Saturday, March 06, 2010

शाईनिंग इंडिया और कैटल क्लास

मैं अबकी जब घर आ रहा था तब चार साल के बाद स्लीपर में यात्रा किया.. मैं रास्ते भर खूब इंज्वाय किया.. तरह तरह के लोग आते थे और अपने तरह से अपना बिजनेस कर रहे थे.. कोई पान-मसाला बेच रहा था तो कोई नट बन कर पैसे कमा रहा था.. कभी कोई लैंगिक विकलांग आकर जबरी वसूली कर रहा था, तो कोई गा रहा था.. कोई भीख मांग रहा था तो कोई भगवान का रूप धारण किये हुआ था.. पटना पहूंचने से ठीक पहले मुझे अचानक से लगा कि यह लोग चाहे जैसे भी अपने जीने की जद्दोजेहद में लगे हुये हैं... और मैं इन्हें देखकर मजे ले रहा हूं? क्या मैं भी उन सो-कौल्ड एलीट वर्ग में आ गया हूं जो थर्ड ए.सी., सेकेण्ड ए.सी. या फिर हवाई जहाज से यात्रा करने वालों की जमात में शामिल हो गया हूं? और उनके लिये ये सारे लोग तमाशा हो गये हैं, कुछ उसी तरह जैसे हम चिड़ियाघर में जानवरों का तमाशा देखने जाते हैं!! फिर अपने ऊपर शर्म आने लगी.. मन में आया कि यही है शाईनिंग इंडिया, जहां किसी का दर्द औरों के लिये तमाशा से अधिक और कुछ नहीं होता है..

हमारे देश में जब तक यह अमीर-गरीब की खाई यूं ही बढ़ती रहेगी तब तक भारत कभी भी उन्नती के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता है..

Related Posts:

  • किस्सों में बंधा एक पात्रहर बार घर से वापस आने का समय अजीब उहापोह लिए होता रहा है, इस बार भी कुछ अलग नहीं.. अंतर सिर्फ इतना की हर बार एक-दो दिन पहले ही सारे सामान तैयार रखता थ… Read More
  • बच्चा!!!दीदी की बड़की बिटिया का जन्म हमारे यहाँ ही हुआ था, और बचपन में दीदी कि छुटकी बिटिया के मुकाबले मैं बड़की के ही अधिक संपर्क में रहा। उसके पैदा होने पर … Read More
  • केछू पप्प!!भैया का बेटा.. उम्र दो वर्ष, तीन माह.. मुझे छोटे पापा बोलने कि कोशिश में मात्र पापा ही बोल पाता है, छोटे पापा शब्द उसके लिए कुछ अधिक ही बड़ा है.. इस ग… Read More
  • पटनियाया पोस्ट!!किसी शहर से प्यार करना भी अपने आप में अजीब होता है.. मुझे तो कई शहरों से प्यार हुआ.. सीतामढ़ी, चक्रधरपुर, वेल्लोर, चेन्नई, पटना!!! पटना इन सबमें भी कु… Read More
  • केछू अब बला औल समझदार हो गया हैकेशू से पूछे गए कुछ सवाल के जवाब (केशू के बारे में जानने के लिए यहाँ देखें):प्रश्न : केछू के पास कितना हाथ है?उत्तर : टू!प्रश्न : केछू के पास कितना पै… Read More

8 comments:

  1. आप का सोचना बिलकुल सही है। सोचना है कि ये खाई कैसे कम हो सकती है।

    ReplyDelete
  2. जाने क्यूँ..यह खाई गहरी ही होती जाती है...

    ReplyDelete
  3. बिल्कुल सही बात, पर इस खाई को भरने के लिये जिन्हें कुछ करना चाहिये वो तो कुछ कर ही नहीं रहे हैं।

    ReplyDelete
  4. जाने क्यूँ..यह खाई गहरी ही होती जाती है...

    ReplyDelete
  5. एलीट वर्ग भी यह जानता है लेकिन वह जानबूझकर इस ओर से अपनी आँखें मून्दे रहता है ।

    ReplyDelete
  6. भाई अभी कुछ दिनों पहले पुणे से लखनऊ मैं भी गया स्लीपर में... पूरे रस्ते इतनी भीड़ की एक बार भी उतरा नहीं ऊपर से. और वहां पहुचने पर लोगों ने इतनी खिचाई की... सोचा था एक पोस्ट लिखूंगा इस पर. पर नहीं लिख पाया. मेरे ऑफिस के एक बन्दे के यहाँ गया था उसने तो यहाँ तक कह दिया 'क्या बताऊंगा मैं लोगों से कि मेरी कंपनी के लोग स्लीपर में चलते हैं !'

    ReplyDelete
  7. इसे इस नज़रिए से देखें - बम्बई में रहते हुए जब अपने घर अजमेर जाता हूँ, तो मुझे भी ऐसे अनेक चीज़ें दिखतीं है. मुझे उन्हें देख अच्छा लगता है. इसलिए नहीं की मेरा मनोरंजन हो रहा है, बल्कि इसलिए की मैं देख पाता हूँ की येही तो वो जगह है, जहाँ में सचमुच का हूँ!

    ReplyDelete