"देखो हमारे शहर के लोग किस तरह प्यार करते हैं!" लड़की ने आँखों से इशारा करते हुए प्रेम में डूबे जोड़े कि तरफ दिखाया.. "क्या तुम ऐसे कर सकते हो?" उसके कहने के तरीके में भी एक व्यंग्य छुपा हुआ था.. या शायद उसे चिढा रही थी.. या शायद उसका हौसला परख रही थी!!
"मैं इन..." छिछोरे शब्द कहने से पहले वह थोडा अटका, प्रेम में डूबे लोगों के लिए छिछोरा शब्द कहना उसे अच्छा नहीं लगे या शायद मुझे खुद ही अच्छा नहीं लगा वह शब्द कहना, भले ही उनका वह प्रेम किसी पल्प साहित्य के किरदारों सा ही हो, भले ही वही जोड़े मात्र चंद दिनों बाद किन्ही और बाहों में उसी जगह देखने को मिलें.. ठीक वैसे ही जैसे प्रेम में बार-बार पड़ने वाले लोगों को कुछ बुरा कहने की हिम्मत वह अभी तक नहीं जुटा सका है, प्रेम हर हाल में पवित्र ही होता है, चाहे वह क्षण भर का ही हो, जब तक उसमें सिर्फ और सिर्फ वासना का ही अंश ना हो, उस हद तक "...लोगों से कहीं पवित्र प्रेम कर सकता हूँ.. या यूँ कहो कि कर रहा हूँ.." आगे ना लड़की ने कोई सवाल किया और ना ही लड़के ने कुछ कहा, एक मूक संवाद मात्र या शायद वह भी नहीं.. गहरा सन्नाटा...
बगल जमीन पर बैठे उस कुत्ते ने उठ कर अपनी जगह बदली और उसी बेंच के नीचे आकर बैठ गया.. कुत्ते ने उसके पैरों को सूंघ कर देखा, वह चौंक गई और दोनों ने ही ठहाके लगा दिए.. दो-तीन गिलहरियां भी तब तक आस-पास फुदकने लगी थी, कुछ खाने के लिए तलाश कर रही थी.. बगल में कम ही दिखने वाली एक-दो गौरैयों के साथ कुछ कौवे भी फुदक रहे थे.. गिलहरियों और गौरैयों को देख दोनों के बीच के सन्नाटे में मुस्कराहट घुल गई! कुछ और समय वहाँ गुजारने के बाद समय का ख्याल कर चल दिए..
"हम इतनी देर से साथ रहे, तुम मुझसे मिलने क्यों आते हो यह भी हम दोनों जानते हैं.. मगर फिर भी पूरे समय तक एक दूरी बना कर बैठे रहे.. एक दफे हाथ तो पकड़ ही सकते थे.." तब तक वे दोनों ऑटोरिक्शे में बैठ चुके थे, जो कुछ ही समय बाद दोनों को अलग-अलग रास्तों पर भेजने के लिए क्षण भर के लिए रुकने वाली थी.. बेचैनी का ग्राफ दोनों ही तरफ ऊपर कि ओर चढ रहा था, जब लड़की ने यह कहा.. उसने उसकी तरफ देखा और धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया.. वह थोड़ी झिझकी, हाथ छुड़ाने कि कोशिश की फिर शायद यह सोचकर कि यह वक़्त भी निकल ना जाए, कोशिश बंद कर दी उसने!!
काश के जिंदगी भी किसी सिल्वर स्क्रीन की ही तरह होती, एक फंतासी ताउम्र बनी रहती, वे दोनों जब उसी ऑटोरिक्शा में जब आखिरी बार कुछ लम्हों के लिए हाथ पकड़े बैठे रहे थे, बस उसी छण कैमरे का क्लोज अप उन हाथो पर जाकर खत्म हो जाता.. आगे क्या हुआ, किसी को पता नहीं.. सभी किसी कयास में ही डूबे रहते.. किसी हैप्पी इन्डिंग की तरह सभी खुश रहते हैं..
मगर यह यथार्थ है, असली जिंदगी.. इतना सब कुछ होते हुए भी वह मरने की हद तक जिन्दा था..
Ek saans mein padne ke baad Bahut der tak khaamosh baitha raha ... Nihshabd karti post ....
ReplyDeleteकाश प्रेम भी सहज और सरल होता...अमृतसम हो जाता तब तो।
ReplyDeleteअब आगे से चेतावनी जरुर छापना --
ReplyDeleteकृपया घायल-दिल इंसान दूर रहें इस पोस्ट से ।।
आय-हाय इस दर्द को, काहे रहे उभार ।
आशिक शायर बन गया, पड़ी वक्त की मार ।
पड़ी वक्त की मार, बदलता जीवन पाला ।
मरने की हद उफ्फ़, लगा किस्मत पर ताला ।
ढोता पल-पल स्वयं, आज तक लाश सर्द को ।
पट्टा कर दे बेंच, दफ़न कर सकूँ दर्द को ।।
यही त बवाल है जी! जिंदगी फ़ंतासी नहीं है !
ReplyDeleteतुम्हारा लिखा पढ़ा.
ReplyDeleteइससे पहले भी कभी कभी कहीं कहीं पढता रहा.
तुम टेकनो कैसे हो.. तुम्हारा ऑफिस जाने. लेकिन अपने मन के एहसास बड़ी ईमानदारी और खूबसूरती से लिखते हो. मन का सोचा हमेशा होता नहीं. सच्चाइयों को स्वीकार करना ही पड़ता है.
कुछ लोग आसमान के सितारे होते हैं. बहुत पास लेकिन अनंत कि दूरी पर. हमेशा सामने लेकिन कभी पास नहीं.
सिल्वर स्क्रीन फ़ैंटेसी ही तो बेचता है, बस्स.
ReplyDeleteहैप्पी एंडिंग होती तो कित्ता अच्छा होता
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