Tuesday, January 18, 2011

सिगरेट का नशा

जिंदगी का पहला कश,
नतीजा बेदम करने वाली खांसी!
दूसरा कश,
हल्का सा चक्कर
हल्की सी खांसी!
तीसरा कश,
दिमाग में एक जोरदार झटका!
अजब सा नशा!!
क्लोरोफार्म सुंघाने पर बेहोश होने से ठीक पहले सी स्थिति सा!!
दूसरी सिगरेट,
उसी नशे की चाह,
पर नशा हल्का सा ही!
तीसरी सिगरेट,
फिर उसी नशे की चाह,
नशा सिगरेट दर सिगरेट कम होते जाना!
उसी नशे की चाह में सिगरेट दर सिगरेट पीते जाना,
नतीजा सिफ़र...
अब वह नशा कहाँ,
और जहाँ वो बेहोशी सा आलम,
बस सिगरेट की तलब..

ये तुम सी ही नहीं है क्या?

15 comments:

  1. बढिया कविता,
    हम कभी सिगरेट का धुंआ इन्हेल न सके, पिछले १० वर्षों में ५-६ बार प्रयास किया लेकिन नतीजा सिफ़र...अब तो दोस्त सिगरेट छूने नहीं देते कि साले तुम्हे पीना तो है नहीं बस खराब कर दोगे एक सिगरेट :)

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  2. हम्म ! जब नशे के लिए किया हो तो ही ऐसा होता है, पर जब बात धीरे-धीरे गहरी होती हो, तो नहीं.
    बहरहाल, कविता अच्छी है और ये बताती है कि मुंडे ने भी कभी कोशिश की सिगरेट पीने की, पर उसे लत नहीं पड़ी तो नहीं पड़ी. अब जब लत नहीं पड़ी तो मामला सिफर पर आने की गुंजाइश नहीं. क्यों?

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  3. कहा जाता है, हम तो सिर्फ एक सिगरेट पीते हैं, बाद वाली सब, उसके पहले वाली पीती है, चेन स्‍मोंकिग.

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  4. हा! हा! दिलचस्प है!!! वैसे सच पूछो तो ये रोमांटिसिज़्म और स्मोकिंग, दोनों ही एक सिक्के के दो पहलु हैं।

    हमारी ट्रेनिंग एकेडमी में हम सब सुट्टॆ वालों का एक खास ग्रुप था, कि स्मोकिंग पर पाबंदी थी। छुप-छुप के रखना पड़ता था। और यकीन करोगे, एकेडमी के सारे अच्छे धावक ये चिमनी-पार्टी{जैस कि हमें पुकारा जाता था} ही होते थे... :-)

    but liked your poetry!

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  5. कविता में ट्विस्ट पसंद आया...ये लेखन का कमाल है...बधाई

    नीरज

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  6. "...ये तुम सी ही नहीं है क्या?..."
    ग़लत.
    सिगरेट के बारे में तो चलिए, आपसे सहमति है, मगर दूसरे मामले में तो नशा अधकपारी के दर्द की तरह ज्यों ज्यों दिन चढ़े बढ़ता जाए वाला किस्सा है... :)

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  7. Somebody once told me, Why having cigarette is better than having girlfriend .

    You made me remember that friend again :)

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  8. सिगरेट में इतना नशा !
    (मुझे तो कभी पता ही नहीं चला)
    :-)

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  9. बहुत अच्छी रचना| धन्यवाद|

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  10. बड़ी गहरी बात कह गये श्रीमानजी।

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  11. मैं सिगरेट को मुक्ति की चाह कहूंगा...

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  12. वाह क्या कोकटेल की है.....

    पैर डगमगा गए - कसम से ..

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  13. कविता में ट्विस्ट पसंद आया...ये लेखन का कमाल है...बधाई

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  14. जिसकी तुलना आपने सिगरेट से की है उसकी तुलना तो इस संसार मै किसी से नहीं की जा सकती. हो सकता है मै गलत हूँ .या मै समझ नहीं पाई हूँ .

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