सुबह उठा,
तो हर चीज को उदास पाया,
शायद कुछ खोया था,
या कुछ टूटा था,
हाँ कुछ सपने टूटे थे शायद,
आखें लाल थी,
कुछ भींगी सी भी,
लगा कुछ चुभ रहा हो,
शायद उन्ही सपनों के टुकड़े थे,
दिन तो युँ ही गुजर गया,
रात जब बिस्तर पर पहुँचा तो देखा,
वे टुकड़े अभी भी वहीं पड़े मेरे आने का इन्तजार कर रहे थे,
शायद अब भी कुछ कसर बाकी थी,
लेकिन अभी हर चीज को हंसता पाया,
कोई उदासी नहीं कुछ भी नहीं,
मानो मेरी हँसी उरा रहें हों
और फिर से मेरे नये सपने का इन्तजार कर रहें हों।।।
u can write decent peoms my friend...i think the job is much metter than writing boring software programs.
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ReplyDeleteYou are just amazing. Peoms are really good..I'm proud to have a friend, who is software cum peom developer. Good job. Keep it up..
ReplyDeleteThanks to all for your comments...
ReplyDeleteki ru..ki bha galu tora..ki sab likh rahal chi...sun na hamro source bata de na..humo likhab...bhad badiya chai..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता :)
ReplyDeleteपंजक, यहाँ कहाँ भटक रहे हो? वैसे बता दूँ, यह मेरी पहली कविता थी.. :)
ReplyDeleteprashant priyadarshi....hello hello...kaise ho...:P
ReplyDeletejhooth mat bolo...ye kavita maine likhi thi...tumhari kaise ho gayi re :D