Saturday, November 22, 2008

यादों कि उम्र और बैंगलोर/बैंगलूरू

आज सुबह बैंगलोर पहूंचा.. बरसात कि रिमझिम बूंदों ने मेरा स्वागत बखूबी किया.. कल रात जब ऑफिस से चला तब चेन्नई में मूसलाधार बरसात हो रही थी.. बरसात इतनी तेज थी कि मैं सोच में पर गया था, जाऊं या ना जाऊं? मगर घर समय पर पहूंच गया और जल्दी से सामान बांध कर निकल परा बस स्टैंड कि ओर.. ऑफिस से जब निकल रहा था तब मेरे साथ काम करने वाले मित्रों ने पूछा कि टिकट लिये हो या नहीं? मैंने कहा नहीं.. इस पर उनका कहना था कि यही तो मजा है बैचलर लाईफ का.. कहीं भी अचानक और कैसे भी जा सकते हैं और साथ में आहें भी भर रहे थे कि वो अब यह सब नहीं कर सकते हैं.. :)

खैर आज का दिन तो निकल गया.. कहीं जाने कि इच्छा नहीं थी सो सारा दिन मित्रों के साथ ही बिताया.. अब कल क्या करता हूं पता नहीं.. वैसे अभी से कोई प्लान भी नहीं..

चलते-चलते कुछ लाईन भी लिखते जाता हूं.. मुझे नहीं पता कि मैं यह किसी कि पंक्तियों से प्रेरित होकर लिखा या यूं ही मन में आ गया हो.. खैर जब आ ही गया है तो आप इसे पढ़ कर मुझे बता भी दें कि क्या इस तरह कि कुछ पंक्तियां आपने पहले पढ़ी हैं क्या?

यादों के चेहरे पर झुर्रियां नहीं परती..
वो ताश के महलों सी नहीं होती जो छूते ही बिखर जाये..
कहते हैं कुछ यादों कि उम्र बहुत लम्बी होती है..


अंत में - ज्ञान जी, क्या आप बता सकते हैं कि यह पोस्ट कि कौन सी कैटोगरी में आती है? सुबुकतावादी या अंट-संटात्मक? :)

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13 comments:

  1. यह शास्त्रीय ब्लागरी पोस्ट है, न मानें तो शास्त्री जी से पूछ देखें।

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  2. हम भी सालोँ पहले बेँगलुरु गये थे,उसके बाद आज तक मौका नही मिला.आपने याद ताज़ा कर दी उस दौरे की.

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  3. नीरज भी रहे थे बंगलौर दो साल,

    बहुत पुराने यादें ताजा हो गयी बंगलौर के नाम से, अगली बार जाना तो भारतीय़ विज्ञान संस्थान (टाटा इंस्ट्टीट्यूट) जरूर देख कर आना ।

    इस पोस्ट का क्लासिफ़िकेशन तो शास्त्रीजी ही बतायेंगे ।

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  4. मै कभी भी बेंगलूर नही गया, ओर कभी समय ही ही मिला, सुना है की बेंगलूर का मोसम बहुत ही सुंदर होता है,आप के साथी सही कहते है.
    धन्वाद

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  5. कुछ बैंगलूरु की तस्वीरें तो लगाओ.

    दो ही केटेगरी लिखी: सुबुकवादी और टेंशनात्मक? तीसरी केटेगरी कहाँ है वो दो कौड़ी वाली?? :)

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  6. बहुत बढिया रही भाई ये .............वादी पोस्ट ! :)

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  7. Hahahaha........
    andaaj pasand aya.
    mastwaadi post.
    ALOK SINGH "SAHIL"

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  8. बढ़िया सुबुकशण्टात्मक!

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  9. एन्जॉय किया जाय :-)

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  10. यादों की उम्र बहुत लंबी होती है... सही कहा प्रशान्त..

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  11. यादों के चेहरे पर झुर्रियां नहीं परती..
    वो ताश के महलों सी नहीं होती जो छूते ही बिखर जाये..
    कहते हैं कुछ यादों कि उम्र बहुत लम्बी होती है..

    सुन्‍दर भाव, खूबसूरत अभिव्‍यक्ति।

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  12. पोस्ट का क्लासिफिकेशन तो ज्ञान जी ही करेंगे. हम तो बस बधाई ही दे सकते हैं.

    बैचलर भावों की सुंदर अभिव्यक्ति.

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