Monday, September 24, 2007

"सामर्थ्य और सीमा" के कुछ अंश

'टन-टन-टन' घड़ी ने तीन बजाये और चौंककर मेजर नाहरसिंह ने अपनी आंखें खोल दीं। अब मेजर नाहरसिंह को अनुभव हुआ कि रात के तीन बज गये हैं। दिन निकलने में कुल दो घण्टे बाकी हैं। कितनी तेजी के साथ यह समय बीत रहा है। इस समय को सेकण्ड, मिनट, घण्टे, दिन-रात, महीनों, वर्षों, सदियों, युगों और मन्वन्तरों में विभक्त किया है मानवों ने। अपनी सीमा को लेकर आने वाला यह अहम् और दर्प से युक्त मानव इस अखण्ड और निःसीम काल को सीमाओं में विभक्त करता चला आ रहा है। और एकाएक मेजर नाहरसिंह के अन्दर वाली ग्लानि जाती रही, उनके मुख पर एक हल्की मुस्कान आयी, "मुर्ख् कहीं के! इस समय को भी कोई विभक्त कर सका है? निःसीम की कहीं सीमा निर्धारित की जा सकती है? इस काल के उपर भला किसी का अधिकार है? असीम, अक्षय! यह काल हरेक को खा लेता है, इसकी क्षुधा का कोई अन्त नहीं है। इस काल से भला कोई लड़ सकता है या कोई लड़ सका है? इस काल को विभक्त करके उसे नापने का प्रयत्न करनेवाली यह घड़ी स्वयं काल का ग्रास बन जायेगी। राजभवन के कूड़े-खाने में न जाने कितनी टूटी हुई बीकार घड़ियां पड़ी थी, एक दिन यह घड़ी भी उसी ढेर में डाल दी जायेगी। इस घड़ी को बनाने वाला भी कितना मूर्ख था!"

और... और उसी समय उनका ध्यान उनके हृदय से आनेवाली टिक-टिक की आवाज पर गया। इस हॄदय-रूपी यन्त्र को किसने बनाया? क्या वह भी मूर्ख है? समस्त अस्तित्व मानव का इस हॄदय की धड़कन पर अवलम्बित है। न जाने कितने हॄदय पिण्ड कब्रों के अन्दर पड़े हैं। और फ़िर भी 'टिक-टिक' करनेवाले यह हॄदय-पिण्ड, इन्हीं के कारण से मानव का अस्तित्व है।
-भगवतीचरण वर्मा


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2 comments:

  1. बहुत अच्छा.
    कुछ न कुछ अच्छा सतत प्रस्तुत करते रहें.

    आदमी ही है जो "निरंतर" को प्रकोष्ठों में बांट कर देखता है - उसी तरह से समझ पाता है!

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  2. प्रशांत, आज पहली बार आप के चिट्ठे पर आने का मौका मिला. अच्छा लगा.

    चिट्ठे का अवरण बहुत आकर्षक है, एवं विषयवस्तु भी अच्छी लगी. अब नियमित रूप से देखा करेंगे

    -- शास्त्री जे सी फिलिप



    प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
    नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
    ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
    सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
    बन सकती है.

    आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
    प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??

    ReplyDelete