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आज
अपने वैसे भारतीय मित्रों को देखता हूँ जो फिलहाल विदेश में बसे
हुए हैं, लगभग वे सभी "आप" के समर्थक हैं. आखिर ऐसा क्या है जो भारतियों को
विदेश में पहुँचते ही "आप" का समर्थक बना देती है? ऐसी मेरी सोच है कि जब
वही भारतीय मित्र वापस भारत आयेंगे और वापस यहाँ कार्य करते हुए अपने
आस-पास की बेईमानी से जब तक त्रस्त नहीं होंगे तब तक वे "आप" के साथ भी खड़े
दिखेंगे भी नहीं. कारण, तब वे उस वर्ग से ऊपर उठ चुके रहेंगे जिसे साध कर
केजरीवाल सत्ता तक पहुंचे हैं.
मेरी इस सोच को इस बात से बल मिलता
है कि मैंने अपने आस पास कई मित्रों को भारत में रहते हुए नियम तोड़ते देखा
है, मगर विदेश जाते ही वे पूर्ण ईमानदार हो जाते हैं.
नहीं-नहीं...उन्होंने भारत में रहते हुए कोई ऐसा नियम नहीं तोडा जिसे अपराध
की श्रेणी में रखा जाए. वे कुछ ऐसे नियम हैं जिन्हें हम नजर-अंदाज करते
चलते हैं. मगर वही छोटे-छोटे नियम तोड़ने पर भी विदेश में कड़ा अर्थ दंड
भोगना पड़ेगा इसी डर से वह वहां नहीं हो पाता है. एक डर, एक भय..
मैं हमेशा एक बात पर गौर करता हूँ. सबसे अधिक भ्रष्टाचार उन्हीं देशों में
है जो अविकसित हैं अथवा विक्सित होने की ओर अग्रसर हैं. विकसित देशों में
अपवाद के तौर पर ही पूरा का पूरा देश भ्रष्ट दिखेगा. मुझे इसका सीधा सा
उत्तर यही समझ में आता है कि वहां की व्यवस्था ऐसी है जो भ्रष्टाचार को
बेहद महंगा बनाती है. वहां पकड़े जाने और सजा पाने के अवसर अधिक हैं किसी भी
विकासशील देशों के मुकाबले.
माफ़ कीजियेगा.. मैं इस बात से
पूर्णतः असहमत हूँ कि बचपन से ही ईमानदारी का पाठ बच्चों को पढाया जाए तो
वह ईमानदार बनेगा. क्योंकि बेईमानी और रिश्वत का पहला सबक हर बच्चा घर के
भीतर ही सीखता है. जैसे किसी बच्चे को कहना कि क्लास में फर्स्ट आओ तो
सायकिल खरीद दूंगा. या अभी चुप हो जाओ तो शाम में घूमने जायेंगे.. मेरा यही
मानना है कि कोई भी जीव-जंतु स्वभाव से हमेशा हालात का फायदा उठाने वाला
होता है. वो कहते हैं ना "सरवाईवल ऑफ़ द फिटेस्ट".
साथ ही यह भी
सोचता हूँ की क्या भारत के अभी के हालात में एक भय जगा कर लोगों को ईमानदार
बनाया जा सकता है? तो इसका उत्तर भी नकारात्मक ही मन में आता है. भारत
जैसे विशालकाय जनसँख्या वाले देश में ऐसा होना नामुमकिन से कम भी नहीं है.
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि जिस दिन कोई पार्टी भारत को शत-प्रतिशत
भ्रष्टाचार से मुक्त कर देगी, उसी दिन सबसे पहले जनता ही उसे बाहर का
रास्ता दिखायेगी...वापस भ्रष्ट होने की राह खोजने के अवसर ढूँढने के लिए.
कुछ उदाहरण मैं जोड़ता जाता हूँ..
दो मिनट के लिए भी गाड़ी सड़क पर पार्क करने पर अर्थदंड.
सड़क पर थूकने अथवा किसी भी प्रकार का कचरा फेंकने पर अर्थदंड.
जहाँ किसी भी कार्य को करने के लिए तुरत पैसा दो और सारे झंझट से मुक्ति होती थी, वहीं उसी काम के लिए तीन घंटे लाईन में लगना.
जहाँ ट्राफिक पुलिस को पचास-सौ दो और हजार के फाईन से बच जाओ, वहीं हजार का नुकसान सहना.. इत्यादि ऐसे ही ना जाने क्या-क्या..
नोट - आवेश में आकर कुछ भी यहाँ कमेन्ट करने से पहले जरा ईमानदारी से सोचें. अपने अहम्(ईगो) से इतर हटकर जरुर सोचें.
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भले बाहर हूँ पर मैं आप का समर्थक नहीं हूँ भाई क्यूंकि केवल ये कह के की सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार मिटा देंगे, कुछ सही नहीं होने वाला | बचपन से जो दुनियादारी का पाठ हमें पढाया जाता है वही भ्रष्टाचार है | जब तक ये नहीं जाता कुछ नहीं बदलने वाला |
ReplyDeleteतन्त्र को ऐसे रचित करें कि उसमें मनमानी की संभावना न्यूनतम हो, नहीं तो अर्थ का सिद्धान्त अनर्थ कर ही डालता है।
ReplyDeleteहम सिर्फ़ आदतों के गुलाम होते हैं, चाहे वो अच्छी हों या बुरी... एक बार आदत पड़ जाए तो उन्हें करने में कष्ट नहीं होता... :)
ReplyDeleteकितने उदाहरण दूँ, बहुत से हैं... बस आप अपनी कुछ अच्छी बातों के बारे में सोचिए, क्या उन्हें करते हुए आपको कष्ट होता है या आप उन्हें छोड़कर प्रसन्न होंगे...
पूरी तरह सहमत.
ReplyDeleteऔर, "आप" की हालिया ड्रामेबाजी को क्या कहेंगे? पूरे देश में आमचुनावों के समय हल्ला मचाकर ध्यान खींचने का सुप्रीम मौका!
ऐसे कई ड्रामे लाइन में हैं और एक के बाद एक आते जाएंगे... :)
पहले भी कहा है - "आप" वाले खालिस भारतीय हैं, विदेशी आयातित माल नहीं. चंद दिनों में ही सोने का चढ़ा पानी देखते-2 ही उतर जाएगा. शुरुआत तो हो ही चुकी है!
सहमत ...
ReplyDeleteनया फेशन है.... कुछ दिन तो चलेगा...
ReplyDeleteवैसे एक बात समझ नहीं आती, जब सारी दिल्ली ही आप की समर्थक है तो बेईमानी बंद हो जानी चाहिये थी...
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