रिया ब-मुश्किल ही गाली रोक पायी. %#$@%
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जैसे जिंदगी वैसा ही बातों में विरोधाभास... कहना, काटना फिर वही कहना.. नाटक के दो जुदा पात्र अपने ही अन्दर. झगडा तो ता-उम्र चलता रहा... चलते फिरते उस रंगमच से आप काफी कुछ सीख सकते हैं. अव्वल तो ये की वैसा दूसरा ना होगा ये मानते हुए उससे नफरत करना और दूरी बना कर रखना. आवाज़ कभी यूँ की जैसे सरौते से सुपारी काट रहे हों और कशिश यूँ कि कोहरे के पीछे हल्का दीखता चेहरा.... औंधे पड़े हुए कहीं डीप कट ब्लाउज वाली स्त्री ... अधिकार हुआ तो क्या हुआ ... जिसे चूमने जा रहे हों रहे हों उसे पहले कम से कम बता तो दो...
आधी रात को जब भी खवाब महके हाथ पर कुछ पेशानी से यूँ ही कुछ ठंढी बूंदे गिरती जाती थी.
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उसने पेड़ की डाल पकड़ के आमिर खान की तरह 'पहला नशा, पहला खुमार' गाना था लेकिन उसने सेनोरिटा को चुना... स्पेनिश बोलने में जुबान लड़खड़ा जाती थी लेकिन भरपूर कोशिश की. चाहत के दो पल भी मिल पाए पर विशेष जोर देता (ये व्यक्तिगत रूप से अभिव्यक्त की गयी सामूहिक गान था) डाल पर झूमने के बजाय मेट्रो के नीचे लेट कर गाने लगा... कलाई से खून जब फव्वारे की तरह फूटा तो ग्लास में लाल पानी का चढ़ता नज़र आया. मेट्रो जब गुज़र चुकी वह फिर उठ खड़ा हुआ उसे गुमान था नायिका अपने सहेली को कविता सुना रही होगा - सखी वो मुझसे कह कर जाते... उधर लड़की ने भी गीत बदल लिया था "उसने जब मेरी तरफ प्यार से देखा होगा, मेरे बारे में बड़े गौर से सोचा होगा:
गति सम्बन्धी कुछ नियम भौतिकी के सत्य हुए थे. बस ज़रा दोनों ने अपने अपने युग बदल लिए थे.
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ऑरकुट पर नहीं वो नहीं मिला तो लड़की ने फेसबुक पर उसे खोजना शुरू किया. थोड़ी मुश्किल हुई लेकिन मिल गया. प्रोफाइल में चेहरा उभरा तो दिल धक् से रह गया. ह्म्म्म... ! तो आँखें अभी भी फरेबी हैं और दिल सुख़नसाज... तस्वीर में खुश ही लग रहा है.
उधर तस्वीर भी अपनी पलक बिना गिराए पूछ रहा था - हमसे ना पूछो हिज्र के किस्से, अपनी कहो अब तुम कैसे हो ?
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लड़की ने बादलों से घिरे दिन को देख को झूले पर झूलते हुए लड़के को देखा. उसका दिल रीझ आया. गाना शुरू किया - तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पे ख़तम... लड़का खुश हुआ, बोला - ओ सात घाट की रानी, कह्नानी- जवानी - कहानी.. बेसाख्ता निकले ये शब्द! तब कहाँ पता था की गीत के बीच में थोड़ी देर के लिए बिजली गयी थी और इसी में घोटाला हो गया बोले तो हंगामा हो गया...
बरसों बाद दोनों फिर मिले और अबकी कह्नानी- बुढ़ापा - कहानी थी. स्मृति भी साथ छोड़ देती थी.
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लेखक: सागर शेख
संकलनकर्ता: पूजा
प्रस्तुतकर्ता: प्रशान्त
behtareen tana bana
ReplyDeleteshaandaar prastuti.......
गजब किये हो रे!!! सच्चे पोस्ट कर दिये तुम तो :)
ReplyDeleteसंजोग से आज गुलजार साहब के जन्मदिन पर यह भी एक रोचक प्रस्तुति रही.
ReplyDeleteइतना सेन्टिया पढ़ने में घबरा जाते हैं हम तो, आप ही बने रहो सेन्टीमीटर।
ReplyDeleteye ladka katal likhta hai.... :) ek ek line pasand aayi
ReplyDeleteसागर सच में गजब लिखता है.
ReplyDeleteमना करो सागर को रोज़ रोज़ इतना अच्छा लिखेगा तो हम बोर हो जायेंगे ..... अब ऐश्वर्या सबसे खूबसूरत है पर उसको भी लगातार नहीं देख सकते ना
ReplyDeleteSagar ki katarano ko yahan rakhne ka shukriya P.D. waise aajkal bahut kutar rahe hain.....bole to bebhaav ....ByGod kutarta achcha hai :-)
ReplyDeleteनाटक के दो जुदा पात्र अपने ही अन्दर. झगडा तो ता-उम्र चलता रहा... wo shakhs thaa kamaal kaa, kabhi duniyaa kabhi khud se ladtaa rahaa...!!!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeletehamko to kuchho samajh mein nahi aaya, itna senti ham nahi hai bhai............
ReplyDelete:) :) कायदे से पढ़ना पड़ा... कुछ समझ लिए और कुछ समझ ही नही आया..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ।
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