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अगर राष्ट्र स्तर पर देखा जाये तो अभी सारे राजनितिक दल सियासत की राजनीति खेलने में लगे हुये हैं.. आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है जो अगले चुनाव से पहले खत्म नहीं होने वाला है.. अगर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो वहां भी मनमोहन सिंह की कठपुतली सरकार और नेपाल की माओवादी सरकार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों में ही घिर कर रह गयी है.. भारत सरकार का कहना है की भारत अपने ईंजिनियरों और मजदूरों को तटबंध की मरम्मत करने के लिये वहां भेजी थी जहां तटबंध टूट रहा था और जो नेपाल के हिस्से में आता है जहां माओवादियों ने उन्हें मार-पीट कर भगा दिया, और नेपाल सरकार का कहना है की मजदूरों के साथ मेहनताना को लेकर कुछ दिक्कतें आयी थी जिसके कारण वे लोग वहां से लोग वहां से वापस आ गये थे.. अभी हाल-फिलहाल में मैंने किसी न्यूज पोर्टल पर पढा था की इंजिनियर वहां तब पहूंचे थे जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी..
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खैर अब समय ऐसे वाद-विवाद से कहीं आगे करने का आ चुका है.. अभी समय है एक नरसंहार के बाद दूसरे नरसंहार को नहीं होने देने का.. मेरी जानकारी के मुताबिक जब बाढ का पानी उतरता है तो पीछे छोड़ जाता है कई तरह कि बीमारियां.. घुटने भर कीचड़.. विस्थापितों का दर्द.. बिलखते अनाथ बच्चे.. और इन सबसे मरने वालों की संख्या बाढ से मरने वालों से कहीं ज्यादा होती है.. अगर अभी भी हम नहीं चेते तो इस भीषण नरसंहार के हम भी भागीदार होंगे..
जैसा की हमें पहले ही ज्ञात है, 30 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं और उन्हें कम से कम 3-4 महिनों तक राहत शिविरों में रहना पर सकता है.. अगर हम 100 दिनों का भी अनुमान लगाते हैं और 50 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का सोचते हैं तो भी हर दिन 15 करोड़ का खर्च आता है.. मुझे नहीं पता है कि कित्ने पैसे अभी तक इकट्ठा हुआ है बाढ राहत के लिये, मैं अभी आंकड़े जुटा रहा हूं, मगर मुझे ये पता है कि 1500 करोड़ से कहीं ज्यादा खर्च होने वाला है इन सब पर.. और इतने पैसे अभी तक नहीं आ पाये हैं.. मैं आप सभी से ये आग्रह करता हूं की जितना हो सके आप मदद करें और दूसरों को भी इसके लिये प्रेरित करें.. अगर आप अभी भी कुछ ना करेंगे तो इस अगले भीषण नरसंहार के लिये आप सभी भी जिम्मेदार होंगे..
मेरे अगले पोस्ट में - आप कैसे और क्या कर सकते हैं, और चेन्नई में हम क्या कर रहे हैं इसकी जानकारी..
आपका आकलन बिल्कुल सही है। अगली पोस्ट से कुछ रास्ता मिले, ऐसी उम्मीद।
ReplyDeleteकई मेल और लेख पढने को मिले... दुर्दशा है भाई !
ReplyDeleteवही बात संसाधनों का उचित उपयोग ..बिना पैसे खाए सही जगह पहुचाना ....यही उपचार है अब....
ReplyDeleteवातावरण को देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि यह जो दूसरा नरसंहार होगा , वह पहले से बड़ा होगा ,सभी राजनीति कर रहे हैं , जहां अच्छी स्थिति में गरीब लोगो को जीवनयापन करने में लाख मुसीबतें आती है , इस बुरी स्थिति में , जब न उनके पास पैसे हैं , न संसाधन , वे मरने के लिए तो मजबूर हैं ही।
ReplyDeleteसही बात कही आपने. उम्मीद पर दुनियां कायम है.
ReplyDeleteयूँ 1500 करोड़ बड़ी रकम नहीं है इस देश के लिए। राज्य सरकार और केन्द्र के लिए भी। लेकिन इस पर भी बहुत राजनीति होनी है।
ReplyDeleteयहाँ राजस्थान मे मुख्यमंत्री वसुंधऱा एक दिन में बाराँ और झालावाड़ जिलों में 4500 करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास कर गईं। दो माह बाद चुनाव जो हैं।
माननीय मंत्री जी के आवाहन पर सभी रेलकर्मी एक दिन की तनख्वाह इस विषय में दान कर रहे हैं।
ReplyDeleteभीषण त्रासदी-आपके अगले आलेख का इन्तजार है.
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