Sunday, June 20, 2010

My Idol, My Dad

अभी दो-चार दिन पहले कि ही बात है.. एक Time Management Training Program में अचानक से पूछा गया, "Who is your idol? किसी और के कुछ कहने से पहले ही मेरे मुह से यंत्रवत निकल गया "My Dad." मुझे फिर अगला सवाल पूछा गया, "Why? You got lots of money from him, that's why?" मेरा कहना था, "Not lots of money. But yes, sufficient amount of money which helped me to start my life." अगला सवाल था, "Your dad is your idol only because of money, right?" मैंने कहा, "I strongly oppose to you. He is my idol because he completed his all responsibility towards his family and society perfectly. I can say that he is very good human being." आज कि यह पोस्ट एक साल पहले लिखी हुई है, आज इसी को रीठेल किये जा रहा हूँ.. :)

आज पापा जी कि याद बहुत आ रही है.. हर वे बातें याद आ रही हैं जो मैंने उनके साथ गुजारी थी.. इन यादों से मेरा एक अजीब रिश्ता बन चुका है, ये कभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ती हैं.. कोई भी ऐसी बात मैं भूल पाने में हमेशा खुद को असमर्थ पाता हूं, जिसे मैंने थोड़ी भी भावुकता के साथ जीया है.. वहीं कुछ काम की बातें हो तो उसे मैंने याद ही कब रखा है, मुझे यह भी याद नहीं नहीं है.. :)

जब से दक्षिण भारत में रहने को आया हूं, तब से घर छः महिने से पहले नहीं जा पाया हूं.. और यह अंतराल इतना अधिक हो जाया करता है, कि जब घर पहूंचता हूं तो पापा जी के चेहरे पर कुछ नई झुर्रीयां देखता हूं.. मन को बहुत तकलीफ होती है, लगता है जैसे पापा जी अब बूढ़े हो रहे हैं और धीरे-धीरे असक्त भी होते जा रहे होंगे.. इतनी समझ तो है ही मुझमें कि यह मनुष्य के जीवन का एक चक्र मात्र है.. कुछ वर्षों के बाद यह चक्र मुझे भी दोहराना है.. शायद कभी मैं भी बूढ़ा होउंगा, यह प्रश्न मुझे कभी परेशान नहीं करता है जितना पापा-मम्मी के चेहरे पर आती झुर्रियां.. सोचता हूं कि काश मैं ययाति वाले कथा को दुहरा पाता?

जब छोटा था तब पारिवारिक दायित्व बहुत अधिक होने के चलते मम्मी को हमेशा गुस्से में देखता था और हममें से कोई भी भाई-बहन उनके पास जाने से कतराता था.. उस समय पापा कि गोद हमारे लिये सबसे सुरक्षित जगह हुआ करती थी.. घर में सबसे छोटा होने का फायदा भी मैंने जम कर उठाया, और पापा कि गोद में 15-16 साल कि उम्र तक खेला हूं.. घर का सबसे बड़ा नालायक, सबसे ज्यादा गुस्सैल भी और पढ़ाई-लिखाई भी साढ़े बाईस.. और ऐसे में भी पापा जी का भरपूर प्यार मिलना, बिना किसी डांट-पिटाई के.. मम्मी पापा जी को अक्सर कहती थी, "यह अगर बड़ा होकर बिगड़ गया तो सारा दोष आपका ही होगा.." तो वहीं पापा जी भी झटक कर कह देते थे कि "अगर यह बड़ा होकर सुधरा तो सारा श्रेय भी मेरा ही होगा".. आज के परिदृश्य में वे लोग मुझे बिगड़ा हुआ मानते हैं या सुधरा हुआ यह तो वही बता सकते हैं.. मगर मैं अपनी नजर में अभी तक सुधरा हुआ तो बिलकुल भी नहीं हूं.. एक बेटे के बड़े होने के बाद वह अपने पापा मम्मी को जो भी सुख दे सकता है वो तो अभी तक उन्हें मुझसे तो नहीं मिला है..


चित्र में पापा, मम्मी, भैया और मेरा पुतरू(भैया का बेटा)..

छुटपन के बारे में याद करने कि कोशिश करता हूं तो एक प्लास्टिक का बैट और बॉल याद आता है, जिसे पापा जी नीचे से गुड़का कर(लुढ़का कर) फेकते थे और मैं उसे मारता था.. एक रेलगाड़ी भी याद आती है जिसमें प्लास्टिक कि रस्सी बंधी होती थी और उसे पकड़ कर खींचने पर शोर करती थी, जिसे कई बार पापा जी मेरा हाथ पकड़ कर खींचते थे.. एक कैरम बोर्ड याद आता है, जिसका स्ट्राईकर पकड़ना भी पापा जी से ही सीखा था कैरम के सभी नियमों के साथ और बाद में उसी कैरम को खेलते हुये मैं और भैया अपने गली-मुहल्ले के चैंपियन बन गये थे.. बैडमिंटन का वो छोटा वाला प्लास्टिक का रैकेट भी याद आता है जिसे खेलना भी पापा जी ने ही सिखाया था.. ये सभी यादे छः साल कि उम्र या उससे पहले की हैं..

थोड़े बड़े होने पर भी पापा जी के साथ क्रिकेट खेलने जाते थे और पापा जी हमेशा थ्रो बॉल फेंकते थे.. बिलकुल ऐसे जैसे पत्थर फेंक रहे हों.. पता नहीं ऐसे ही कितनी बातों का थ्रो पत्थर मैंने उनपर कितनी बार फेका है, उन पत्थरों से कितनी चोट भी पहूंचायी है.. फिर भी कभी इसका अहसास नहीं होने दिया उन्होंने मुझे..

एक बार किसी पर्सनैलिटी डेवेलपमेंट ट्रेनिंग में मुझसे कहा गया था कि 1 मिनट आंखें बंद करके उस क्षण को सोचो जब तुम्हें सबसे ज्यादा खुशी मिली हो.. मैंने आंखें बंद की और 1 मिनट ईमानदारी से सोचने के बाद मैंने पाया कि मेरे लिये वह क्षण सबसे ज्यादा खुशी का क्षण होता है जब घर पहूंचकर पापा जी का पैर छूने कि कोशिश करता हूँ मगर उससे पहले ही पापा जी मुझे सीने से लगा लेते हैं..

जब पापा जी के पके हुये बालों को और उनके चेहरे की झुर्रियों को देखकर मैं उन्हें चिढ़ाता हूं कि पापा जी अब बुढ़ा गये हैं तो उनका कहना होता है कि अब तो सठिया भी गये हैं.. आखिर दादा-नाना तो बन ही चुके हैं.. अगर आज के संदर्भ में देखा जाये तो मैं उनपर आश्रित नहीं हूं, और अगर शारीरिक सक्षमता कि बात आती है तो उनसे ज्यादा ही सक्षम हूं.. मगर फिर भी जब वे साथ होते हैं तो ना जाने एक अजीब सी हिम्मत बंध जाती है, की पापा जी मेरे साथ है तो सारी दुनिया भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है..

ऐसा क्यों होता है यह मुझे नहीं पता है, मगर मैं चलते-चलते यह जरूर कहना चाहूंगा कि मेरे पापा जी मेरे जीवन में मेरे एकमात्र हीरो हैं.. मैं हमेशा सोचता हूं कि काश कभी मैं अपने पापा जैसा आदर्शवादी और कर्मठ इंसान बन पाऊं..


यह विडियो पिछले साल 2009 22 अप्रैल, पापा-मम्मी कि शादी कि 32वीं सालगिरह की है..

13 comments:

  1. @ईमानदारी से सोचने के बाद मैंने पाया कि मेरे लिये वह क्षण सबसे ज्यादा खुशी का क्षण होता है जब घर पहूंचकर पापा जी का पैर छूने कि कोशिश करता हूँ मगर उससे पहले ही पापा जी मुझे सीने से लगा लेते हैं.
    यही सबसे बड़ी खुशी होती है... माता-पिता चाहे जितने बूढ़े हो जाएँ, चाहे जितने अशक्त हो जाएँ, उनके रहने से ही सम्बल मिलता है, वो परिवार को एक सूत्र में बाँधकर रखते हैं... और उनके ना रहने पर परिवार बिखर जाता है, जैसे मेरा बिखर गया है.
    अंकल-आंटी की फोटो पहले भी देख चुकी हूँ और तब भी मैंने कहा था कि बड़ी अच्छी जोड़ी है... तुम बहुत खुशकिस्मत हो प्रशांत, अपने पैरेंट्स का हमेशा ख्याल रखना.

    ReplyDelete
  2. इसका कोई जोड़ नहीं..

    ReplyDelete
  3. Meri mummy meri behtar dost theen. Lekin aaj mere Daddy hi mere mom-dad dono hain.

    Mom ab nahi hain..

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छा लगा पढ़कर । कोमल भावनाओं को भी उभारना होगा जीवन के मंच पर नहीं तो अस्तित्वों के युद्ध हमें निर्मम बना देंगे । आपके माता पिता को मेरा प्रणाम इतना होनहार बेटा समाज को देने के लिये ।

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. ये तीसरी बार आया हूँ यहाँ मैं :)

    ReplyDelete
  7. i loved this post n the video......
    sach mein :)) :))

    ReplyDelete
  8. बहुत ईमानदारी से लिखा है आपने। पिता के प्रति प्यार और आदर, बिना दबाव के, बिना स्वार्थ के, बिना डर के और उनके मित्रवत् व्यवहार के साथ याद रहे - तो पिता आइडल होंगे ही।
    बहुत अच्छा लगा, मगर यह कहने का मतलब यह नहीं कि पीडी की बाक़ी पोस्ट ईमानदारी में कहीं कम होती हैं। ये तो मेरी काहिली है कि पढ़ने तो फ़टाफ़ट आ गए, सर्राते हुए पढ़ी - और निकल लिए।
    कम मैं तब लिखता हूँ टिप्पणी में जब कहीं गुम हो जाता हूँ सोच में - और लिख नहीं पाता, या जब कुछ ख़ास न हो लिखने को, सिवाय उत्साहवर्द्धन के।
    बस इसीलिए टिप्पणी बिना निकल लिए गुरू…
    मगर आज की पोस्ट ने पकड़ लिया - कि जब तक टिपियाओगे नहीं - जा नहीं सकते।
    बधाई।
    बेलाग-लपेट के, ख़ूब लिखा।

    ReplyDelete
  9. 'पापा' -'ममा' से ग्रेट कोई नहीं...बढ़िया लगी आपकी यह पोस्ट.

    ________________
    'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' जरुर देखने आयें !!

    ReplyDelete
  10. देर से सही, पर हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकारें।
    ---------
    क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
    अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  11. ए पीडी ! तुमको तो बहुत ही बार देखे हैं जी !!
    और इस ब्लॉग पर पहले भी कमेन्ट किया है कई बार. गूगल बज़ में तो तुम नए ही लगे यार. हा हा हा
    हर बार की तरह इस बार भी दिलकश लिखा है आपने.

    ReplyDelete
  12. राजीव भाई, वो तो आपके लिखने के तरीके से ही पता चल गया था.. :)

    ReplyDelete