Friday, April 04, 2008

सोचा भी ना था

सोचा था, तुम्हारे दर्द में मैं
और मेरे दर्द में तुम जागो सारी रात..
मैं तो आज भी जाग रहा हूं,
सोचकर कि तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं?
क्या तुम भी जागती हो?

सोचा था कि तुम्हारी खुशियों
में तुमसे ज्यादा मैं खुश होउंगा..
इसी भ्रम में आज भी खुश रहने की कोशिश करता हूं..
बिछड़कर मुझसे क्या तुम भी खुश रहती हो?

सुना था समय हर दर्द को भुला देता है..
मैं अब इसी भ्रम में हूं
कि मेरे घाव भी भर गये हैं..
क्या तुम्हें भी अब दर्द नहीं होता है?

आज कुछ भी लिखने का मन नहीं है सो आज मैं अपनी पिछली पोस्ट को पूरा नहीं कर रहा हूं.. और आपके सामने ये लेकर आया हूं..

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12 comments:

  1. क्या बात है. आजकल एक के बाद एक अच्छा लिखे जा रहें हैं?

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  2. ये घाव कहाँ लगा? बांट लो, दर्द कम हो जाएगा।

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  3. सँवेदना महसूस कर सकता हूं मैं।

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  4. बहुत अच्छा है भाई. क्या बात है. कुछ बातें सिर्फ़ महसूस ही की जा सकती हैं. शब्द कुछ एहसासों से वफ़ा नहीं कर पाते.
    और पोस्ट करते करते ऊपर ये टिपण्णी दिख गई :
    ये घाव कहाँ लगा? बांट लो, दर्द कम हो जाएगा।
    तो अपनी ही लिखी ये बात याद आ गई :
    http://kisseykahen.blogspot.com/2007/10/blog-post_2284.html

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  5. यही ख्याल था हमारा. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है. भाव हमारे भी बहुत निकट हैं.

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  6. बंधु, कविता भी लिखते हो वह भी इतनी बढ़िया!!
    जियो जियो!!

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  7. soch kar to pichli adhoori post padne aaya tha par khair kai bar "bekhayaali "bhi ho jati hai..
    kavita kahi andar se aayi hai.

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  8. बड़ी कशिश है भाई!!

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  9. मैं तो आज भी जाग रहा हूं,
    सोचकर कि तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं?
    क्या तुम भी जागती हो?

    behtarin...bahut hi acchi abhivyakti hai

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