कुछ समय इन खिड़कियों से झांकना चाहता हूँ,
इस इन्तजार में कि शायद तुम उस रास्ते से गुजरो अपनी उसी काली छतरी के साथ..
मैं उन रास्तों पे चलना चाहता हूँ,
इस यकीन के साथ के कि कल तुम यही से गुजरी थी..
और कल फिर गुजरोगी,
उसी नीले कपड़े में या शायद गुलाबी..
मैं वह पहाड़ हो जाना चाहता हूँ,
इस विश्वास के साथ के कभी
तुम जरूर अपनी उन छुट्टियों को जाया करने
यहाँ मुझसे मिलने जरूर आओगी..
मैं वह पहाड़ी नदी हो जाना चाहता हूँ,
इस उम्मीद के साथ के तुम
इसकी कल-कल सुनते हुए अपने नंगे पाँव इसमें रख कर
अपनी थकान जरूर भूल जाओगी..
मैं वह छोटा बच्चा हो जाना चाहता हूँ,
जिसे देख तुम मुस्कुरा उठो
थोड़ी देर के लिए खेलते हुए अपने गम भूल जाओ..
मैं वह हवाई जहाज हो जाना चाहता हूँ,
जिसे देखते हुए तुम सर ऊंचा करती हो..
वह ऊंचा सर,
गर्व सा ऊंचा सर सा ही कुछ दीखता है..
मैं वह तन्हा शहर हो जाना चाहता हूँ,
जिसमें भटकते हुए तुम्हे मंजिल ना मिले,
वह भटकाव अनंत हो ताकि अनंत समय तक तुम मुझमें रहो..
मैं वह मुस्कान बन जाना चाहता हूँ,
जो तुम्हारे होठों से हमेशा लगा रहे,
तुम्हारा ही एक हिस्सा बन कर..
तुम मुस्कुराओ तो मैं भी मुस्कुरा सकूँ..
मैं वह छोटा तुलसी पौधा हो जाना चाहता हूँ,
जिसे सींचते हुए एक नमी मेरे-तुम्हारे बीच हमेशा बनी रहे..
एक पवित्र बंधन जैसा ही..
मैं वह किताब हो जाना चाहता हूँ,
जिसकी कहानियां तुम रोज रात पढते-पढते सो जाया करती हो,
अपने सीने पर रखकर और उनके पात्र बनकर
मैं तुम्हारे ख्वाबगाह में बेखटक भटकना चाहता हूँ..
मैं बस तुम में हो जाना चाहता हूँ, कि कभी तुमसे जुदा ना हो पाऊं..
इस इन्तजार में कि शायद तुम उस रास्ते से गुजरो अपनी उसी काली छतरी के साथ..
मैं उन रास्तों पे चलना चाहता हूँ,
इस यकीन के साथ के कि कल तुम यही से गुजरी थी..
और कल फिर गुजरोगी,
उसी नीले कपड़े में या शायद गुलाबी..
मैं वह पहाड़ हो जाना चाहता हूँ,
इस विश्वास के साथ के कभी
तुम जरूर अपनी उन छुट्टियों को जाया करने
यहाँ मुझसे मिलने जरूर आओगी..
मैं वह पहाड़ी नदी हो जाना चाहता हूँ,
इस उम्मीद के साथ के तुम
इसकी कल-कल सुनते हुए अपने नंगे पाँव इसमें रख कर
अपनी थकान जरूर भूल जाओगी..
मैं वह छोटा बच्चा हो जाना चाहता हूँ,
जिसे देख तुम मुस्कुरा उठो
थोड़ी देर के लिए खेलते हुए अपने गम भूल जाओ..
मैं वह हवाई जहाज हो जाना चाहता हूँ,
जिसे देखते हुए तुम सर ऊंचा करती हो..
वह ऊंचा सर,
गर्व सा ऊंचा सर सा ही कुछ दीखता है..
मैं वह तन्हा शहर हो जाना चाहता हूँ,
जिसमें भटकते हुए तुम्हे मंजिल ना मिले,
वह भटकाव अनंत हो ताकि अनंत समय तक तुम मुझमें रहो..
मैं वह मुस्कान बन जाना चाहता हूँ,
जो तुम्हारे होठों से हमेशा लगा रहे,
तुम्हारा ही एक हिस्सा बन कर..
तुम मुस्कुराओ तो मैं भी मुस्कुरा सकूँ..
मैं वह छोटा तुलसी पौधा हो जाना चाहता हूँ,
जिसे सींचते हुए एक नमी मेरे-तुम्हारे बीच हमेशा बनी रहे..
एक पवित्र बंधन जैसा ही..
मैं वह किताब हो जाना चाहता हूँ,
जिसकी कहानियां तुम रोज रात पढते-पढते सो जाया करती हो,
अपने सीने पर रखकर और उनके पात्र बनकर
मैं तुम्हारे ख्वाबगाह में बेखटक भटकना चाहता हूँ..
मैं बस तुम में हो जाना चाहता हूँ, कि कभी तुमसे जुदा ना हो पाऊं..