Friday, June 06, 2008

खिंचाव! कुछ रिश्तों का और कुछ...!

मुझे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और बाईक्स का बहुत शौक है.. इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में भी अगर वो संगीत से जुड़ा हो तो फिर क्या कहना.. मेरे हाथ जो भी नया मोबाईल फोन या आई पॉड या फिर एक हेडफोन ही लग जाये, बस सबसे पहले यही देखता हूं कि इसे किस अधिकतम सीमा तक प्रयोग में लाया जा सकता है.. मेरे पास एक सोनी का ईयर फोन है, जिसे मैंने 2003 में खरीदा था लगभग 1700 रूपये में.. उस पर तो ना जाने क्या-क्या प्रयोग करके देख चुका हूं.. कंप्यूटर में तरह-तरह के साफ्टवेयर से अधिकतम आवाज में लगा कर.. बस ये जानने के लिये कि किस सीमा पर खराब आवाज देना शुरू करे.. मगर वो अभी तक किसी भी प्रयोग में अनुत्तीर्ण नहीं हुआ है.. हां उसके अलावा मेरे पास ना जाने कितने ही हेड फोन हैं जो मेरे इस जुल्म का शिकार होकर दम तोड़ चुके हैं..

कुछ साल पहले भैया ने एक बाईक खरीदी थी.. एवेंजर.. जहां तक मुझे पता है ये बाईक अभी तक बिहार में लांच नहीं हुआ है.. भैया ने ये लखनऊ में खरीदी थी.. जब उन्हें पुना किसी ट्रेनिंग के लिये जाना था और उसी समय मैं कुछ दिनों के लिये पटना जाने वाला था तब उन्होंने अपनी बाईक पटना में लाकर रख दिया.. मेरे चलाने के लिये.. पटना में उस समय ये गाड़ी एक अलग ही चीज की तरह देखी जाती थी.. सबसे अलग जो थी.. शान से उस पर मैं घूमता था.. फिर ये बाईक भी मेरे जुल्म का शिकार हुआ.. कितने कम सेकेण्ड में ये 60 कि गति पकड़ेगा, 10 सेकेण्ड में कितने की अधिकतम गति पर पहूंच सकता है और भी ना जाने क्या-क्या प्रयोग मैंने उस पर किया.. अधिकतम गति के मामले में उसने मुझे 125 के लगभग कि गति दी.. इसने भी मुझे निराश नहीं किया.. हां मैं बस उसी चीज पर ये प्रयोग करता हूं, जिसे अपना समझता हूं.. एक-दो बार कुछ अपनों की वस्तुओं को भी अपना समझने की भूल करके एक सबक सीख चुका हूं.... कहते हैं ना, जिंदगी हर दिन कुछ सिखाती है.. मैं भी निरंतर सीखता गया.. कुछ सही, कुछ गलत..

कभी-कभी लगता है मैं रिश्तों के मामले में भी यही गलती कर जाता हूं.. जिसे अपना समझता हूं, उस पर पूरा अधिकार दिखा जाता हूं.. इतना, जितना कि नहीं दिखाना चाहिये.. चाहे ये रिश्ता कोई सा भी क्यों ना हो(दोस्ती का भी).. भूल जाता हूं कि ये कोई भौतिक चीज नहीं है जो अगर अच्छे गुणवत्ता कि हो तो अपने अधिकतम खिंचाव पर भी आपका साथ नहीं छोड़ती है.. और अगर साथ छोड़ भी दे तो आपके पास विकल्प होता है कि आप उसे त्याग कर वैसा ही एक नया ले आयें.. जो कि आप रिश्तों के साथ नहीं कर सकते हैं..

जिंदगी ने जो ताजातरीन सबक सिखाया है वो कुछ यूं है.. जो आपके पास है वो भी आपका है या नहीं ये पूरी तरह आपके विवेक पर और आपकी किस्मत पर निर्भर करता है.. मैंने किस्मत कि बात इसलिये कि क्योंकि आप कभी मानव स्वभाव को नहीं समझ सकते कि कौन कब और कैसा रूप आपको दिखा जाये..

कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से..
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासलों से मिला करो..

-----------बसीर बद्र

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8 comments:

  1. ये जीवन है यही है यही है रंग रूप :)
    अरूंण

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  2. रोचक पोस्ट। शुरू बाइक से और अन्त वेदान्त-दर्शन पर! बड़ा कैनवास कवर किया।

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  3. जिंदगी ने जो ताजातरीन सबक सिखाया है वो बहुत सही है. ऐसे ही सबक सीखते चलें.

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  4. मस्त रहिये...मौज करिये। वैसे आप का दिया सबक याद रहेगा। बात बिलकुल ठीक है। लेकिन बात विभिन्न रिश्तों की भी तो है...अब मां-बाप का रिश्ता ही है, कोई जितना चाहे इसे घुमा ले, ऐसे ही भाई बहनों का रिश्ता है....ऐसे ही तो नहीं एक गाने में कच्चे धागे से रिश्तों के बंधे होने की बात की गई है। कुछ रिश्ते कच्चे धागे में बंधे होते हुये भी जेके सरिये की तरह मजबूत होते हैं और कुछ ...........!!

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  5. बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे है।

    कुछ हुआ तो नही है ?

    किसी से झगडा ।

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  6. 'कभी-कभी लगता है मैं रिश्तों के मामले में भी यही गलती कर जाता हूं.. जिसे अपना समझता हूं, उस पर पूरा अधिकार दिखा जाता हूं.. इतना, जितना कि नहीं दिखाना चाहिये.. "
    मेरी भी यही बीमारी है. हाँ इसे बीमारी कहना ही ठीक होगा.
    और ये आज भी बरकार है प्रशांत.
    शायद हम जैसे लोगों कि ये फितरत होती है जल्द ही घुल-मिल जाना. चाहे कुछ भी खामियाजा भुगतना पड़े.
    मुझे लगता है एक सच्चे और भावुक इंसान की निशानी होती है ये.

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  7. 'कभी-कभी लगता है मैं रिश्तों के मामले में भी यही गलती कर जाता हूं.. जिसे अपना समझता हूं, उस पर पूरा अधिकार दिखा जाता हूं.. इतना, जितना कि नहीं दिखाना चाहिये.. "
    मेरी भी यही बीमारी है. हाँ इसे बीमारी कहना ही ठीक होगा.
    और ये आज भी बरकार है प्रशांत.
    शायद हम जैसे लोगों कि ये फितरत होती है जल्द ही घुल-मिल जाना. चाहे कुछ भी खामियाजा भुगतना पड़े.
    मुझे लगता है एक सच्चे और भावुक इंसान की निशानी होती है ये.

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  8. 'कभी-कभी लगता है मैं रिश्तों के मामले में भी यही गलती कर जाता हूं.. जिसे अपना समझता हूं, उस पर पूरा अधिकार दिखा जाता हूं.. इतना, जितना कि नहीं दिखाना चाहिये.. "

    हाँ इसे दिल से अपना बनाना कहते हैं, पर शायद अब वो वक्त नही रहा.......

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