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समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई
घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...
नोटवा से आई
बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...
गाँधी से आई
आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...
काँगरेस से आई
जनता से आई
झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...
डालर से आई
रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...
वादा से आई
लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...
लाठी से आई
गोली से आई
लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...
महंगी ले आई
गरीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...
छोटका का छोटहन
बड़का का बड़हन
बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...
परसों ले आई
बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...
धीरे-धीरे आई
चुपे-चुपे आई
अँखियन पर परदा लगाई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।
गोरख पाण्डेय जी द्वारा रचित(रचनाकाल :1978). उनकी अन्य रचनाएँ आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
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मुश्किल ही लगता है... समाजवाद का आ पाना....
ReplyDeleteसमाजवाद त बबुआ बहुते धीरे धीरे आई...
ReplyDeleteकविता त मस्त बा हौ...
का पता, आई के ना आई?
ReplyDeleteये समाजवाद तो आ भी गया, संविधान में हाजरी लगाई और चला भी गया।
ReplyDeleteअब तो माओवाद आई भाई.. औरि बडा तेजी से आयी.. :)
ReplyDeleteगोरख पाण्डेय जी की रचना पसंद आयी धन्यवाद
ReplyDeleteबेहतरीन... मजा आ गया...
ReplyDeleteजो लोग भरोसा छोड़ सकते हैं वे बेशक छोड़ दे, लेकिन यह तय है कि एक दिन समाजवाद आएगा। आप जैसा युवा जब गोरखपांडे को याद करता है तो और भी यकीन हो जाता है।
ReplyDeleteऔर भी ब्लाग पर आता-जाता हूं लेकिन आपके ब्लाग पर आपके ब्लाग पर आकर कुछ खुराक मिल ही जाती है, यह अलग बात है कि मैंने कभी टिप्पणी नहीं की। आज गोरखपांडे की रचना देखकर बड़ा अच्छा लगा। हम लोग जनगीतों में उनकी इस रचना का उपयोग करते रहे हैं। भिलाई में नाट्य़ मंडली कोरस से जुड़े लोग अब भी नाटक प्रारंभ होने के पहले यह गीत गाते हैं।
अरे तो अब तक आईल काहें नाही...
ReplyDeleteतो फिर चले.. नुक्कड़ नाटक करने..
ReplyDeleteअरे वाह ! यूनिवर्सिटी के दिनों में हमने खूब गाया है इसे और नुक्कड़ नाटक भी किये हैं इसे गाकर... उन दिनों की याद आ गयी...
ReplyDeleteपंकज की बात सही है "अगर समाजवाद न आयी त माओवाद आयी, इ बात त पक्की है. माओवाद के रोके के बदे समाजवाद लवही के पड़ी. केहू मानै कि ना मानै"
खूबसूरत प्रस्तुति ! आभार ।
ReplyDeleteलागत बा, न आई!
ReplyDeleteहमने एक डायरी खरीदी थी जिसमें गौरख जी ये वाली रचना थी और एक बार पढते ही हम गौरख जी के फैन हो गए थे। और अपने ब्लोग पर भी यही रचना पोस्ट की थी। पर सबसे बडा सवाल कि समाजवाद आऐगा या नही? वैसे हमें उससे पहले आपके एक :) का इंतजार कर रहे है जो अभी तक नही आया हाँ मैसेज जरुर आया था कि वो आऐगा.... खैर:(
ReplyDeleteगोरख पाण्डेय जी की यह रचना हमने भी गाई है । अच्छा लगा उन्हे इस तरह याद करना ।
ReplyDeleteफिर से कह रहा हूँ टिप्पणी पढ़ के देखो अपने ब्लाग में क्या यह सहज है
ReplyDeleteजितने वाद हैं सब किताबी हैं
कोई मानव वाद नाम की चिड़िया भी है कहीं