अभी भी लगता है जैसे कल कि ही बात थी. कालेज के दिनों में पहली बार अपने दो दोस्तों के साथ यहाँ आया था, इरादा कुछ तफरी करने का था. वेल्लोर से बैंगलोर. जब २००५ जुलाई कल कि बात लग सकती है तो २००७ जनवरी तो उससे भी अधिक नजदीक का मामला है. २००६ दिसंबर में जयपुर दीदी के घर गया था, ठीक ३१ दिसंबर को रेल से चेन्नई उतरा. कहने को तो उससे पहले भी चेन्नई से होकर गुजरने का मौका मिला था, मगर रेल से होकर ही निकल लेता था. हाँ, जब पहली दफे वेल्लोर जा रहा था कालेज में एडमिशन के लिए तब चेन्नई एयरपोर्ट से चेन्नई सेन्ट्रल तक का रास्ता टैक्सी में तय किया था. मगर तब घबराहट रास्तों को और उस शहर को देखने अधिक थी.
जब भी चेन्नई होते हुए वेल्लोर जाता था तब सिर्फ इतना ही समझ में आया था, कि जिस स्टेशन पर गाड़ी के रुकते ही पसीने से तर-ब-तर हो जाओ, वही चेन्नई है.
३१ दिसंबर को चेन्नई उतरने के बाद शिवेंद्र का इन्तजार थोड़ी देर किया. वह वेल्लोर से चेन्नई आया था. २ जनवरी को हमें अपनी पहली नौकरी ज्वाइन करनी थी चेन्नई में, मगर उससे पहले रहने का ठिकाना भी तलाश करना था. फिर तो हमारे लिए बेहद अजीबोगरीब नामों का सिलसिला ही निकल पड़ा, जिसमें सबसे पहला नाम "चुलाईमेदू" था. एक सीनियर ने हमें बताया था कि वहीं रहते हैं, और उनके ही मैन्सन में हमारा भी इंतजाम हो जाएगा, जो कि ना हो सका. और फिर उसके बाद तो एक झड़ी सी लग गई ऐसे नामों की. जैसे कोयम्बेदू, त्यागराया(जिसे अंग्रेजी में Thyagaraya लिखते हैं और हम उत्तर भारत के लोग उसे "थ्यागराया" पढ़ते हैं, टी नगर में टी का मतलब यही है), ट्रिप्लिकेन, वरासलावक्कम, नुगमबक्कम, केलाबक्कम, पैरिस, थोरईपक्कम.. खैर हमें इतना ही समझ आया कि चेन्नई में जगहों का नाम कुछ "अक्कम-बक्कम" टाईप होता है और बैंगलोर में "हल्ली-पल्ली" टाईप.
एक और नई बात पता चली कि यहाँ PG को लोग मैन्सन कहते हैं. सच कहूँ तो मुझे उस वक़्त तक पता नहीं था कि मैन्सन का मतलब क्या होता है? मुझे बाद में शब्दकोष का सहारा लेना पड़ा था. खैर!! जब चुलाईमेदू में ना मिला तो फिर कुछ ने सलाह दी कि टी नगर में ढूंढो, वहां मिल जाएगा. खैर वहां भी ना मिला, मगर वहां ढूँढने के चक्कर में चेन्नई के एक ऐसे इलाके का पता चला जिसे देख कर हम दंग रह गए थे. हम कोडम्बक्कम से लोकल लेकर माम्बलम में उतरे, जो कि टी नगर का लोकल स्टेशन है, और जैसे ही स्टेशन से बाहर निकलने वाली गली में घुसे, लगा जैसे ग़दर मचा हुआ हो. एक लम्बी से गली, उसमें जितने दूकान, उन सब का नाम सर्वणा स्टोर, और लोग ऐसे धक्कम धक्का मचाये हुए जैसे आज ना लिए तो कल कुछ नहीं मिलेगा. जैसे कर्फ्यू लगने के बाद थोड़े समय कि ढील दी गई हो लोगों को खरीददारी करने के लिए. हम पहली बार चेन्नई कि गर्मी को देख रहे थे, उसमें भी ऐसी जगह आ गए थे. वह तो बाद में पता चला कि सालों भर उस जगह का यही हाल रहता था.
फिर वहीं किसी ने कहा कि ट्रिप्लिकेन चले जाओ, वहां जरूर मिल जाएगा. वहां मिल भी गया. और वो भी मुश्किल से दस-पंद्रह मिनट के मशक्कत में ही. वहां जाने पर ऐसा लगा जैसे दिल्ली के मुनिरका या कठबरियासराय-जियासराय वाले इलाके में आ गए हों. माहौल वैसा ही, सिर्फ एक ही भाषाई अंतर मिला, अलबत्ता सब एक बराबर. हाँ, यहाँ कि सड़के कठबरियासराय-जियासराय से अधिक चौड़ी थी. मेरा यह यकीन और पुख्ता हो चला कि सारे शहर का मिज़ाज एक सा ही होता है, बाहर से चमचमाती दिखती महानगर अंदर से ऐसे ही इलाकों में गरीबी में गिजगिजाती है, जहाँ अधिकांश नौकरी करने वाले अथवा पढने के लिए बड़े शहर में आने वाले युवा रहते हैं. शहर के अभिजात्य वर्ग ऐसे इलाकों को नफ़रत से देखती है, मगर शहरें संभली होती हैं ऐसे ही बिगड़े हुए इलाकों से.
आज की ब्लॉग बुलेटिन आज लिया गया था जलियाँवाला नरसंहार का बदला - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteचलो इस बहाने इतना कुछ जानने को तो मिला ... तुम्हें भी और हमें भी !
ReplyDeleteबिलकुल शिवम् भाई.
Deleteबंगलौर से स्टार्टिंग करके न जाने कोन कोन जगह घुसा दिए... :-/
ReplyDeleteवही तो. जो होता है दरअसल वो नहीं होता. और जो नहीं होता वो नहीं हो कर भी होता है. मतलब जो होता है वो होते हुए भी नहीं होता मगर चूँकि वो नहीं होता सो नहीं होकर भी होता है. समझ ही गए होगे. :-)
DeletePadh hi liye hain bas.. samajh bhi lia hi jayega waqt aane pe :P
Deleteहा हा हा.
Deleteइसका मतलब ये कि श्रीमान चेन्नई छोडकर बंगलौर में बसने की तैयारी में हैं? इतने सालों में चेन्नई की गर्मी की आदत हो गई होगी तो बंगलौर ठीक ही लगेगा.:)
ReplyDeleteरामराम.
सिर्फ तैयारी नहीं. बस चुके हैं ताऊ.
Deleteबैंगलोर में "हल्ली-पल्ली" टाईप...haha :-)
ReplyDelete:)
Deleteनगर तो वही अच्छा है जो सबको सहारा दे, यूबी सिटी और चिकपेट आस ही पास हैं बंगलोर में और दोनों में साधिकार जाते हैं।
ReplyDeleteनाम बहुत सुना है दोनों का. मौका मिलते ही हो आते हैं. :)
Deleteसही कहा! हरा शहर में एक ऐसा इलाका होता है, जहाँ 'स्ट्रगलर' रहते हैं और पाश एरिया के लोग ऐसी जगहों से नफरत करते हैं.
ReplyDeleteएक बात बड़ी मज़ेदार लगी- "खैर हमें इतना ही समझ आया कि चेन्नई में जगहों का नाम कुछ "अक्कम-बक्कम" टाईप होता है और बैंगलोर में "हल्ली-पल्ली" टाईप." :)
हाँ. जैसे हमारे तरफ के जगहों के नाम के अंत में गंज-पुर जुड़ा होता है. :)
Deleteतुम्हारा कमेन्ट स्पाम में चला गया था. अभी देखे.
aapki chennai dairy pasand aayee, aur lijiye ham 200th follower bhi ho gaye :)
ReplyDeleteवाह. शुक्रिया. :)
Deleteजी हाँ, शहर सब एक से ही तो हैं !
ReplyDelete