Thursday, August 28, 2008

क्या मम्मी!! कहां फंसा दी??

क्या मम्मी!! कहां फंसा दी?? कितने अच्छे से आराम से था.. अब तो जिसे देखो आता है.. चारो ओर घेरा डाल कर घूरता है.. इतने मूरख लोग हैं ये सभी, इतने बड़े हो गये हैं और अभी तक ठीक से बोलना भी नहीं आता है.. पता नहीं किस भाषा का प्रयोग...

Monday, August 25, 2008

गिरीधर गोपाल आयो मोरे अंगना

मैं जिस कारण से यहां पटना आया हुआ हूं वो कल सफल हो गया.. कल मेरे अंगना स्वयं गिरीधर गोपाल पधारे.. मेरी भाभी ने कल एक बहुत ही प्यारे बच्चे को जन्म दिया.. बहुत इंतजार कराया हमारे गोपाल ने.. मेरे भैया चित्रगुप्त पूजा के दिन...

Thursday, August 21, 2008

बिहारी, भिखारी और पटियाला दी नारी

- आप उत्तर भारत के किस हिस्से से हैं?- यूं तो मैं पंजाब, पटियाला से हूं मगर पिछले 25 सालों से पापा दिल्ली में बस गये थे..- तो फिर चेन्नई में कहां से आ गई आप?- नौकरी जहां खींच लाया वहां चली आई.. आप कहां से हैं?- मैं बिहार, पटना से..- आप यहां कैसे?- पढाई तमिलनाडु में ही हुई सो नौकरी भी यहीं कर ली..बातें...

Wednesday, August 20, 2008

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता

यूं तो यह एक हिंदी सिनेमा का एक गीत भर है मगर मानो पूरे जीवन-दर्शन को अपने मे समेटे हुआ है..कल रात नींद नहीं आ रही थी.. रात काफी हो चुकी थी.. सो कोई बात करने को भी नहीं था.. नेट पर घूम-घूम कर बोर भी हो चुका था.. बस यूं ही अपना मोबाईल उठा कर कांटैक्ट लिस्ट के सभी नंबर को पलटने लगा.. पाया ढेर सारे नंबर...

Tuesday, August 19, 2008

क्या शामें भी उदास होती हैं?

यार ये भाषा तुम अपने ब्लौग के लिये ही बचा कर रखा करो.. कभी शाम को भी भावनाओं से भर कर उदास कर डालते हो, तो कभी गुल्लक से तस्वीरें निकाल लेते हो.. कभी तो तुम्हारे यादों के भी पर निकल आते हैं, तो कभी मुस्कुराहट चारपाई के नीचे झांकती सी दिखती है तुम्हें.. ये सब हमारे समझ के बाहर की चीजें हैं.. अक्सर मुझे...

Sunday, August 17, 2008

ये कोई ब्लौगर मीट नहीं, बस यारों की महफ़िल थी

13 की शाम लगभग 3 बजे तक मेरा सारा कार्यक्रम तय हुआ.. अचानक से घर जाने का प्लान बनने से अचानक से ही दिल्ली जाना तय हुआ था.. मैंने लगभग 1-2 महीने पहले पंगेबाज जी से कहा था कि मैं जब कभी भी दिल्ली जाऊंगा तो उनसे जरूर मिलूंगा.....

Friday, August 08, 2008

Thursday, August 07, 2008

जन्मदिन के बीते पांच साल

2003कुछ ही दिन पहले मुनीरका शिफ्ट हुआ था.. पहली बार घर से बाहर था अपने जन्मदिन पर.. मन बहुत उदास था और घर की भी बहुत याद आ रही थी.. रात के खाने के समय सभी मित्रों ने पार्टी के लिये हल्ला करना शुरू कर दिया.. मैंने मना कर दिया.. मगर रात का खाना तो खाना ही था सो चल दिये जे.एन.यू. कैंपस में.. टेफ्ला की...

Wednesday, August 06, 2008

कुछ लोग असफल भी रह जाते हैं जीवन में

घर पहूंच कर घड़ी देखा.. रात के 12 बजने में बस 5 मिनट ही बचे थे.. अच्छे से काम करने के बाद प्रोत्साहन के बदले भाषण मिलने से मन कुछ खराब हो चुका था.. हाथ मुंह धो कर पानी पीने रसोई में गया तो शिवेन्द्र अपने लिये खाना निकाल रहा था.. बहुत खुश होकर बताया की पिछले रविवार को वो जिस साक्षात्कार में गया था वहां...

भ्रम के साथ जीना भी अच्छा होता है.. कभी-कभी..

समय बीतने के साथ-साथ मेरा ये भ्रम टूटता जा रहा है की "I'm the best".. मेरे साथ रहने वाले मेरे दोस्तों को भी अगर ये भ्रम था तो वो भी टूटता जा रहा है की "Prashant is the best"..घर जाता हूं तो लगता है जैसे दोस्तों का साथ धीरे-धीरे, बिना कुछ कहे, एक मूक सहमति के साथ छूटता जा रहा है.. आफिस आता हूं तो चाहे...

Tuesday, August 05, 2008

बाकी जो बचा सो महंगाई मार गई

अभी मैं जिस फ्लैट में रह रहा हूं उसमें पिछले साल मैं और मेरे दो मित्र शिफ्ट हुये थे.. उस समय हमारे कालेज का एक मित्र विशाल अपनी एक मित्र के साथ पहले से ही रह रहा था.. कुछ दिनों बाद विशाल की मित्र की शादी हो गई और वो अपने...

Monday, August 04, 2008

नये ब्लौगवाणी की कुछ खामियां

आज बहुत दिनों बाद ऑफिस में कुछ फुरसत से बैठा तो मैंने ब्लौगवाणी के नये संस्करण के साथ छेड़-छाड़ शुरू कर दी.. मैंने पाया की इसे बहुत ही अच्छे तरीके से डिजाईन किया गया है मगर साथ ही इसमें अभी भी कुछ खामियां हैं.. उदाहरण के तौर...

संकोच मित्रों से, मित्रता दिवस पर

परसो शनिवार की सुबह मेरे मित्र(विकास, शिवेन्द्र और वाणी) कालेज (वेल्लोर) जाने की तैयारी में थे जो चेन्नई से 120 किलोमीटर की दूरी पर है.. साथ में मुझे भी जाना था.. मगर सभी को नींद कुछ ज्यादा ही आ रही थी सो इस प्लान को आगे...

Saturday, August 02, 2008

प्रतिशोध की ज्वाला

हर पीढी का अपना एक नायक होता है.. जैसे मुझसे 10-15 साल पहले वाली पीढी के लोगों के लिये वेताल और मैंड्रेक नायक हुआ करते थे.. उस समय भारत में इंद्रजाल कामिक्स का प्रभुत्व हुआ करता था.. सो उस पीढी के नायक भी उसी प्रकाशन से...

Friday, August 01, 2008

बचपन के वे जादुई दिन

बचपन!! हर दिन कुछ जादू जैसा होता था.. पेड़ पर पके हुये अमरूद देखो तो लगता था जैसे जादू है.. किसी के पास गुलेल देखो तो जादू.. भड़ी दोपहरी में दिन भर धूप में खेलना भी एक जादू.. कोई नया सिनेमा देखो तो जादू.. रेडियो, विविध भारती...