Tuesday, May 04, 2010

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

हाथी से आई

घोड़ा से आई

अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...

नोटवा से आई

बोटवा से आई

बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...

गाँधी से आई

आँधी से आई

टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...

काँगरेस से आई

जनता से आई

झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...

डालर से आई

रूबल से आई

देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...

वादा से आई

लबादा से आई

जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...

लाठी से आई

गोली से आई

लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...

महंगी ले आई

गरीबी ले आई

केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...

छोटका का छोटहन

बड़का का बड़हन

बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...

परसों ले आई

बरसों ले आई

हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...

धीरे-धीरे आई

चुपे-चुपे आई

अँखियन पर परदा लगाई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।

गोरख पाण्डेय जी द्वारा रचित(रचनाकाल :1978). उनकी अन्य रचनाएँ आप यहाँ पढ़ सकते हैं.

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16 comments:

  1. मुश्किल ही लगता है... समाजवाद का आ पाना....

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  2. समाजवाद त बबुआ बहुते धीरे धीरे आई...
    कविता त मस्त बा हौ...

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  3. का पता, आई के ना आई?

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  4. ये समाजवाद तो आ भी गया, संविधान में हाजरी लगाई और चला भी गया।

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  5. अब तो माओवाद आई भाई.. औरि बडा तेजी से आयी.. :)

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  6. गोरख पाण्डेय जी की रचना पसंद आयी धन्यवाद

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  7. बेहतरीन... मजा आ गया...

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  8. जो लोग भरोसा छोड़ सकते हैं वे बेशक छोड़ दे, लेकिन यह तय है कि एक दिन समाजवाद आएगा। आप जैसा युवा जब गोरखपांडे को याद करता है तो और भी यकीन हो जाता है।
    और भी ब्लाग पर आता-जाता हूं लेकिन आपके ब्लाग पर आपके ब्लाग पर आकर कुछ खुराक मिल ही जाती है, यह अलग बात है कि मैंने कभी टिप्पणी नहीं की। आज गोरखपांडे की रचना देखकर बड़ा अच्छा लगा। हम लोग जनगीतों में उनकी इस रचना का उपयोग करते रहे हैं। भिलाई में नाट्य़ मंडली कोरस से जुड़े लोग अब भी नाटक प्रारंभ होने के पहले यह गीत गाते हैं।

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  9. अरे तो अब तक आईल काहें नाही...

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  10. तो फिर चले.. नुक्कड़ नाटक करने..

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  11. अरे वाह ! यूनिवर्सिटी के दिनों में हमने खूब गाया है इसे और नुक्कड़ नाटक भी किये हैं इसे गाकर... उन दिनों की याद आ गयी...
    पंकज की बात सही है "अगर समाजवाद न आयी त माओवाद आयी, इ बात त पक्की है. माओवाद के रोके के बदे समाजवाद लवही के पड़ी. केहू मानै कि ना मानै"

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  12. खूबसूरत प्रस्तुति ! आभार ।

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  13. लागत बा, न आई!

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  14. हमने एक डायरी खरीदी थी जिसमें गौरख जी ये वाली रचना थी और एक बार पढते ही हम गौरख जी के फैन हो गए थे। और अपने ब्लोग पर भी यही रचना पोस्ट की थी। पर सबसे बडा सवाल कि समाजवाद आऐगा या नही? वैसे हमें उससे पहले आपके एक :) का इंतजार कर रहे है जो अभी तक नही आया हाँ मैसेज जरुर आया था कि वो आऐगा.... खैर:(

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  15. गोरख पाण्डेय जी की यह रचना हमने भी गाई है । अच्छा लगा उन्हे इस तरह याद करना ।

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  16. फिर से कह रहा हूँ टिप्पणी पढ़ के देखो अपने ब्लाग में क्या यह सहज है

    जितने वाद हैं सब किताबी हैं
    कोई मानव वाद नाम की चिड़िया भी है कहीं

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