"पास में ही एक कैंटीन है, चलो उधर ही चल कर बैठते हैं." जाने किन ख्यालों में गुम थी वो.
"चलो"
कॉफी पीते हुए वह बरबस ही पूछ बैठी, "इतने दिनों बाद आये हो, कैसा लग रहा है यहाँ?" और बेहद लापरवाही के साथ वह बोल गया "तुम्हारे पास होने से यह शहर भी हसीन लगने लगा है" बोल चुकने के बाद वह सोचने लगा "शहर तो सारे एक से ही होते हैं, बेतरतीब से. यह हसीन शहर कैसा होता होगा?" और खुद अपनी कही बातों पर भी एक फीकी मुस्कान दे बैठा.
वहाँ भीड़ बढती जा रही थी. उन्होंने वहाँ से उठना पसंद किया. बाहर निकल कर अब कहाँ जाया जाए? पास के एक चबूतरे पर बैठ गए, जहाँ लड़के को बैठने में कोई परेशानी नहीं थी वहीं लड़की नाक-भौं सिकोर रही थी.
"क्या समय हुआ है?" अब से पहले तक जो औपचारिकता और फीकापन दोनों के चेहरे पर था वह छंट चुका था. "मुझे साढ़े पांच बजे तक घर के लिए चले जाना होगा."
"दो बज कर पच्चीस मिनट" उसने कलाई घडी पर समय देखते हुए बताया.
"तुम अपनी झुल्फों को हमेशा को तो हमेशा अपनी तर्जनी में फंसा कर लपेटती रहती हो? मगर आज तो यह हवा में लहरा रहे हैं?"
ठिठक कर अपनी जुल्फों को तर्जनी से पकड़ कर इठलाती हुई अपने कानो में खोंसती हुई वह जैसे सफाई दे रही हो, अपने उस झूठ की जो उसने पिछले दफे कही थी, "जब बिना मांग के बाल संवारती हूँ तब बालों को अँगुलियों में लपेटती हूँ, वर्ना यूँ ही कानो में खोंस लेती हूँ."
"अच्छा अब समय क्या हुआ?" एक लम्बी खमोशी के बाद उसने पूछा.
"दो बज कर पैतीस मिनट"
वह उसकी तरफ देख रहा था, एकटक.. अचानक वह चीख उठी, उसके साथ वह भी चिहुंक उठा. "क्या हुआ?" लड़की ने सामने इशारा किया, एक गाय कहीं से घास चरते हुए उधर ही आ रही थी. वह हडबडा कर उठा, गाय को डरा कर भगाने की कोशिश किया. फिर वापस आकर बैठ गया. मन ही मन खुद पर हँसते हुए. वह गाय खुद ही जब तक चरते हुए वहां से नहीं चली गई तब तक लड़की उसके हाथों को पकड़ कर बैठी रही और वह उसके डरे हुए चेहरे को देख कर मुस्कुराता रहा..
अब कितने बजे? लड़का चिढ कर बोला, "जाने कि इतनी ही जल्दी है तो अभी चली जाओ."
"अरे, टाईम तो बताओ?"
"नहीं बताता! तुम जाओ. अभी." इतना सुनते उसने लड़के का हाथ पकड़ कर घड़ी में समय देख लिया.
लड़की ने एक कहानी को याद किया, जिसमें नायक-नायिका इसी प्रकार मिलते हैं. घंटो साथ बैठने के बाद भी एक-दूसरे से एक फीट की दूरी बनाए हुए थे. फिर उन दोनों ने उस कहानी को याद किया.
"क्या किसी दूसरे की कहानी को जीने के लिए हम अभिसप्त हैं?" कहकर वह मुस्कुराया और खिसक कर जरा पास बैठ गया और वह भी झिझक कर दूसरी दिशा में खिसक गई. यह देख वह वापस अपनी जगह पुनः आ बैठा. किसी अपराधबोध से वह मुस्कान अब तक विलुप्त हो चुकी थी. यह देख वो मुस्कुराई और उसके पास उसके बाहों को पकड़ कर बैठ गई और फिर शरारत से पूछ बैठी, "समय क्या हुआ"? इस दफ़े वह चिढा नहीं, उसके हाथ को इस तरह पकड़ कर बैठा रहा जैसे जिंदगी को मुट्ठी में बंद करना चाह रहा हो!
शाम ढलने को थी, दोनों थके हुए से कदमों से टेम्पो स्टैण्ड की ओर बढ़ रहे थे. भविष्य की कोई चिंता किये बिना.
मरा हुआ प्रेम अक्सर पेड़ पर बैठे प्रेत की तरह होता है, आप चाहे कितना भी दुनिया से कह लें की बात बीत चुकी है, अब आप याद नहीं करते उन बातों को, मगर आप अपनी अंतरात्मा के वेताल से वही शब्द नहीं कह पाते हैं, अगर कहेंगे तो आपके सर के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे, और यदि सच कहेंगे तो वह वेताल पुनः उसी पेड़ पर जा बैठेगा! - गीत चतुर्वेदी जी से उत्प्रेरित यह पंक्ति.
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हमारा प्यार बहुत-कुछ हमारी ज़िन्दगी की तरह है. आदमी जानता है कि वह बुरी तरह ख़त्म होगी, काफी जल्दी ख़त्म होगी, वह हमेशा रह सकेगी, इसकी उसे रत्तीभर उम्मीद नहीं है, फिर भी, सब जानते हुए भी- वह जिये चला जाता है. प्यार भी वह इसी तरह करता है, इस आकांक्षा में कि वह स्थायी रहेगा, हालांकि उसके 'स्थायित्व' में उसे ज़रा भी विश्वास नहीं है. वह आँखें मूंदकर प्यार करता है...एक अनिश्चित आशंका को मन में दबाकर- ऐसी आशंका, जिसमें सुख धीरे-धीरे छनता रहता है और वह इसके बारे में सोचता भी नहीं.
- आखिरी पंक्ति "ईवान क्लिमा" की लिखी हुई
बहुत बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteपढते चले जाने का मन किया..
सादर
अनु
पोस्ट पढ़ते हुए जाने क्यों लगा कि इसमें टिप्पणी का option नहीं होगा..
ReplyDeleteकमेन्ट नहीं लगाना था, पर बिना सोचे लगा दिया.
ReplyDeleteबात पूरी सी नहीं हुई पीडी भाई ...खैर आइडिया लग रहा है वैसे :(
ReplyDeleteक्या हुआ प्रेम भुलाया जा सकता है, जीवन भर लखेदता है।
ReplyDeletevery beautiful story
ReplyDeleteकुछ खोई-खोई सी रचना....बहुत ही खूब...|
ReplyDelete...ivaan kleema ki likhi hui aur nirmal verma dwara anuvaadit? shayad..
ReplyDeleteहै तो इवान क्लिमा की ही लिखी हुई, और यह भी जाहिर है की वह हिंदी में नहीं लिख सकती हैं. अनुवाद किसका है यह पता नहीं.
Delete"क्या किसी दूसरे की कहानी को जीने के लिए हम अभिसप्त हैं?".........
ReplyDeleteबहुत खूब!