बचपन से 'बाढ़' शब्द सुनते ही विगलित होने और बाढ़-पीड़ित क्षेत्रों में जाकर काम करने की अदम्य प्रवृति के पीछे - 'सावन-भादों' नामक एक करुण ग्राम्य गीत है, जिसे मेरी बड़ी बहिन अपनी सहेलियों के साथ सावन-भादों के महीने में गाया करती थी । आषाढ़ चढ़ते ही - ससुराल में नयी बसनेवाली बेटी को नैहर बुला लिया जाता...
Sunday, August 28, 2011
Wednesday, August 24, 2011
दरवाजा
कुछ दिनों पहले एक अजीब सा वाकया हुआ.रक्षा बंधन के दिन कि बात है.. मेरे घर पे मेरे भाइयों का जमावड़ा लगा था.. उनमे मुन्ना भैया और मुक्ता भाभी भी थे.. सबने खाना खाया.. लगभग रात के साढ़े दस या एग्यारह बजे भैया और भाभी अपने घर जाने को निकले.. नीचे तक छोड़ने के लिए मैं भी साथ निकली और मेरे साथ मेरी दोनों...
Thursday, August 18, 2011
एक सौ सोलह, चाँद की रातें
ये आर्चीज़ वाले जान बूझ कर सेंटीमेंटल और यादगार गीत बजाते हैं. ये चाहते हैं की फ़साने चलते रहें. रिया ने यही सोचते हुए अपनी गिफ्ट में मिली स्टील घडी को कलाई पर कसा और आर्चीज़ वाले को बोला - भैया, ये विंड चाइम्स, वो चोकलेट, और सोनू निगम की 'जान' सी. डी. एक साथ वो वाले रंगीन कवर में पैक कर दो. पैकिंग...
Sunday, August 07, 2011
दो बजिया बैराग्य - एक और भाग
अगर गौर से सोचें तो सुबह उठना हर व्यक्ति के लिए अपने आप में एक इतिहास की तरह ही होता है, और इतिहास अच्छा, बुरा अथवा तटस्थ, कुछ भी हो सकता है और एक साथ सब कुछ भी.. जब तक घर में रहा तब तक मैं भले ही कितनी ही सुबह उठ जाऊं, पापा या मम्मी या फिर दोनों को ही जगा हुआ पाया हूँ.. पता नहीं माता-पिता इतनी जल्दी...
Tuesday, August 02, 2011
Monday, August 01, 2011
प्रलाप
एक अरसा हुआ कुछ लिखे हुए.. कई लोग मेल करके पूछ चुके हैं कि कई दिन हुए ! क्यों नहीं लिखता हूँ इसका जवाब जानता हूँ.. जो भी लिखूंगा वह कुछ भला सा नहीं होगा.. वह कुछ ऐसा ही प्रलाप होगा जैसे कोई पागल बीच चौराहे अपने कपड़े फाड़-फाड़ कर अर्धनग्नावस्था में घूमता है, और उसे देखकर या तो लोग बगल हट जाते हैं या...