Thursday, April 16, 2015

डिस्क ब्रेक

वो जमाना था जब डिस्क ब्रेक नाम की चीज नई हुआ करती थी. उसी ज़माने में हमारे एक मित्र ने सेकेण्ड हैण्ड CBZ खरीदी दिल्ली जाकर. पटना में शायद सेकेण्ड हैण्ड उपलब्ध नहीं थी और अगर थी भी तो बेहद महँगी. याद है हमें की उस दिन खूब बारिश हो रही थी फिर भी हम घर से कोई बहाना बना कर निकल लिए थे उसकी बाईक देखने. बाईक देखने का अड्डा, या यूँ कहें की हम दोस्तों का अड्डा, नाला रोड में एक दोस्त का घर था..और बारिश की वजह से नाला रोड उस समय नदी रोड बना हुआ था..घुटने से बस कुछ ही कम पानी. अब उस समय तक स्कूटर चलाने में उस्ताद हो चुके थे सो उस पानी में भी हेला दिए हम स्कूटर को..पता था की सायलेंसर से ऊपर तक पानी हो तो कितना एक्स्लेरेटर देना पड़ता है.. 

दोस्त का घर भी नाला रोड में ऐसी जगह पर की वहीं का वहीं पटना का पूरा नजारा एक ही बार में दिखा दे.. कदमकुवां के तरफ से नाला रोड में घुसते ही एक तरफ ठेले वाले उस दो लेन वाली सड़क में घुसे हुए मिलते, वहीं दसेक रिक्शा वाले भी घुसाए रहते..साथ में हम जैसे नए खून और लहरियाकाट एक्सपर्ट अपना हुनर दिखाते हुए अपनी गाडी घुसाए रहते. वहीं बगल से अधेड़ उम्र के कोई अंकल जी अपने चेतक को धीरे-धीरे निकालते हुए ऐसे चलते रहते जैसे की अगर थोड़ा सा भी और तेज चलेंगे तो एक्सीडेंट हो जाएगा, और उनके पीछे ट्रैफिक का पूरा हुजूम..साथ में बड़ी छोटी सभी कारें अपना ख्याल खुद रखते हुए बच-बचा कर निकलने की जुगत में.. खैर उस दिन ये सब नहीं था. बारिश से पटना बेहाल था.

अब हम अपने अड्डे पर बैठ कर इन्तजार कर रहे थे की वो दोस्त अपनी गाडी लेकर आये तो हम भी थोड़ा हाथ आजमा कर देखें..उस ज़माने में हमारा एकमात्र बॉडी बिल्डर दोस्त अपनी गाडी पर बैठ शान से आया..आते ही ये दिखाया की इसका सायलेंसर कितना ऊपर है की पानी घुसिए नहीं सकता है.. हम भी एक-एक पार्ट पुर्जा देखकर पुलकित हो रहे थे..उसकी गाडी चलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी मगर..एक तो बारिश, दूसरा नाला रोड का नदी रोड हुआ जाना, तीसरा की उतनी भारी गाड़ी कभी चलाये नहीं थे तब तक. उसने अपनी गाडी दिखाते हुए बताया की ये डिस्क ब्रेक है..कितनी भी तेजी से गाड़ी चल रही हो लेकिन अगर यह दबाया जाए तो बिना फिसले जहाँ का तहाँ रुक जाए, ऐसी खूबी है इसमें. हम भी आँखें फाड़ कर ये सब सुनते रहे आश्चर्य से.. फिर मन हुआ की बारिश रुकी हुई है और कालेज के कुछ काम से हड़ताली मोड़ जाना था हम टीम लोगों को, सो हम चल निकलें..

रास्ते में गीले सड़क पर ही हमारा वो दोस्त दो-तीन बार डिस्क ब्रेक का करिश्मा दिखाता रहा की देखो बिलकुल नहीं फिसलता है और पीछे से हम स्कूटर पर बैठे सोचते रहे की कभी हम भी डिस्क ब्रेक वाली बाईक खरीदेंगे. थोड़ी दूर जाने पर पहले जहाँ 'उमा सिनेमा' हुआ करती थी उससे थोड़ा सा आगे और एग्जीविशन रोड से थोड़ा सा पहले उसे ट्रैफिक की वजह से ब्रेक लगाना पड़ा..ब्रेक लगते ही बाईक फिसली और सीधे सड़क पर धड़ाम.. हम पीछे से सकपका कर देखे की 'ले लोट्टा, ई का हो गया'? गाडी कैसे फिसल गई? अपना स्कूटर साईड में लगाये, दोस्तों को उठाने से पहले उस गाडी को उठाये, आखिर नई गाडी जो थी भले ही सेकेण्ड हैण्ड.. जब तक सड़क के किनारे लाते, वहां एक ठेले पर बैठे ठेले के मालिक ने बीड़ी सुलगाते हुए कहा, "भोरे से आप अठवाँ आदमी हैं हियाँ गिरने वाले, भोर में हईजे एक ठो मोपेड गिरा था और उसका पूरा तेल रोडवे पर हेरा गया था.." अब हम लगभग पेट पकड़ कर हँसते हुए बोले, "और आप का कर रहे हैं? भोरे से बीड़ी फूंकते खाली गिन रहे हैं का? की एक..दू..तीन..चार......"

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6 comments:

  1. पहले ये बताओ...डिस्क ब्रेक के प्रति मोह कुछ कम हुआ कि नहीं...???

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  2. नाह दीदी.. अब तो हर पहिये में डिस्क ब्रेक चाहिए होता है.. ;)

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  3. हम भी शिकार हुये है

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  4. हम तो बाइक चलाये ही नहीं हैं कभी, स्कूटर चलाये हैं बजाज वाला.... हमारा बजाज.... :)

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  5. मेरे पास तो शुरू से हीरो होंडा की सपलेनङर है ङिसक बाइक का मोह कभी पाला नही ।

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  6. रोचक प्रस्तुति ..अब तो डिस्क ब्रेक का ही जमाना है ...

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