Tuesday, November 16, 2010

ताला

आज मैंने उसे बड़े गौर से देखा.. कल्पना अक्सर लोगों को कुछ अधिक ही जहीन बना देती है.. हकीकत से अधिक खूबसूरत भी कल्पना ही बनाती है और कल्पना ही उनमे महान होने का अहसास भी जगाती है.. शायद मैं भी खुद एक कल्पना सा होता जा रहा हूँ, यथार्थ से कहीं दूर.. एक अलग जहान अपनी सी भी लगती है..

वह अभी भी वैसी ही थी जैसी पहले थी.. नाक-नक्स से खूबसूरत होने का पर्याय भी तुम्हे कहा जा सकता है, मगर तुम इतनी भी अधिक खूबसूरत नहीं कि पूरी जिंदगी मात्र खूबसूरती के भरोसे काटा जा सके.. फिर भी तुम्हे देखते रहने को जी करता है.. लगातार.. निरंतर.. अनवरत..

हाँ! मगर जब तुम पास होती हो तो ऐसा लगता है जैसे सारी कायनात मेरे सामने पनाह मांग रही हो.. कोई भी इच्छा-लालसा अधूरी ना रही हो.. सुध-बुध खोकर तुम्हे अपनी आँखों में भर लेने का जी करने लगता है और तुम्हे लगता है कि मैं तुम्हे घूर रहा हूँ..

तुम मेहदी लगाती थी, पूरे दाहिने हाथ में.. और बाएं हाथ में सिर्फ एक वृत्त बनाकर छोड़ देती थी.. मैं तुम्हारे बाएं हाथ को हाथों में लेकर अपनी आँखों से लगा लेता हूँ, मानो मेरे लिए सारा ब्रह्माण्ड उसी वृत्त के इर्द-गिर्द भटक रहा हो.. आज कोई बता रहा था कि मेरे आँखों के चारों और काले धब्बे से बनते जा रहे हैं..

तुम बताती थी कि मैं डेनिम कार्गो में अच्छा लगता हूँ.. वह पीली वाली टीशर्ट तुम्हे याद भी थे जो मैंने कई साल पहले किसी त्यौहार के लिए ख़रीदे थे और माँ से जिद करके पहले ही पहन कर निकल आया था घर से.. पिछली दफे जब घर गया था तो वह बेचारा दबा-सिमटा तह करके अलमीरा में रखा हुआ था.. तुम्हारी दी हुई वह कार्गो डेनिम भी एक सूटकेश में तह करके रखी हुई है.. मन भी इधर कुछ दिनों से कई परतों में दबा हुआ सा तह करके रखा हुआ सा लगने लगा है..

मन भी मुझे कभी-कभी उसी पेड़ कि तरह लगता है जो लगातार रेल के साथ दौड़ लगाता रहता है.. मगर यह मौकापरस्त नहीं होता.. यह रेल के साथ दौड़ लगाने वाले पेड़ कि तरह रिले रेस नहीं दौड़ता, कि एक झटके से दौडना बन्द कर दे और अचानक से दूसरा पेड़ उसी दौड़ का हिस्सा बन जाए.. मन दौड़ता है, रुकता है, मगर साथ ही वहीं खड़े होकर इन्तजार भी करता है, के शायद वह रेल दुबारा वापस आये.. कुछ मन, दूसरे रेलों के साथ दौड़ लगाने में मशगुल हो जाते हैं.. कुछ मन उसी रेल का इन्तजार करते रह जाते हैं, जो पलट कर आने में इस जिंदगी का सा समय लेते हैं..

Friday, November 05, 2010

ड्राफ्ट्स

१:
"आखिर मैं कहाँ चला जाता हूँ? अक्सर कम्प्युटर के स्क्रीन पर नजर टिकी होती है.. स्क्रीन पर आते-जाते, गिरते-पड़ते अक्षरों को देखते हुए भी उन्हें नहीं देखता होता हूँ क्या? या फिर उन्हें देख कर भी ना देखते हुए मैं अपनी एक अलग दुनिया बुनता रहता हूँ और रह-रह कर उस दुनिया से इस दुनिया तक के बीच सामंजस्य बनाने के लिए आँखें स्क्रीन पर टिकी रहती है?" सच भी है कि हर किसी कि अपनी दुनिया भी होती है.. जिसे वह हमेशा साथ लेकर चलता है.. हर एक कि अपनी दुनिया दूसरे कि दुनिया से जुदा भी होती है.. इस दुनिया के साथ चलते हुए किसी दूसरी दुनिया में जीने की कला हर एक को आती है.. और उम्र के साथ-साथ उस दुनिया में भी बदलाव आता है..

२:
मैं आस-पास देखने समझने कि कोशिश करता हूँ.. कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता.. शहर, जाने कौन सा भी हो, अपनी सी शक्लें लिए भागता सा दिखता है.. मैं उठता हूँ.. जी जान लगा कर दौड़ता हूँ.. थकता हूँ.. हांफता हूँ.. रूकता हूँ.. गरियाता हूँ शहर वालों को.. फिर दौड़ने कि हालत में ना होने पर बैठ जाता हूँ, सोचते हुए कि इस रेस में ही जितने वाले क्या जीते? मन का दूसरा कोना बताता है कि कहीं अंगूर खट्टे ना हों.. उसे डपियाटा हूँ, आँखें तरेरता हूँ, इशारों में समझाता हूँ जिससे दोबारा ऐसी बात ना कहे.. वो सब अनसुना करके अपना राग गाये चला जाता है.. एक हिस्सा इस दौड़ को ख़ारिज करने पर तुला हुआ है तो दूसरा अंगूर खट्टे बताना चाह रहा है.. दोनों का शोर में दिमाग पर जोर अधिक होता है.. बेदम होकर गिर जाता हूँ.. सुबह घर वाले बताते हैं कि फिर मैं देर रात तक जगा हुआ था और बेसुध हो कर बिस्तर पर गिरा हुआ था, साथ में सलाह भी आती है कि अपना समय सारिणी को बदलना होगा.. मैं प्रतिकार नहीं कर पाता, बता नहीं पाता हूँ कि अभी तक मैं सोया ही नहीं हूँ.. कितनी रातों से नहीं सोया हूँ.. हर रोज का यही किस्सा.. लोग जिसे सोना कहते हैं.. मेरे लिए वह थक कर होशोहवास खो देना है..

३:
सिगरेट का एक अधजला टुकड़ा असल की हकीकत से रूबरू कराता सा लगता है.. उन दिनों कि याद दिलाता है.. मुफलिसी की.. आधा टुकड़ा जला कर, आधे को अगले समय के लिए बुझा कर रख लेना.. जले टुकड़े को फिर से सुलगाने पर एक अलग ही कड़वाहट मुंह में भर जाना.. यह सब उस रात तक चलता रहा जिसके अगले दिन बढ़ी हुई तनख्वाह ना मिल गई थी.. सब अब मुझे मेरी दुनिया से अलग दुनिया सा लगता है.. या शायद मेरी ही दुनिया का एक अलग आयाम हो जिसका सामना मैं नहीं करना चाहता हूँ.. कहीं मुझे चौथा आयाम भी तो नहीं दिख रहा है, मनुष्यों कि नज़रों से इतर? कहीं जिंदगी हर पल एक नए आयाम में तो प्रवेश नहीं करती है, जिसका पता हमें नहीं लगता है?
जिंदगी भी सिगरेट जैसी ही होती है, यकीन के साथ तो नहीं कह सकता मगर शायद कुछ-कुछ.. जब तक इसे लबों से लगाए रखते हैं, यह एक अलग ही सुखद अहसास देता रहता है.. नशीला अहसास.. जिंदगी भी तो नशा ही है! एक बार इसे बुझा कर और फिर जलाना वैसी ही कड़वाहट घोल जाता है जैसे सिगरेट, या जैसे जिंदगी..
४:
लोग समझते हैं कि मुझे ना सोने की बीमारी है.. अक्सरहां मुझे जगा हुआ ही या आँख खोले किसी सपने में जीते हुए पाते हैं.. सपने अक्सर अच्छे या बुरे होते हैं.. बचपन में एक सपना अक्सर बहुत परेशान करता था मुझे.. अब वह सपना तो नहीं आता, मगर उस सपने का डर अभी तक गया नहीं है.. अब तक किसी से मैंने यह बांटा नहीं है, माँ-पापा से भी नहीं जिनसे अपने बीते प्रेम प्रसंग पर भी बेधड़क चर्चा कर लेता हूँ.. एक बैलगाड़ी और उसमें बंधे दो बैल.. वे बैल बैलगाड़ी के साथ मेरा पीछा करते थे.. मुझे अपने सींघ से डराते थे.. मगर घिर जाने पर मारते नहीं थे, मेरे घिरने पर मुझे मेरे जो कोई भी प्रियजन बचाने आते थे उनका खून पीने लगते.. वे प्रियजन अक्सर अपना रूप बदल कर आते थे.. कभी माँ, कभी पापा, कभी दादी, कभी दीदी.. मैं डरकर जगता, पसीने में भींगा हुआ, फिर माँ से चिपककर सो रहता..

५:
दूसरों का तो पता नहीं मगर मेरे साथ यह अक्सर होता है.. कहीं भाग जाने का मन करने लगता है.. इस "कहीं" शब्द का कोई निश्चित परिभाषा तय नहीं है, यह "कहीं" कहीं भी हो सकता है.. जब ऐसी इच्छा होती है उस वक़्त भी इस "कहीं" का कोई अपना निश्चित "पता" कहीं नहीं होता है.. मगर जिस अक्षांस और देशांतर में उस पल मैं होता हूँ, वहाँ होने कि इच्छा नहीं होती है.. बस भाग जाने का मन करता है.. ये कोई अवसाद कि स्थिति में ही हो, यह तय नहीं है.. सामान्य अवस्था में रहते हुए भी उस तरह कि बातें मन में पनपने लगती है..

ये सभी बातें पांच अलग-अलग विचारावस्था में लिखी गई थी जो मेरे ड्राफ्ट में रखी हुई थी.. आज सभी को एक ही जगह इक्कट्ठा करके यहाँ पोस्ट कर दिया.. अब आपको जो कुछ भी पढ़ने-समझने जैसा लगे वह पढ़े समझे..


Thursday, November 04, 2010

केछू अब बला औल समझदार हो गया है

केशू से पूछे गए कुछ सवाल के जवाब (केशू के बारे में जानने के लिए यहाँ देखें):

प्रश्न : केछू के पास कितना हाथ है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के पास कितना पैर है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के नाक में कितना छेद है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के कितने आईज हैं?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू कि कितनी दीदी है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के पास कितने कान हैं?
उत्तर : टू!


ये तो सामान्य ज्ञान कि बातें थी.. अब जरा केशू से गणित के सवाल पूछ कर देखा जाए..

प्रश्न : एक और एक कितने होते हैं?
उत्तर : टू!
प्रश्न : टू इन टू वन कितना होता है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : फोर बाई टू कितना होता है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : थ्री माइनस वन कितना होता है?
उत्तर : टू!


तो देखा आपने, केशू दो साल कि उमर में ही कितना होशियार हो गया है? सारे सवाल के सही जवाब.. हो सकता है कि आपके पास अपने भविष्य के लिए कोई प्लान ना हो, मगर इसने पूरी प्लानिंग कर रखी है अभी से ही.. चलिए अब इससे उस पर सवाल पूछते हैं..

प्रश्न : केछू कितनी शादी करेगा?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के कितने बच्चे होंगे?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू कितना कार खरीदेगा?
उत्तर : टू!




फोटो में - केशू. एक मिठाई खाने के बाद टू वाला मिठाई खाने जा रहा है.. :)

और हाँ, एक बात तो बताना ही भूल गया.. केशू अभी बच्चा है, सो ज्यादा कोमप्लिकेटेड सवाल पूछ कर उसे कन्फूजियायियेगा मत.. :) वो तो बात ये है कि केशू इतना ईमानदार है कि अपना जवाब कभी भी नहीं बदलता है.. केशू हमेशा सही उत्तर देता है, बस सवाल पूछने वाला समझदार होना चाहिए.. :)
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एक सिनेमा का एक दृश्य याद आ रहा है.. कादर खान(शायद वही थे) एक बकरी को दिखा कर बोल रहा था कि ये बकरी बोलती है.. कुछ सवाल भी उसने बकरी से पूछा जिसका सही जवाब मिला.. मसलन :

प्रश्न(बकरी से) : यहाँ बकरी कौन है?
उत्तर : मेएएए!!!
प्रश्न : अप्रैल के बाद कौन महीना आता है?
उत्तर : मेएएए!!! :)