थोड़ी देर के लिये मैं अपनी यादों के फ्लैश बैक में चला गया था.. लगभग 13-14 साल पहले.. चक्रधरपुर के मेले में पापा के साथ घूम रहा हूं और पापा से जिद कर रहा हूं..
"पापा मुझे बैलून फोड़ना है.."
"बैलून से खेलते हैं, उसे फोड़ते थोड़े ही हैं.." पापा जी अक्सर हमें ऐसे ही बहलाते थे..
"नहीं मुझे बंदूक चला कर बैलून फोड़ना है.."
"अरे बंदूक तो चोर-डाकू चलाते हैं.."
"नहीं मुझे निशाना लगाना है.."
बहुत देर तक परेशान करने के बाद पापा जी अंततः हमें वहां ले जाकर निशाना लगवा ही देते थे और साथ में हौशला भी बढ़ाते जाते थे कि और अच्छा निशाना लगाओ..
कुछ ऐसा ही नजारा था जब मैं विवेक जी से यहां चेन्नई में मिला.. उनका बड़ा बेटा अंतु यहां के मैरीना बीच पर घूमते हुये हर चीज के लिये ऐसे ही जिद कर रहा था और विवेक जी भी उसकी जिदों को पूरा किये जा रहे थे, उसे बहलाने की कोशिश भी कर रहे थे मगर वो भी मेरी ही तरह ना बहलने की जैसे कसम खा रखा था..
शनिवार की बात है.. घर से कुछ ही दिन पहले नेट कनेक्शन कटवाने की वजह से दोपहर में मैं किसी काम से मैं साईबर कैफे गया था और वहां अपने मेल बाक्स में विवेक जी का मेल देखा.. जिसमे उन्होंने शाम में मैरीना बीच पर मिलने की बात कही थी और साथ में अपना नंबर भी दे रखे थे.. मैंने तुरत उन्हें फोन घुमाया और मिलने का समय तय कर लिया.. शाम पांच बजे मैरीना बीच पर.. मैं ठीक 5 बजकर 10 मिनट पर वहां था.. फिर एक दुसरे को ढ़ूंढ़ने का काम चालू हुआ.. बाद में पता चला की विवेक जी अपने पूरे परिवार के साथ दक्षिण भारत भ्रमण पर निकले हुये हैं और वह जहां वह अपने परिवार को छोड़कर मुझे ढ़ूंढ़ने निकले थे वहां मैं खड़ा था और विवेक जी कहीं और मुझे ढ़ूंढ़ रहे थे.. :)
विवेक जी और मैं
दिल की बात कहूं तो मुझे उनका छोटा बेटा संतु बहुत, बहुत, बहुत प्यारा लगा.. उनके साथ उनके दोनों बेटे अंतु, संतु, उनकी पत्नी, और उनके माताजी-पिताजी भी थे.. मैं सिर्फ विवेक जी को ही जानता था मगर जब रात में मैंने उन्हें विदा किया तब मैं उनके साथ-साथ उनके दोनों बेटों से भी अच्छी दोस्ती कर ली..
दिल के साफ और खुले विचार वाले विवेक जी में दिखावा बिलकुल भी नहीं था.. लगभग 3-4 घंटे में मैंने उनसे कई बातों पर बात किया जिसमें ब्लौगिंग से लेकर चेन्नई तक और पानीपत से लेकर पटना तक की बातें भी शामिल थी.. वहां उनके तीन मित्रों से भी मुलाकात हुयी.. राजेश जी, गुप्ता जी और मनोहर जी.. जिसमें से राकेश जी और गुप्ता जी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और मनोहर जी खालिश चेन्नई के.. यह तीनों ही विवेक जी के साथ तब थे जब विवेक जी चेन्नई में रहते थे..
विवेक जी और उनके मित्र राजेश जी
उनसे अचानक मिलना बहुत ही अच्छा अनुभव रहा.. और वो भी एक साथ उनके पूरे परिवार से मिलने की बात तो उम्मीद के परे थी.. उनके और उनके बच्चों के सात मैंने कई पल जी लिये जो मेरे लिये अनमोल है और हमेशा के लिये यादगार हो गये हैं..
कुछ अन्य चित्र..
विवेक जी
मैरीना बीच पर बिकते शंख और समुद्री शीपों के चित्र
मैरीना बीच पर बिकते शंख और समुद्री शीपों के चित्र
"पापा मुझे बैलून फोड़ना है.."
"बैलून से खेलते हैं, उसे फोड़ते थोड़े ही हैं.." पापा जी अक्सर हमें ऐसे ही बहलाते थे..
"नहीं मुझे बंदूक चला कर बैलून फोड़ना है.."
"अरे बंदूक तो चोर-डाकू चलाते हैं.."
"नहीं मुझे निशाना लगाना है.."
बहुत देर तक परेशान करने के बाद पापा जी अंततः हमें वहां ले जाकर निशाना लगवा ही देते थे और साथ में हौशला भी बढ़ाते जाते थे कि और अच्छा निशाना लगाओ..
कुछ ऐसा ही नजारा था जब मैं विवेक जी से यहां चेन्नई में मिला.. उनका बड़ा बेटा अंतु यहां के मैरीना बीच पर घूमते हुये हर चीज के लिये ऐसे ही जिद कर रहा था और विवेक जी भी उसकी जिदों को पूरा किये जा रहे थे, उसे बहलाने की कोशिश भी कर रहे थे मगर वो भी मेरी ही तरह ना बहलने की जैसे कसम खा रखा था..
शनिवार की बात है.. घर से कुछ ही दिन पहले नेट कनेक्शन कटवाने की वजह से दोपहर में मैं किसी काम से मैं साईबर कैफे गया था और वहां अपने मेल बाक्स में विवेक जी का मेल देखा.. जिसमे उन्होंने शाम में मैरीना बीच पर मिलने की बात कही थी और साथ में अपना नंबर भी दे रखे थे.. मैंने तुरत उन्हें फोन घुमाया और मिलने का समय तय कर लिया.. शाम पांच बजे मैरीना बीच पर.. मैं ठीक 5 बजकर 10 मिनट पर वहां था.. फिर एक दुसरे को ढ़ूंढ़ने का काम चालू हुआ.. बाद में पता चला की विवेक जी अपने पूरे परिवार के साथ दक्षिण भारत भ्रमण पर निकले हुये हैं और वह जहां वह अपने परिवार को छोड़कर मुझे ढ़ूंढ़ने निकले थे वहां मैं खड़ा था और विवेक जी कहीं और मुझे ढ़ूंढ़ रहे थे.. :)
विवेक जी और मैं
दिल की बात कहूं तो मुझे उनका छोटा बेटा संतु बहुत, बहुत, बहुत प्यारा लगा.. उनके साथ उनके दोनों बेटे अंतु, संतु, उनकी पत्नी, और उनके माताजी-पिताजी भी थे.. मैं सिर्फ विवेक जी को ही जानता था मगर जब रात में मैंने उन्हें विदा किया तब मैं उनके साथ-साथ उनके दोनों बेटों से भी अच्छी दोस्ती कर ली..
दिल के साफ और खुले विचार वाले विवेक जी में दिखावा बिलकुल भी नहीं था.. लगभग 3-4 घंटे में मैंने उनसे कई बातों पर बात किया जिसमें ब्लौगिंग से लेकर चेन्नई तक और पानीपत से लेकर पटना तक की बातें भी शामिल थी.. वहां उनके तीन मित्रों से भी मुलाकात हुयी.. राजेश जी, गुप्ता जी और मनोहर जी.. जिसमें से राकेश जी और गुप्ता जी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और मनोहर जी खालिश चेन्नई के.. यह तीनों ही विवेक जी के साथ तब थे जब विवेक जी चेन्नई में रहते थे..
विवेक जी और उनके मित्र राजेश जी
उनसे अचानक मिलना बहुत ही अच्छा अनुभव रहा.. और वो भी एक साथ उनके पूरे परिवार से मिलने की बात तो उम्मीद के परे थी.. उनके और उनके बच्चों के सात मैंने कई पल जी लिये जो मेरे लिये अनमोल है और हमेशा के लिये यादगार हो गये हैं..
कुछ अन्य चित्र..
विवेक जी
मैरीना बीच पर बिकते शंख और समुद्री शीपों के चित्र
मैरीना बीच पर बिकते शंख और समुद्री शीपों के चित्र