Thursday, December 19, 2013

देवयानी पर उठे बवाल संबंधित कुछ प्रश्न

हमारे कई मित्र इस बात पर आपत्ति जता रहे हैं कि देवयानी मामले में भारत सरकार इतनी आक्रामक क्यों है? जबकि दुसरे अन्य मामलों में ऐसा नहीं था. मेरे कुछ अमेरिका में रहने वाले मित्र भी इस बात को हमारी बातचीत में उठा चुके हैं. कुछ मित्र यह भी कह रहे हैं कि "सुनील जेम्स" जो छः महीनों से टोगो के जेल में बंद...

Monday, December 09, 2013

हम लड़ेंगे साथी

आज बस एक पुरानी कविता आपके सामने - हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे साथी,उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी,गुलाम इच्छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी,जिन्दगी के टुकड़े हथौड़ा अब भी चलता है,उदास निहाई पर हल अब भी बहते हैं चीखती धरती पर यह काम हमारा नहीं बनता,प्रश्न नाचता है प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर हम लड़ेंगे साथी...

Tuesday, October 15, 2013

बाथे नरसंहार के ठीक बाद

जिस रात यह घटना घटी उससे एक दिन बाद ही मुझे PMCH के इमरजेंसी वार्ड में एक डाक्टर से मिलना तय हुआ था. सोलह-सत्रह साल की उम्र थी मेरी. सुबह जब PMCH के लिए निकला था तब तक मुझे इस घटना की जानकारी नहीं हुई थी. अस्पताल पहुँच कर...

Tuesday, May 28, 2013

ज्वलंत समय में लिखना प्रेम कविता

1. जब देश उबल रहा था माओवादी हिंसा एवं आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर मैं सोच रहा था कि लिखूँ एक नितांत प्रेम में डूबी कविता!! 2. बुद्धिजीवियों के विमर्श का शीर्ष बिंदू जब थी सामाजिक समस्याएँ तब मैं सोच रहा था लिखूँ कुछ ऐसा जो छू ले तुम्हारे अंतर्मन को 3. तथाकथित बुद्धिजीवी जब लगे थे इस जुगत में की...

Friday, May 17, 2013

बयार परिवर्तन की

बिहार की राजनीति में रैलियों का हमेशा से महत्व रहा है और अधिकांश रैलियों में सत्ता+पैसा का घिनौना नाच एवं गरीबी का मजाक भी होता रहा. इस बार आया "परिवर्तन रैली". आईये जानते हैं कि परिवर्तन किसे कहते हैं? १. लालू-नितीश ने...

Thursday, April 04, 2013

अतीतजीवी

ख़्वाब देखा था, ख़्वाब ही होगा शायद. अक्सर ख़्वाबों में कई दफ़े देखा है उनको अपने पास. बेहद क़रीब. इतना जैसे कि हाथ बढ़ाओ और उन्हें छू लो. वो आये और आकर चले गए. ऐसे जैसे आये ही ना हों. मगर वो आये थे, इसका गवाह मेरे घर में बसे उनकी खुश्बू दे रहा है. ढेर सारे आशीर्वाद और ममत्व की खुश्बू. कुछ जूठे बर्तन, कुछ...

Wednesday, March 27, 2013

सलाहें

"कहाँ घर लिए हो?" "जे.पी.नगर में." "कितने में?" "1BHK है, नौ हजार में" "तुमको ठग लिया" सामने से स्माइल पर मन ही मन गाली देते हुए, "साले, जब घर ढूंढ रहा था तब तेरी सलाह कहाँ गई थी? इतना ही है तो अभी भी इससे कम में उसी आस-पास में ढूंढ कर दे दो. मेरा क्या है, मेरा तो पैसा ही बचेगा" फिर से - "कहाँ घर लिए...

Friday, March 15, 2013

ज़िन्दगी जैसे अलिफ़लैला के किस्से

अभी तक इस शहर से दोस्ती नहीं हुई. कभी मैं और कभी ये शहर मुझे अजीब निगाह से घूरते हैं, मानो एक दुसरे से पूछ रहे हों उसका पता. सडकों से गुजरते हुए कुछ भी अपना सा नहीं लगता. पहचान होगी, धीरे-धीरे, समय लगेगा यह तय है. चेन्नई को समझने के लिए कभी इतना समय नहीं मिला. ज़िन्दगी बेहद मसरूफ़ थी और मन में भी पहले...

Wednesday, March 13, 2013

शहर

बैंगलोर कि सड़कों पर पहले भी अनगिनत बार भटक चुका हूँ. यह शहर अपनी चकाचौंध के कारण आकर्षित तो करता रहा मगर अपना कभी नहीं लगा. लगता भी कैसे? रहने का मौका भी तो कभी नहीं मिला था. २००५ में पहली दफे इस शहर में आया था, शायद जुलाई का महिना था वह. और लगभग साढ़े सात साल बाद बसने कि नियत से इस साल जनवरी में आया. अभी...

Tuesday, February 05, 2013

बोंसाई

  दमनकारी चक्र के तहत जड़ो एवं तनों-पत्तियों को काट-छांट कर बहाकर उन मासूम पौधों का खून तमाशा देखते लोग हर पौधे पे वाह-वाह का शोर दमनकारी चक्र के तहत हमारी जड़ों एवं प्रतिभाओं को काट-छांट कर बहाकर प्रतिभाओं का खून...