Skip to content
कविता से पहले मैं अनुराग जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने मुझे त्रिवेणी संबंधित कुछ बढिया बाते बताई.. वैसे मैंने एक लिखी भी है मगर वो किसी और में डालूंगा.. पता नहीं वो त्रिवेणी ही है या कुछ और.. :)
परछाई
किसी परछाई का हाथ थामा है आपने?
मैंने थामा था एक बार..
कोरोमंगला कि तेज-भागती सड़कों पर..
हल्की बारिश कि बूंदों के बीच..
ट्रैफिक के हूजूमों में..
कभी ऑटो वाले को रुकने का
इशारा करते हुये..
तो कभी उसकी
खिलखिलाती हंसी के बीच..
अब भी उन सड़कों पर पहूंच कर,
अपने अस्तित्व का अहसास
खत्म सा महसूस होता है..
मानो पूरी दुनिया किसी परछाई में,
सिमट कर रह गई हो..
यह परछाई दिनो-दिन
और गहरी होती जाती है..
जैसे अमावस रात कि कालिमा..
फिर भी अच्छा लगता है,
उस परछाई का हाथ थामना...
Related Posts:
मेरे हिस्से का चांदकभी देखा है उस चांद को तुमने? ये वही चांद है, जिसे बांटा था तुमने कभी आधा-आधा.. कभी तेज भागती सड़कों पर, हाथों में हाथे डाले.. तो कभी उस पहाड़ी वाले शहर… Read More
हर तरफ बस तू ही तूउस मोड़ पर खड़ा था मैं फिर.. ये किसी जीवन के मोड़ कि तरह नहीं थी जो अनायास ही कहीं भी और कभी भी पूरी जिंदगी को ही घुमाव दे जाती है.. ये तो निर्जीव सड़… Read More
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आईसमाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आईसमाजवाद उनके धीरे-धीरे आईहाथी से आईघोड़ा से आईअँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...नोटवा से आईबोटवा से आईबिड़ला के घर में समाई, समाज… Read More
एक कला और सिखला दोसपने बुनने कि कला,तुमसे सीखा था मैंने..मगर यह ना सोचा,सपने मालाओं जैसे होते हैं..एक धागा टूटने सेबिखर जाते हैं सारे..बिलकुल मोतियों जैसे..वो धागा टूट … Read More
क्यों चली आती होक्यों चली आती हो ख्वाबों मेंक्यों भूल जाती होतुमने ही खत्म किया थाअपने उन सारे अधिकारों कोमुझ पर सेअब इन ख्वाबों पर भीतुम्हारा कोई अधिकार नहींक्यों चल… Read More
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता लिखी आपने ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteअच्छा है। ब्लॉगरी सब में अन्तस्थ कवि को स्वर देती है। लिखते रहो।
ReplyDeleteWah..wa
ReplyDeleteअच्छी रचना पीडी जी
बहुत खूबसूरत खयाल हैं. अक्सर लोग यह नहीं पहचान पाते कि जिस शख्स का उन्होंने हाथ थाम रखा है, वह जीता-जागता है या सिर्फ़ एक परछाईं...! अक्सर जुड़े हाथों के दरमियान ही सबसे जियादह फासले होते हैं.
ReplyDeleteबेहतरीन है...
ReplyDeleteयहाँ आने और सराहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.. :)
ReplyDeleteवैसे कार्तिकेय जी ने बिलकुल सही फरमाया है.. "अक्सर जुड़े हाथों के दरमियान ही सबसे जियादह फासले होते हैं."
जबरदस्त है भाई... वाकई..
ReplyDelete