जाने किसका इंतजार है मुझे.. जब घर में अकेला होता हूं मैं, सन्नाटों से घिरा होता हूं मैं.. कोई आहट सी होती है तो, चौंक जाता हूं.. दरवाजे पर निगाहें टिकी होती है, दस्तक कोई दे रहा हो जैसे.. जाने किसका इंतजार है मुझे..
अखबारों को पलटते समय, निगाहें बेकरार होती है जैसे.. हर खबर को पढकर, कुछ ढूंढती हुई निगाहें जैसे.. अखबारों के हर पन्ने से, खेल रहा होता हूं मै.. जाने किसका इंतजार है मुझे..
कभी चबूतरे पर बैठा हुआ, सड़कों पर नजरें जमाये, कुछ सोचते हुये.. दौड़ते-भागते गाड़ियों में जैसे, कुछ ढूंढ रहा होता हूं मैं.. जाने किसका इंतजार है मुझे..
भीड़ में चलते लोगों में, किसी को पहचानने कि कोशिस कर रहा होता हूं मैं.. पता नहीं कोई मिल जाये कभी.. इन ख्यालों में घुम रहता हूं मैं.. जाने किसका इंतजार है मुझे..
मेरे खास मित्र मनोज द्वारा प्रस्तुत यह कविता.. यह उनका प्रथम प्रयास है, आप उनका उत्साहवर्धन अपने टिप्पणियों द्वारा करें..
हर तरफ बस तू ही तूउस मोड़ पर खड़ा था मैं फिर.. ये किसी जीवन के मोड़ कि तरह नहीं थी जो अनायास ही कहीं भी और कभी भी पूरी जिंदगी को ही घुमाव दे जाती है.. ये तो निर्जीव सड़…Read More
एक कला और सिखला दोसपने बुनने कि कला,तुमसे सीखा था मैंने..मगर यह ना सोचा,सपने मालाओं जैसे होते हैं..एक धागा टूटने सेबिखर जाते हैं सारे..बिलकुल मोतियों जैसे..वो धागा टूट …Read More
क्यों चली आती होक्यों चली आती हो ख्वाबों मेंक्यों भूल जाती होतुमने ही खत्म किया थाअपने उन सारे अधिकारों कोमुझ पर सेअब इन ख्वाबों पर भीतुम्हारा कोई अधिकार नहींक्यों चल…Read More
मेरे हिस्से का चांदकभी देखा है उस चांद को तुमने? ये वही चांद है, जिसे बांटा था तुमने कभी आधा-आधा.. कभी तेज भागती सड़कों पर, हाथों में हाथे डाले.. तो कभी उस पहाड़ी वाले शहर…Read More
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आईसमाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आईसमाजवाद उनके धीरे-धीरे आईहाथी से आईघोड़ा से आईअँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...नोटवा से आईबोटवा से आईबिड़ला के घर में समाई, समाज…Read More
भागती-दौडती ज़िदगी मे इंसान के अकेलेपन का सजीव चित्रण किया है मनोज जी ने।उनको अपने पहले प्रयास की बहुत-बहुत बधाई,ये सिलसिला जारी रहेगा,इन्ही शुभकामनाओं के साथ आपका भी आभार अच्छी रचना पढने का मौका देने के लिये।
कभी चबूतरे पर बैठा हुआ, सड़कों पर नजरें जमाये, कुछ सोचते हुये.. दौड़ते-भागते गाड़ियों में जैसे, कुछ ढूंढ रहा होता हूं मैं.. जाने किसका इंतजार है मुझे.. मनोज जी को बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए और आपको धन्यवाद इसे पढ़वाने के लिए !
मनोज को बधाई उनके इस प्रथम प्रयास पर ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता .
और कविता पढ़वाने के लिए आपका शुक्रिया ।
भागती-दौडती ज़िदगी मे इंसान के अकेलेपन का सजीव चित्रण किया है मनोज जी ने।उनको अपने पहले प्रयास की बहुत-बहुत बधाई,ये सिलसिला जारी रहेगा,इन्ही शुभकामनाओं के साथ आपका भी आभार अच्छी रचना पढने का मौका देने के लिये।
ReplyDeleteकभी चबूतरे पर बैठा हुआ,
ReplyDeleteसड़कों पर नजरें जमाये,
कुछ सोचते हुये..
दौड़ते-भागते गाड़ियों में जैसे,
कुछ ढूंढ रहा होता हूं मैं..
जाने किसका इंतजार है मुझे..
मनोज जी को बधाई इतनी सुंदर रचना के लिए और आपको
धन्यवाद इसे पढ़वाने के लिए !
सुन्दर। मनोज के परिचय में कुछ पंक्तियों की अपेक्षा थी।
ReplyDeleteमनोज साहब को इस रचना के लिए बधाई और आपको धन्यवाद इसे पढ़वाने के लिए !
ReplyDeleteBahut hi achchi Kavita hai...
ReplyDeleteMujhe kafi pasand aayi hai...
Bahut khub...