Thursday, March 27, 2008

जो मन में आयेगा कहूंगा तुझे, आखिर मेरी बहन हो!!(पार्ट II)

जैसा नाम है उसका बिलकुल वैसी ही है वो.. स्नेहमयी.. शिल्पी उसके घर का पुकारू नाम है बाहर का नाम स्नेहा है.. मेरे जीवन में उसका दायरा बहुत बड़ा है.. उसका हर रूप समय के साथ मेरे लिये बदल जाता है.. जब किसी मित्र की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वो मेरे लिये सबसे अच्छी मित्रा के रूप में मेरे सामने होती है.. जब कुछ गलत करता हूं तो और किसी को चाहे बताऊं या ना बताऊं पर उसे जरूर बताता हूं और उस समय इससे मुझे किसी छोटे बच्चे की तरह डांट भी खानी परती है.. और कभी कभी मुझसे छोटी बहन की तरह नखरें करते हुये कुछ भी मांग कर बैठती है.. मैं अपने घर में सबसे छोटा हूं और इसने मेरे जीवन में आकर मेरी ये इच्छा पूरी कर दी की मुझसे छोटा भी कोई भाई-बहन हो..

स्नेहा(शिल्पी) से मेरी पहली बार अपने ग्रैजुयेसन के दिनों में मुलाकात हुई थी.. हम दोनों एक ही कक्षा में थे और अपनी कक्षा के होनहार छात्रों में से गिने जाते थे.. जहां लोग मेरी कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का लोहा मानते थे(जो भ्रम धीरे-धीरे टूटता चला गया :)) वहीं कक्षा में नंबर लाने में इसका कोई सानी नहीं था.. अगस्त का समय था, शायद चौथे सेमेस्टर की बात है, रक्षाबंधन के बाद हमारा कालेज खुला और इसने आकर मुझसे कहा की मैंने तुम्हें राखी वाली ई-ग्रिटिंग भेजी है.. और मैंने कहा की वर्चुवल क्यों रियल राखी बांध दो..और बस तब से हमारे बीच एक प्यार भरे रिश्ते की शुरूवात भी हो गई.. एक प्यारी सी राखी इसने ना जाने कैसे और कहां से ढूंढी क्योंकि रक्षाबंधन के बाद राखी का मिलना बंद हो गया था.. और अगले दिन इसने मुझे वो राखी लाकर मुझे बांध दी.. उससे पहले हम बस एक साधारण से मित्र हुआ करते थे.. हमारे बीच प्रगाढ मित्रता कालेज खत्म होने के बाद आया..

BCA खत्म करने के बाद मैं आगे की पढाई करने के लिये VIT, वेल्लोर आ गया और ये पूरी तन्मयता से बैंक PO की तैयारी में जुट गई.. मगर जैसा कहा जाता है की समय से पहले और भाग्य से ज्याद कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है, बिलकुल वैसे ही सारी खूबियां होते हुये भी इसे 2.5सालों तक कोई सफलता नहीं मिली.. ये लगभग अवसादग्रस्त होकर अपने सारे पुराने दोस्तों से संबंध लगभग ना के बराबर कर लिये.. एक मैं ही था जो ये फोन करे या ना करे मगर मैं हमेशा फोन पर फोन करता रहता था.. एक दिन इसने मुझे बहुत घबरा कर फोन किया, मुझे लगा की क्या हो गया है.. इसने मुझे बताया की जिस बैंक की परीक्षा इसने दी थी उसका रिसल्ट आ गया है और उसे नेट पर चेक करके बताओ.. मैंने चेक किया और उसे अच्छी खबर सुना दी.. और खुशी से इसके मुंह से कुछ भी नहीं निकला.. बस बहुत देर तक रोती रही.. मैंने इसे प्यार से कहा की अब रोना छोड़ो और जाकर पापा मम्मी का आशीर्वाद ले लो..

लिखने को इतनी बातें हैं की अगर मैं सारा कुछ लिख दूं तो वो एक मोटा सा ग्रंथ बन जायेगा और ये मुझे भी पता है की ग्रंथ पढना किसी को पसंद नहीं होता है.. :)

मैं और शिल्पी मेरठ में रात का खाना खाना खाते हुये
अंतिम भाग अगले अंक में..

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12 comments:

  1. प्रशांत सर
    आप का पोस्ट पढ़ कर मुझे मेरे भाई की याद आ गयी..
    बहुत अच्छा लिखा है आपने...
    अब इस विषय पर मैं क्या कहूं.. मैं भी अपने भाई को बहुत परेशान करती हूँ..
    मेरी हर जिद उनके लिए आज्ञा सी हो जाती है...

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  2. अजीत बहुत सुन्दर लेख हे आप का,लेकिन एक तो खाना नजर नही आ रहा वर्ना हम भी देख कर चख लेते, दुसरा भाई कभी गंजे नजर आते हो तो कभी बालो समेत,आप भाई बहिन का प्यार बना रहे, ओर अगली कडी का इन्तजार ...

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  3. राज जी, आपकी पारखी नजर का मैं कायल हो गया..:) मैं गंजा ही हूं... ये बाल तो लड़कीयों को धोखा देने के लिये लगाया है.. विविंग करा रखी है मैंने..

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  4. प्रशांतजी,
    बहुत बढिया, बडी सरलता से आपने अपने हृदय की बात कह दी । आपको एवं आपकी प्यारी बहना को शुभकामनायें ।

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  5. भैया ढ़्ंग से खाना खाया करो। कुछ वजन बढ़ाओ। भविष्य में समीरलाल जी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी है!

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  6. बहुत सुन्दरता से रिश्तों की बयानी की है जो भगवान के यहाँ से बन कर नहीं आते और उन्हें हम खुद बनाते हैं. आप दोनों भाई-बहन को हमारी शुभकामनाऐं.

    खूब खाईये, ज्ञानजी रेफरी होंगे और आज से १-२-३ प्रतिस्पर्धा चालू!! :) हा हा!!

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  7. बढ़िया लगा बंधु इसे पढ़ना!!
    तस्वीर से एक बात तो साफ हो गई कि आप हमारे डिक्टो हो मतलब सिंगल पसली ;)

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  8. शिल्पी के बारे मे पढ़ना और जानना अच्छा लग रहा है।

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  9. पीडी और शिल्पी, दोनों भाई-बहन की जोड़ी दीर्घजीवी हो। जब भी आप की पोस्ट पढ़ता हूँ बतियाने का मन करता है।

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  10. @वंदना जी, नीरज जी, ममता जी- बहुत बहुत धन्यवाद..
    @ज्ञान जी & समीर जी- पिछले 6 सालों से कोशिश में लगा हुआ हूं पर उतने का उतना ही हूं.. 6फ़ीट 1इंच का हूं पर वजन बस 65किलो... खैर मैं अपनी उम्मीद नहीं छोड़ूंगा और समीर जी को हरा कर छोड़ूंगा.. :D
    @संजीत जी- चलिये हम एक ही बिरादरी के निकले.. :)
    @दिनेशराय जी- बहुत बहुत धन्यवाद.. आपको जब कभी मन हो मुझे फोन लगा सकते हैं.. मेरा नंबर है.. 9940648140.. या फिर आप अपना नंबर भी दे सकते हैं.. मैं भी आपसे बात करना चाहता हूं.. :)

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