Wednesday, November 07, 2012

श्रेणियां

सिगरेट शराब भाँग अफीम गांजा अन्य कोई भी ड्रग ... ... प्यार फिर जिंदगी. -- नशे को श्रेणीबद्ध करने पर निकला परिणाम कुछ दिन पहले ऐसे ही आये ख्...

Friday, October 05, 2012

प्रतीक्षानुभूति

वे दोनों मिले, एक फीके मुस्कान के साथ. फीकापन क्या होता है वह उस समय उसे देखते हुए समझने की कोशिश कर रहा था, ना समझ पाने कि झुंझलाहट भी उसके चेहरे पर थी. वह सोच रहा था वो क्या सोच रही होगी अभी? "पास में ही एक कैंटीन है, चलो उधर ही चल कर बैठते हैं." जाने किन ख्यालों में गुम थी वो. "चलो" कॉफी पीते हुए...

Wednesday, August 15, 2012

लोनलिनेस इज द बेस्ट फ्रेंड ऑफ़ ओनली ह्युमनस

हम हों चाहे किसी जलसे में अकेलापन का साथी कभी साथ नहीं छोड़ता हमारा हम हों चाहे प्रेमिका के बाहों में अकेलापन का साथी कभी साथ नहीं छोड़ता हमारा हम पा लिए हों चाहे मनुष्यता का शिरोबिंदु अकेलापन का साथी कभी साथ नहीं छोड़ता हमारा हम बैठे हों किसी प्रयाग में अकेलापन का साथी कभी साथ नहीं छोड़ता हमारा बुद्ध...

Wednesday, August 01, 2012

अतीत का समय यात्री

हम मिले. पुराने दिनों को याद किया. मैंने उसके बेटे कि तस्वीरें देखी, उसने मेरे वर्तमान कि पूछ-ताछ की. सात-आठ मिनटों में हमने पिछले छः-सात सालों को समेटने की नाकाम कोशिश की. - तुम मोटी हो गई हो! - मम्मी जैसी हो गई हूँ ना? मम्मी बन भी तो गई हूँ. और एक बेतक्कलुफ़ सी हंसी... - तुम शादी कब कर रहे हो? बूढ़े...

Tuesday, July 03, 2012

यह तोता आज भी पिंजड़े में बंद छटपटा रहा है

बचपन में एक तोता हुआ करता था. यूँ तो कई तोते हमने एक-एक करके पाले, और एक-एक करके सभी भाग गए. वह तोता भी जिसके बारे में लिख रहा हूँ. मगर यह तोता हमारे यहाँ सबसे अधिक समय तक रहा, तक़रीबन 8-9 साल. पापा के कई मातहत और हम बच्चे भी उसे कुछ बोलना सिखा-सिखा कर थक गए, मगर उसे ना कुछ सीखना था, और ना ही सीखा!  शुरुवाती...

Tuesday, June 26, 2012

होने अथवा ना होने के बीच का एक सिनेमा

कुछ चीजें अच्छी-बुरी, सच-झूठ के परे होती है. वे या तो होनी चाहिए होती हैं अथवा नहीं होनी चाहिए होती हैं. गैंग्स ऑफ वासेपुर भी इसी कैटेगरी में आता है.. हमारे उन भारतीय दर्शकों को, जो विदेशी सिनेमा देख कर आहें भरते हैं कि...

Wednesday, June 06, 2012

जन्म और मृत्यु

मेरे जन्म को लेकर  अफवाहें अपनी चरम पर हैं मगर मेरा जन्म  ठीक उसी दिन हुआ था जब मिला था  तुमसे पहली दफे अब मौत का दिन भी मुक़र्रर हुआ है ये वही दिन होगा जब यकीन होगा अब ना होगी मुलाक़ात तुमसे फिर कभी...

Thursday, May 31, 2012

लव यू मम्मी - दो बजिया वैराग्य

जब छोटा था तब...कहीं भी जाऊं, मम्मी का आँचल पकड़ के चलता था.. गाँव हो या कोई और जगह, अधिकतर गाँव ही हुआ करती थी, भैया-दीदी पूरा गाँव नापते रहते थे, मगर मैं, मम्मी कहीं भी जाए, उनकी साडी का एक छोड़ पकड़ कर चुपचाप खड़ा रहता था.. मम्मी कितना भी डांटे, या मना करे, मगर चाहे कुछ भी हो, मैं अपना कर्म नहीं...

Friday, April 06, 2012

और वह मरने कि हद तक जिन्दा रहा!!

दो लोग अनिश्चितता की स्थिति में बैठे हुए थे.. एक ही बेंच पर.. दोनों अपने कोने को पकड़ कर, जैसे किसी समानांतर रेखा कि ही तरह कभी ना मिलने वाले.. यह एक लंबी बेंच थी जिस पर कोई भी बैठ सकता था, और अभी वे दोनों बैठे हुए थे.....

Tuesday, March 27, 2012

इकबालिया बयान ! - भाग एक

बयान एक - मेरा नाम अदिति है. अब वो क्या है ना कि, जब भी मेरे प्रछांत मामू मेरे यहाँ आते हैं दिल्ली में तो ज्यादा टाईम मेरे साथ नहीं रहते हैं. बहुत थोड़े समय के लिए ही आते हैं. और उनको कितना भी समझाते हैं कि बालकनी के नीचे...

Sunday, March 25, 2012

मुट्ठी भर हवा

मुझे भरोसा था, तब भी और अब भी, कि मैं हवा को हाथों से पकड़ सकता हूँ. कई सालों से मैंने कोई कोशिश नहीं की, मगर फिर भी बचपन के उस भरोसे को नकारना नामुमकिन है. बचपन का हर भरोसा आज भी उतना ही पुख्ता लगता है, जिसे नकारने की बात सोचना भी गुनाह से कम नहीं, और उस भरोसे को साबित करने की चेष्टा भी किसी मूर्खता...

Saturday, March 03, 2012

भोरे चार बजे की चाय अब भी उधार है तुमपे दोस्त!!

दिल्ली में पहली मेट्रो यात्रा सन 2004 में किया था, सिर्फ शौकिया तौर पर.. कहीं जाना नहीं था, बस यूँ ही की दिल्ली छोड़ने से पहले मेट्रो घूम लूं.. नयी नयी मेट्रो बनी थी तब.. उसके बाद 2009 मार्च में मुन्ना भैया के घर जाते हुए, वैसे आज मुझसे उस जगह का नाम पूछेंगे तो मुझे याद नहीं, मगर दिल्ली से बाहर ही था..फिर...