सपने बुनने कि कला, तुमसे सीखा था मैंने.. मगर यह ना सोचा, सपने मालाओं जैसे होते हैं.. एक धागा टूटने से बिखर जाते हैं सारे.. बिलकुल मोतियों जैसे.. वो धागा टूट गया या तोड़ा गया? पता नहीं!! लेकिन सपने सारे बिखर गये.. बिखरे सपनो को फिर कैसे सजाऊं, तुमने यह नहीं बताया था.. खुद से इस कला को कैसे सीखूं? आ जाओ तुम, सिर्फ एक बार.. एक कला और सीखनी है तुमसे..
मेरे हिस्से का चांदकभी देखा है उस चांद को तुमने? ये वही चांद है, जिसे बांटा था तुमने कभी आधा-आधा.. कभी तेज भागती सड़कों पर, हाथों में हाथे डाले.. तो कभी उस पहाड़ी वाले शहर…Read More
एक कला और सिखला दोसपने बुनने कि कला,तुमसे सीखा था मैंने..मगर यह ना सोचा,सपने मालाओं जैसे होते हैं..एक धागा टूटने सेबिखर जाते हैं सारे..बिलकुल मोतियों जैसे..वो धागा टूट …Read More
त्रिवेणी फिर कभी, आज यह कविता सहीकविता से पहले मैं अनुराग जी को धन्यवाद देना चाहूंगा कि उन्होंने मुझे त्रिवेणी संबंधित कुछ बढिया बाते बताई.. वैसे मैंने एक लिखी भी है मगर वो किसी और मे…Read More
अब मैं बड़ा हो गया हूँ माँ..जो आप नहीं कर पाई,वो दुनिया ने कर दिखाया..अब मैं बड़ा हो गया हूँ माँ..कुछ अच्छा लगता है तोमुस्कुरा देता हूँ..कुछ बुरा लगता है तो मुस्कुरा देता हूँ..अब …Read More
इंतजार है मुझे(एक कविता मनोज द्वारा)जाने किसका इंतजार है मुझे..जब घर में अकेला होता हूं मैं,सन्नाटों से घिरा होता हूं मैं..कोई आहट सी होती है तो,चौंक जाता हूं..दरवाजे पर निगाहें टिकी होत…Read More
मतलब कि कलाएं सीखते रहना जरूरी है जी!!
ReplyDeleteअच्छा भावः प्रदर्शन !!
सुंदर भाव ..नाजुक कविता ...बधाई
ReplyDeleteकविता निस्सन्देह बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteएक धागा टूट जाने पर मनकों को दुबारा माला में गूंथने के लिए धागा नया लेना होता है।
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर। जिसे सपने बुनने की कला आ गयी, उसे मानो सृजन की कला आ गयी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव सपने ही नई राह की तरफ़ ले जाते हैं ..
ReplyDeleteदिल से लिखते हैं जनाब...एक बार उन्हें भी सुना दीजिए। विश्वास कीजिए वे खुद ही पास आकर इस माला के मोतियों को वापस माला में बदल देंगी।
ReplyDeleteहम क्या सिखायें, खुद ही इस जुगत में जिन्दगी गुजारे दे रहे हैं. सब समय सिखा देगा, नो टेन्शन.
ReplyDeleteइस बहाने रचना बेहतरीन बन पड़ी है, बधाई.
ये माला कौन की जुगाड़ लाये??
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