Saturday, June 26, 2010

"परती : परिकथा" से लिया गया - भाग १

कथा का एक खंड--परिकथा !

---कोसी मैया की कथा ? जै कोसका महारानी की जै !

परिव्याप्त परती की और सजल दृष्टि से देखकर वह मन-ही-मन अपने गुरु को सुमरेगा, फिर कान पर हाथ रखकर शुरू करेगा मंगलाचरण जिसे वह बंदौनी कहता है : हे-ए-ए-ए, पूरबे बंदौनी बंदौ उगन्त सिरूजे ए-ए...

बीच-बीच में टिका करके समझा देगा---कोसका मैया का नैहर ! पच्छिम-तिरहौत राज । ससुराल---पुरूब ।

कोसका मैया की सास बड़ी झगड़ाही । जिला-जवार, टोला-परोण्ट्टा में मशहूर । और दोनों ननदों की क्या पूछिए ! गुणमन्ती और जोगमन्ती । तीनों मिलकर जब गालियाँ देने लगती तो लगता कि भाड़ में मकई के दाने भूने जा रहे हैं : फड़र्र-र्र-र्र । कोखजली, पुतखौकी, भतारखौकी, बाँझ ! कोसी मैया के कान के पास झाँझ झनक उठते !

एक बार बड़ी ननद ने बाप लगाकर गाली दी । छोटी ने भाई से अनुचित सम्बन्ध जोड़कर कुछ कहा और सास ने टीप का बन्द लगाया--और माँ ही कौन सतवन्ती थी तेरी ।...कि समझिए बारूद की ढेरी में आग की लुत्ती पद गयी । कोसका महारानी क्रोध से पागल हो गयी : आँ-आँ-रे...ए...ए...
रेशमी पटोर मैया फाड़ि फेंकाउली-ई-ई,
सोना के गहनवां मैया गाँव में बंटाउली-ई-ई,
आँ-आँ-रे-ए-ए, रू-उ-पा के जे सोरह मन के चू-उ-उर,
रगड़ि कैलक धू-उ-र् जी-ई-ई !


दम मारते हु, मद्धिम आवाज में जोड़ता है गीतकथाकार--रूपा के सोलह मन के चूर ? बालूचर के बालू पर जाकर देखिये--उस चूर का धूर आज भी बिखरा चिकमिक करता है !

सास-ननद से आखिरी लड़ाई लड़कर, झगडकर, छिनमताही कोसी भागी । रोती-पीटती, चीखती-चिल्लाती, हहाती-फुफनाती भागी पच्छिम की ओर--तिरहौत राज, नैहर । सास-ननदों को पंचपहरिया मूर्छाबान मारकर सुला दिया था कोसी मैया ने ! ...रास्ते में मैया को अचानक याद आयी--जा, गौर में तो माँ के नाम दीप जला ही न पायी !

गीत-कथा-गायक अपनी लाठी उठाकर एक और दिखायेगा--ठीक इसी सीध में है गौर, मालदह जिला में । हर साल, अपनी माँ के नाम दीया-बाती जलाने के लिए औरतों का बड़ा भारी मेला लगता है ।...महीना और तिथ उसे याद नहीं । किन्तु, किसी अमावस्या की रात में ही यह मेला लगता है, ऐसा अनुमान है ।

--अब, यहाँ का किस्सा यहीं, आगे का सुनहु हवाल । देखिये कि क्या रंग-ताल लगा है ! कोसी मैया लौटी । गौर पहुंचकर दीप जलायी । दीप जलते ही, उधर सास की मूर्छा टूट, क्योंकि गौर में दीप जलाने से बाप-कुल, स्वामी-कुल दोनों कुल में इजोत होता है । उसी इजोत से सास की मूर्छा टूटी । अपनी दोनों बेटियों को गुन मारकर जगाया--अरी, उठ गुणमन्ती, जोगमन्ती, दुनू बहिनियाँ !

जारी...

5 comments:

  1. अरे अभी तो तुमसे बात किये थे और इतनी जल्दी पोस्ट भी डाल दिए....खैर, जल्दी से अगला पार्ट लिखो....हम बैठे हैं पढ़ने को ...;)

    और तुमने सही कहा था इस कहानी के बारे में :)

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  2. फड़र्र-र्र-र्र :P

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  3. वाह, मैंने अभी अभी परती परी कथा ख़त्म किया है (तीसरी बार) सच कहू तो पहली बार बहुत कम समझ आई थी पर अब तो उसका नशा चढ़ गया है.

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  4. बढ़िया है पीडी जी ।

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  5. पुणे में नहीं मिली परिकथा, दिल्ली से कुरियर बुधवार को पहुचेगा फिर पढता हूँ मैं भी :)

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