Tuesday, May 28, 2013

ज्वलंत समय में लिखना प्रेम कविता

1.
जब देश उबल रहा था
माओवादी हिंसा एवं
आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर

मैं सोच रहा था कि लिखूँ
एक नितांत प्रेम में डूबी कविता!!

2.
बुद्धिजीवियों के विमर्श का शीर्ष बिंदू
जब थी सामाजिक समस्याएँ

तब मैं सोच रहा था लिखूँ
कुछ ऐसा जो छू ले तुम्हारे अंतर्मन को

3.
तथाकथित बुद्धिजीवी
जब लगे थे इस जुगत में
की कैसे साधा जाए अर्थ संबंधी
अपना नितांत स्वार्थ

मैं सोच रहा था लिखूँ कुछ ऐसा
कि तुम हो जाओ मेरी

4.
उस क्षण जब
आदिवासियों को माओवादी
और
माओवादियों को राजनितिज्ञ करार दिया गया था

मैं डूबा था
तुम्हारे प्रेम की बातों में

5.
उस वक़्त जब लोग प्रयत्नरत थे
बन्दूक की नाल से सत्ता की ओर

मैं प्रयत्नरत था प्रेम की ओर
और तोड़ने में वे सभी हिंसक
मानसिक हथियार

Friday, May 17, 2013

बयार परिवर्तन की

बिहार की राजनीति में रैलियों का हमेशा से महत्व रहा है और अधिकांश रैलियों में सत्ता+पैसा का घिनौना नाच एवं गरीबी का मजाक भी होता रहा. इस बार आया "परिवर्तन रैली".

आईये जानते हैं कि परिवर्तन किसे कहते हैं?
१. लालू-नितीश ने साथ-साथ ही राजनीति कि शुरुवात की थी. जब जे.पी. इसी गांधी मैदान जन को संबोधित करते हुए में इंदिरा गांधी को तानाशाह कहते थे तब ये दोनों साथ-साथ तालियाँ भी बजाते थे. और अभी पिछले कई सालों से सत्ता के पीछे भागते हुए एक दूसरे के विरोध में राजनीति कर रहे हैं. यह है परिवर्तन!

२. इंदिरा कि तानाशाही के खिलाफ जिन्होंने अपनी राजनीति शुरू की, वही तानाशाही इन्होंने सत्ता में आने के बाद अपनाई. इसी तानाशाही ने इंदिरा को डुबाया. फिर लालू को. अब समय नितीश के इन्तजार में है. यह है परिवर्तन!

३. कर्पूरी ठाकुर के समय में भाई-भतिजाबाद के खिलाफ राजनीति करने वाले लालू आज ख़म ठोक कर अपने बेटे को राजनीति में पेश करते हैं और नितीश से भी गरजकर पूछते हैं कि "तुम्हारा बेटा क्या कर रहा है आजकल?" यह है परिवर्तन!

४. जिस कांग्रेस के खिलाफ इन दोनों ने अपनी राजनीति शुरू की थी, काफी समय तक उसी कांग्रेस के साथ सत्ता का सुख लालू भोग चुके हैं और अब नितीश इन्तजार में हैं, कि भाजपा से अगर मोदी की वजहों से अलग होना पड़े तो कांग्रेस की नाव पर सवार हो सकें. यह है परिवर्तन!

५. ये वही लालू हैं जो बिहार में अभी गुंडा राज बता रहे हैं और सहाबुद्दीन कि बड़ी सी तस्वीर अपने हर होर्डिंग पर लगा रखे हैं. ना तो लालू अपने समय के गुंडाराज में झाँकने को तैयार हैं और ना नितीश आँख खोल कर देखने को तैयार हैं अभी के लौ-एंड-आर्डर की परिस्थियों को. यह है परिवर्तन!

ऐसे जाने कितने प्रश्न हैं जो समय इनसे पूछेगा, और ये दोनों बेशर्मी से खींसें निपोरेंगे. ये बिहार का दुर्भाग्य है जो उसकी जनता के पास इनसे बेहतर कोई विकल्प नहीं है.

आखिर कहा भी गया है, एकमात्र परिवर्तन ही अपरिवर्तनीय है!!

मैं तो कहता हूँ लखनऊ की तर्ज पर पटना में भी एक परिवर्तन चौक बना ही दिया जाए, ठीक हड़ताली चौक के आस-पास, सचिवालय के निकट. जहाँ से ऐसे झूठे परिवर्तन की बयार बहाने में इन्हें मदद मिल सके. एक हड़ताली चौक तो है ही पहले से. जनता वहां सही-गलत मुद्दे पर हड़ताल करेगी, और ये लोग वहां से परिवर्तन की बयार बहा सकेंगे.


यह तस्वीर राकेश कुमार सिंह जी के फेसबुक प्रोफाईल से ली गई है. उन्होंने यह तस्वीर इस रैली के समय पटना में रहते हुए ली थी. वहां इस तस्वीर के साथ वह कहते हैं -
"ई बाला होरडिंग देख के बहुत खटका मन में. जो अदमी सज़ायाफता मुजरिम है. लूट और मडर जैसन अभियोग में जेल में बंद है, उ समूचा पटना में टंगाए मिले. देखिए चच्‍चा तनि ई होरडिंगबा को. हाथ में लालटेन लिए, बुरखा वाली औरत! माने मुसलमान भोटर के रिझावे खातिर एतना खेल! पूछे नेता लोग से त कुछ छोटका सब त अलबला आ तिलमिला गए. बाकी, एक ठो जिम्‍मेदार नेताजी आफ द रिकाड कहे कि गलती हो गया. आगे से धेयान रखा जाएगा. "