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एक इन्कलाब आयी, पूरी दुनिया सुधर गई..
हजार और आये, हम न सुधरे हैं औ ना सुधरेंगे..
मेरे पिछले पोस्ट पर कुछ लोगों ने कमेन्ट में मुझे सुधारने कि सलाह दे डाली थी.. उसी पर यह माइक्रो पोस्ट है.. ;)
वैसे मैं यह बता देना चाहता हूँ कि मैं इस शायरी को लिखने का दावा नहीं कर रहा हूँ.. किसने लिखा है यह मुझे पता नहीं है.. :)
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न सुधरो अभी.. शादी हो जाने दो फिर बतायेगें..:)
ReplyDeleteइस शायरी से मुझे टॉम सायर याद आए।
ReplyDeleteअरे प्रशांत भाई..ये हो क्या रहा है..किसने दी आपको इतनी गंदी सलाह...अजी कोई कैसे कह सकता है किसी ब्लॉगर को सुधरने के लिए...वाह क्या सायरी कही है...कमाल है ..
ReplyDeleteachchha hai lage raho
ReplyDeleteबहुत खूब पी,डी, भाई " जमाना सुधर जाए पर हम नहीं सुधरेंगे" हम अंग्रेजो के जमाने के जेलर है . हा हा
ReplyDeleteyuhi haste aur hasaate rahe sab ko,yahi dua.
ReplyDeleteआप दूसरो की नही अपनी मन की सुनें:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सायरी ? की? बहुत सुन्दर शायर हो ,
ReplyDeleteकैसी ? इन्क्लाब आयी ???, और कौन सी दुनिया सुधरी ?
जिसने भी लिखा? यह सायरी ??, बडा खुश नशीं शायर होगा।
समझे भी या नहीं ?क्या समझे।
tumne to achchhon ko pachhad diya mere bhai
ReplyDeleteशादी हो जाने दो फिर बतायेगें :)
sudhroge ki rah rah bachoge :)
भाई अकेले आदमी को सुधरने की कोई आवश्यकता ही नही है क्योंकि उसके पास लायसेंस रहता है और शादी होते ही यह लायसेंस छिन जाता है.:)
ReplyDeleteरामराम.
क्या करना है उधर कर भी..जब यूँ भी दुकान चल रही है. :)
ReplyDeleteआपने जो भी लिखा.......... जिसका भी शेर लिखा ......... achaa है............ सच लिखा
ReplyDeleteyaar ........... mazedar baat toh ye hai ki jitna maza aap karaate hain usse bhi zyada tippanikaron ne diya...ha ha ha ha ha ha ha
ReplyDeletelage raho
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