नतीजा बेदम करने वाली खांसी!
दूसरा कश,
हल्का सा चक्कर
हल्की सी खांसी!
तीसरा कश,
दिमाग में एक जोरदार झटका!
अजब सा नशा!!
क्लोरोफार्म सुंघाने पर बेहोश होने से ठीक पहले सी स्थिति सा!!
दूसरी सिगरेट,
उसी नशे की चाह,
पर नशा हल्का सा ही!
तीसरी सिगरेट,
फिर उसी नशे की चाह,
नशा सिगरेट दर सिगरेट कम होते जाना!
उसी नशे की चाह में सिगरेट दर सिगरेट पीते जाना,
नतीजा सिफ़र...
अब वह नशा कहाँ,
और जहाँ वो बेहोशी सा आलम,
बस सिगरेट की तलब..
ये तुम सी ही नहीं है क्या?
बढिया कविता,
ReplyDeleteहम कभी सिगरेट का धुंआ इन्हेल न सके, पिछले १० वर्षों में ५-६ बार प्रयास किया लेकिन नतीजा सिफ़र...अब तो दोस्त सिगरेट छूने नहीं देते कि साले तुम्हे पीना तो है नहीं बस खराब कर दोगे एक सिगरेट :)
हम्म ! जब नशे के लिए किया हो तो ही ऐसा होता है, पर जब बात धीरे-धीरे गहरी होती हो, तो नहीं.
ReplyDeleteबहरहाल, कविता अच्छी है और ये बताती है कि मुंडे ने भी कभी कोशिश की सिगरेट पीने की, पर उसे लत नहीं पड़ी तो नहीं पड़ी. अब जब लत नहीं पड़ी तो मामला सिफर पर आने की गुंजाइश नहीं. क्यों?
कहा जाता है, हम तो सिर्फ एक सिगरेट पीते हैं, बाद वाली सब, उसके पहले वाली पीती है, चेन स्मोंकिग.
ReplyDeleteहा! हा! दिलचस्प है!!! वैसे सच पूछो तो ये रोमांटिसिज़्म और स्मोकिंग, दोनों ही एक सिक्के के दो पहलु हैं।
ReplyDeleteहमारी ट्रेनिंग एकेडमी में हम सब सुट्टॆ वालों का एक खास ग्रुप था, कि स्मोकिंग पर पाबंदी थी। छुप-छुप के रखना पड़ता था। और यकीन करोगे, एकेडमी के सारे अच्छे धावक ये चिमनी-पार्टी{जैस कि हमें पुकारा जाता था} ही होते थे... :-)
but liked your poetry!
कविता में ट्विस्ट पसंद आया...ये लेखन का कमाल है...बधाई
ReplyDeleteनीरज
"...ये तुम सी ही नहीं है क्या?..."
ReplyDeleteग़लत.
सिगरेट के बारे में तो चलिए, आपसे सहमति है, मगर दूसरे मामले में तो नशा अधकपारी के दर्द की तरह ज्यों ज्यों दिन चढ़े बढ़ता जाए वाला किस्सा है... :)
Somebody once told me, Why having cigarette is better than having girlfriend .
ReplyDeleteYou made me remember that friend again :)
सिगरेट में इतना नशा !
ReplyDelete(मुझे तो कभी पता ही नहीं चला)
:-)
बहुत अच्छी रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteबड़ी गहरी बात कह गये श्रीमानजी।
ReplyDeleteक्या सचमुच इतना नशा होता है सिगरेट में?
ReplyDelete---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
मैं सिगरेट को मुक्ति की चाह कहूंगा...
ReplyDeleteवाह क्या कोकटेल की है.....
ReplyDeleteपैर डगमगा गए - कसम से ..
कविता में ट्विस्ट पसंद आया...ये लेखन का कमाल है...बधाई
ReplyDeleteजिसकी तुलना आपने सिगरेट से की है उसकी तुलना तो इस संसार मै किसी से नहीं की जा सकती. हो सकता है मै गलत हूँ .या मै समझ नहीं पाई हूँ .
ReplyDelete