिचित होने का प्रयास किया था ..किंतु उसके इन्ही कुछ प्रश्नों के उत्तर पाने की चेष्टा शायद हर व्यक्ति ने जीवन में कभी न कभी अवश्य की होगी...

    आपके द्वारा अपने इस पुस्तक ज्ञान को यहाँ पर शेयर करने क लिए धन्यवाद .. हम यही उम्मीद करते हैं की आप आगे भी ऐसे ही हमें रोचक जानकारियों और अनुभूतियों से अवगत करते रहेंगे ..

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