"हम भाग जायेंगे यहां से.." खिजते हुये प्रियंका ने कहा..
"हां! तुम तो बैंगलोर भाग ही रही हो.."
"नहीं! मन नहीं लग रहा है.. हम अभी भाग जायेंगे.."
"अच्छा रहेगा कि चलो कहीं घूम कर आते हैं.. क्या बोलती हो? समुद्र तट कैसा रहेगा?"
"हां.. चलो.."
विकास से पुछा, मगर उसे काम था और उसकी एक मित्र भी आई हुई थी सो साथ नहीं चलने कि स्थिति में था.. फिर थोड़ी देर में हमारा प्लान बदल गया..
"चलो पहले सत्यम चलते हैं.. वहां मूवी का टिकट देखते हैं.. उसके बाद समुद्र तट जायेंगे.." प्रियंका ने कहा..
"ठीक है.. चलो.."
प्रियंका गाड़ी चला रही थी और मैं पीछे बैठा हुआ था.. उस समय मैं गाड़ी चलाने के मूड में नहीं था, सो चलाने का ऑफर भी नहीं किया.. बस आराम से पीछे बैठा रहा.. उस समय लगा कि घर में जब होता हूं तो भैया हमेशा पीछे क्यों बैठते हैं.. बाईक चलाने का अपना अलग ही लुत्फ़ होता है मगर पीछे बैठने का मजा भी अलग ही होता है..
शनिवार रात का गोलमाल रिटर्न्स का टिकट मिल रहा था.. मगर वो किसी को नहीं देखना था.. फिर पता चला कि रविवार कि रात फैशन का टिकट मिल रहा है.. विकास को फोन किया, वो चलने को तैयार था.. अफ़रोज़ को फोन किया, उसने फोन नहीं उठाया.. शिवेंद्र को फोन ही नहीं किया, पता था कि वो कहेगा कि नहीं जाना है.. सो उससे बिना पूछे ही उसका भी टिकट ले लिये.. :)
"अब कहां चलें? सी बीच?" प्रियंका ने पुछ..
"चलो स्पेंसर प्लाजा चलते हैं, यहीं पास में है.. मुझे एक स्पोर्ट्स शू लेने का बहुत दिन से मन कर रहा है.. वहां एडिडास के शोरूम में डिस्काऊंट तो चल रहा होगा ना?"
"पता नहीं.. चल कर देख लेते हैं.."
फिर से प्रियंका गाड़ी चलाने लगी और मैं पीछे आराम से बैठ गया.. तभी सामने एक फ्लाईओवर दिखा.. मैंने पूछा, "ये रास्ता किधर जाता है?"
"पता नहीं.. चलो चल कर देख लेते हैं.."
फ्लाईओवर से उतरने पर पता चला कि हम रायपेट्टाह पहूंच गये हैं.. रास्ता मुझे कुछ जाना पहचाना लग रहा था मगर बिलकुल सही पता नहीं चल रहा था कि हम कहां हैं.. फिर भी आगे बढते चले गये.. मुझे बस दिशा ज्ञान था कि समुद्र तट जिस दिशा में है हम उसी दिशा में बढ रहे थे.. थोड़ी देर बाद पता चल ही गया कि हम उसी रास्ते पर हैं जिस इलाके में पहले मैं रहता था.. दिल खुश हो गया.. बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ था.. उत्साह के साथ प्रियंका को बताना शुरू कर दिया कि देखो ये क्या है तो वो क्या है.. पता नहीं मन ही मन में कितनी गालियां दी होगी मुझे, मगर सामने कुछ बोली नहीं.. :)
उसने पूछा, "ईगा थियेटर कहां है?"
"चलो वो भी आज दिखा ही देता हूं.." फिर मैं उसे रास्ता बताने लगा.. माऊंट रोड से होते हुये चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन.. फिर वहां से पूनामल्ली हाई रोड पकड़ कर चेटपेट से होते हुये मैंने उसे ईगा थियेटर दिखाया.. ईगा थियेटर कि खूबी यह है कि चेन्नई में बस यही इकलौता सिनेमा हॉल है जहां सिर्फ हिंदी सिनेमा लगती है.. रास्ते में हमने अमरूद भी खरीदा जिसे मैं आराम से पीछे बैठ कर खाया..(पीछे बैठने का फायदा अब समझ में आया? :))
बीच ट्रैफिक में प्रियंका को दौड़ा पड़ने लगा.. :) कहती है, "मुझे चिल्लाने का मन कर रहा है.."
"हां, चिल्लाओ.. लोग तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे.. मुझे ही मारेंगे.. अब लड़की के पीछे बैठा हुआ हूं और लड़की चिल्लाने लगे तो और क्या होगा?"
"नहीं मुझे चिल्लाना है.."
"ठीक है चिल्लाओ.."
और लगी वो चिल्लाने.. खैर अच्छी बात तो यह थी कि ट्रैफिक की आवाज में उसकी आवाज दब गई थी और किसी ने नहीं सुनी.. घड़ी में देखा तो 8 बजने जा रहे थे.. हम लगभग 30-35 किलोमीटर घूम चुके थे.. अभी तक अन्ना नगर का सिग्नल भी नहीं आया था जहां से हमें सी.एम.बी.टी. से होते हुये वडापलनी, अपने घर जाना था..
"आज रात 10.30 में सी-बीच चलोगे?" उसने पहले पूछा.. फिर झिझकते हुये कहा, "इतनी रात जाना ठीक रहेगा?"
"नहीं.. रात के समय सी-बीच पर कैसा माहौल रहता है वो मुझे नहीं पता.. मैरिना बीच का मुझे पता है कि वो रात में जाने लायक नहीं है.. बेसंत नगर बीच का मुझे पता नहीं.." थोड़ी देर के लिये शांति सी छा गयी.. वो चुप थी और ट्रैफिक का शोर बढ गया था.. मुझे लगा कि उसे सी-बीच जाने का बहुत मन है.. सो मैंने आगे कहा, "चलो कल सुबह सूर्योदय देखने चलते हैं.. क्या कहती हो?"
बस फिर क्या था.. प्रियंका खुश.. :) "हां हां.. ये ठीक रहेगा.. कल सुबह मुझे 3.30 मे उठा देना और अभी किसी को मत बताना.. सरप्राईज देंगे सभी को.."
मैंने कहा, "सभी को पहले ही बता दो, नहीं तो पता चलेगा कि सुबह-सुबह हमे सरप्राईज मिल रहा है और कोई नहीं गया.." और बस, हमारा प्लान पक्का हो गया.. फिर यूं ही बातें होती रही और प्रियंका बेहद भयंकर वाले ट्रैफिक में से बहुत कुशलता के साथ गाड़ी निकालते हुये घर पहुंचा दी..
अगले भाग में समुद्र तट का सूर्योदय..