शुक्रवार का दिन था, मैं आफिस से जल्दी घर लौटना चाह रहा था और अपना सामान ठीक करके जल्दी सो जाना चाह रहा था क्योंकि मुझे अगले दिन दिल्ली के लिये फ्लाईट पकड़नी था। मैं जिस छुट्टी का कई दिनों से इंतजार कर रहा था वो पास आ चुका था। मैंने आफिस से निकलने से पहले विशाल (मेरा रूम मेट और सहकर्मचारी भी) से भी पूछ लिया क्योंकि उसकी भोपाल जाने वाली ट्रेन रात में ही थी और वो भी मेरे साथ घर के लिये हो लिया।
रात में खाना तो जल्दी खा लिया लेकिन वंदना से बाते करते हुये रात के साढे ग्यारह बज ही गये। मैंने उसे बताया की मुझे कल सुबह की फ्लाईट पकड्ड्ढनी है और उसके लिये मुझे सुबह 3:15 में उठना है। उसने मुझे आश्वस्त किया की मैं उठा दूंगी, मैंने मना भी किया की मैं उठ जाऊंगा तुम क्यों परेशान होती हो? लेकिन वो नहीं मानी और ठीक सुबह 3:15 में मुझे फोन करके उठा दिया। शायद ये अच्छा ही हुआ की उसने मेरी बात नहीं मानी क्योंकि मैंने 3 बजे की घंटी लगाई तो थी पर नींद में ही उसे बंद करके फिर सो गया था।
मैंने घर ठीक 4:08 पर छोड़ा और समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पहूंच गया। मैंने जब पहली बार हवाई यात्रा की थी तो मुझे बहुत आनंद आया था और ये रोचकता अगले 1-2 और हवाई यात्रा तक बनी रही, पर अब मुझे इस हवाई यात्रा से उब सी होने लगी है। सारे लोग शराफत का चोंगा पहनकर अपने-अपने में सिमटे हुये से लगते हैं। और अगर किसी से कुछ पूछो तो विदेशी भाषा में उत्तर मिलता है, जैसे अगर वो हिंदी में कुछ बोलेंगे तो कहीं कठपूतलियों की ये भीड़ जो प्लास्टिक के मुखौटे ओढे हुये हैं उन्हें गंवार करार न दें। इससे अच्छा तो मुझे ट्रेन के स्लीपर क्लास का डब्बा लगता है। मैं एक तो रात में ठीक से सो नहीं पाया था और दूसरा हवाई जहाज में कोई बातें करने वाला नहीं होता है सो मैंने बैठते ही सोने का निश्चय कर लिया और जब दिल्ली उतरने वाला था तब जाकर उठा। हवाई जहाज से सूर्योदय का समां कुछ निराला ही था और बहुत दिनों बाद सूर्योदय देखने का मौका भी मिला सो मन को बहुत सुकून मिला।
हवाई जहाज से सूर्योदय का चित्र
दिल्ली में भी मेरे मित्र मंडली के कुछ रत्न रहते हैं और उनमें से ही एक है निधि। इनसे मेरी मित्रता नीता के कारण हुआ जो मेरे साथ कालेज में थी और मेरी अच्छी मित्र भी थी और निधि नीता की अच्छी मित्र है। मेरी दिल्ली जाने से पहले उससे बात हुई थी और उसने कहा था की वो मुझे लेने हवाई अड्डे पहूंच जायेगी, पर जब मैं दिल्ली पहूंच कर उसे फोन किया तो पता चला कि वो अभी तक सोयी हुई थी। अब चूंकी वो तत्काल वहां तो पहूंच नहीं सकती थी सो उसने मुझे "इस्को चौक" आने को कहा और रास्ता बताया जो उसके घर के बिलकुल पास में ही था। जब मैं वहां पहूंचा तो वो पहले से मेरा इंतजार कर रही थी। ये हमारी तीसरी मुलाकात थी, और हमारी ज्यादातर बातें नेट पर चैट के द्वारा ही होती आयी थी और कभी-कभी फोन पर भी। सो जब मैं वहां पहूंचा तो कई तरह के पूर्वाग्रहों के साथ था। लेकिन जब निधि से मिला तो सारे पूर्वाग्रह पता नहीं कहां चले गये और बचा रहा तो बस अच्छे दोस्तों कि चुहलबाजियाँ। हमारे बीच एक बहुत पूराना थोड़े से पैसों का हिसाब बाकि था जिसे लेकर मैं अक्सर उसे चिढाता था कि मेरे पैसे कब वापस दोगी, इस बार उसने बहुत प्रयत्न किया उसे वापस करने के लिये पर मैंने मना कर दिया की अगर अभी ये ले लूंगा तो आगे कैसे चिढाऊंगा? :) वहां से जाने से पहले निधि ने पूछा की अगली बार कब मिलोगे, और मैंने उसे चिढाते हुये आश्वासन दिया की तुम्हारी शादी में पार्टी खाने जरूर आऊंगा। फिर उसने मुझे जयपूर जाने वाली बस में बैठा दिया। (यहां मैंने एक बहुत अच्छे से अनुभव को छोटे में ही समेट दिया है, उसके लिये क्षमा चाहूंगा)।
मेरी दोनों भांजियां और मेरी मम्मी
मैं शाम में 7 बजे के करीब जयपूर पहूंचा और वहां उतर गया जहां मेरे पाहूनजी(हम लोग जीजाजी को इसी नाम से बुलाते हैं) ने मेरे लिये एक गाड़ी भिजवा दी थी। मगर यहां भी एक उलझन थी, मैं वाहन चालक को नहीं पहचानता था और वो मुझे नहीं पहचानता था। एक दूसरे को खोजने में ही 8 बज गये, उस समय थोड़ी झल्लाहट भी हुई की अगर मैं औटोरिक्सा किया होता तो अब तक मैं घर पर होता। खैर अंततः मैं घर पहूंच गया और वहां मम्मी, पापा, दीदी और मेरी प्यारी सी भांजी मेरा इंतजार कर रही थी। मेरी भांजी तो सुबह से ही रट लगायी हुई थी की मामू आयेंगे फिर मैकडोनाल्ड जायेंगे। थोड़ा सा मम्मी और दीदी से प्यार भड़ा उलाहना भी सुनना परा की दोस्तों के चक्कर में मम्मी-दीदी को भूल जाता है तभी इतनी देर से आ रहा है। नहीं तो 2-3 घंटे पहले ही आ जाता। फिर हमलोग रात का खाना बाहर खाये और घर आकर सो गये।
जयपूर जाते समय लिया हुआ एक चित्र
मेरी नौ दिनों की छुट्टीयों के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों में से ये हिस्सा यहीं खत्म होता है। अगले हिस्सों और किस्सों के साथ जल्दी ही आऊंगा।
नमस्कार प्रशांत जी
ReplyDeleteआपका यात्रा वृतांत बहुत अच्छा है. ऐसा प्रतीत होता था पढ़ते हुए मानो सब कुछ यथार्थ में चल रहा है... और मुझे खेद है की मैंने उस रात में आपको late कर दिया था...
अच्छा लिखा यात्रा वृत्त। और जितनी मन्हगी यात्रा उतना ज्यादा अकेलापन सही ऑब्जर्वेशन है।
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