2003
कुछ ही दिन पहले मुनीरका शिफ्ट हुआ था.. पहली बार घर से बाहर था अपने जन्मदिन पर.. मन बहुत उदास था और घर की भी बहुत याद आ रही थी.. रात के खाने के समय सभी मित्रों ने पार्टी के लिये हल्ला करना शुरू कर दिया.. मैंने मना कर दिया.. मगर रात का खाना तो खाना ही था सो चल दिये जे.एन.यू. कैंपस में.. टेफ्ला की ओर.. जहां लगभग हर दिन रात के समय आलू के पराठे और रायता खाता था.. सभी उदास मन से चले की एक पार्टी हाथ से चला गया.. वहां पहूंच कर जब सभी अपने अपने खाने का आर्डर करने वाले थे तो मैंने सभी से कहा, जिसे जो खाना है और जितना खाना है मंगा लो और इसे ही पार्टी समझ लेना.. एक साल पहले की बात याद आ रही थी.. कैसे मम्मी माथे को चूम कर आशीर्वाद दी थी.. पापा गोपालगंज में थे.. मन बहुत मायूस सा हुआ जा रहा था मगर दोस्तों को मायूस नहीं करना चाह रहा था..
2004
बस एक सप्ताह पहले ही वी.आई.टी. में एम.सी.ए. के कोर्स में प्रवेश लिया था.. कालेज में पार्थो और शिवेन्द्र को छोड़ किसी को पता नहीं था की आज मेरा जन्मदिन था.. ये दोनो मेरे बी.सी.ए. के साथी थे सो इन्हें पता था.. जहां तक मुझे याद है शायद विकास को भी इस बाबत पता था.. कालेज में जिन सभी से मेरी 4-5 दिनों की दोस्ती थी वे सभी 5 अगस्त को तिरूपति के लिये निकल चुके थे.. उन्हें 7 की रात को लौटना था.. अब बस शिवेन्द्र को ही पता था इसके बारे में और वो भूल चुका था.. जब शाम में तनुजा का फोन शिवेन्द्र के सामने आया और उसने मुझे बधाई दी तब जाकर शिवेन्द्र को याद आया और उसने भी मुझे बधाईयां दी.. उस दिन भी घर की बहुत याद आई.. पूरा दिन यूं ही मायूसी में गुजर गया..
2005
एक दिन पहले(6 अगस्त को) मैं पूरा दिन बैंगलोर में स्वाति प्रिया के साथ था जो मेरी बी.सी.ए. के समय की मित्र थी और रात की ट्रेन पकर कर 7 की सुबह वेल्लोर आ गया था.. मेरे भैया जो आने वाले थे.. हमारी पीढी में सभी भाई बहनों में सबसे बड़े भैया हैं प्रभास रंजन, जिन्हें हम बच्चे बाउ भैया कहते हैं.. वो उस समय कोच्ची में पोस्टेड थे.. बस मेरा जन्मदिन मनाने के लिये वो कोच्ची से 10 घंटे की यात्रा करके वेल्लोर आये थे.. पूरा दिन बस मित्रों और भैया के साथ बिताया.. आज भी याद है की गार्गी को कैसे तंग किया था उस दिन.. कुल मिलाकर मैं बहुत खुश था उस दिन..
2006
कैंपस सेलेक्शन नया नया हुआ था.. जिंदगी दोराहे के भटकाव से निकलना चाह रही थी, मगर फिर उसी मोड़ पर खड़ी हो जाती थी.. उसी दिन काग्निजेंट में सेलेक्ट हुये मेरे मित्रों की सैलेरी भी बढने की खबर आई थी और उनका फंक्शन भी था.. दोपहर के समय जब मैं खाना खाने के लिये होस्टल की ओर बढ रहा था तभी अचानक मेरे दोस्तों ने मुझे पकर कर कैंटीन की ओर ले चले.. वहां देखा की पूरे दोस्तों का हूजूम है.. गार्गी, विकास, चंदन, संजीव, शिवेन्द्र, पार्तो, प्रियर्दर्शीनी, वाणी, अमित, विष्णु.. नीता, अर्चना और प्रियंका भी थोड़ी देर में आ गये.. केक काटा गया, खाया गया और लगाया भी गया.. फिर सभी पार्टी के लिये हल्ला करने लगे.. उस समय तक तो मैं इस सबके लिये तैयार भी नहीं था, मगर संयोग से मेरी जेब में ए.टी.एम. कार्ड था और बगल में ही एस.बी.आई. का ए.टी.एम. भी था.. सो मैंने उसी समय पार्टी दे दिया.. उस पार्टी से मैंने एक गलत चलन शुरू कर दिया था.. लोगों को आईसक्रीम भी खिला दी थी(नीता के कारण :)).. पार्टी के बाद मैं, वाणी, नीता और अर्चना पूरे कालेज कैंपस में फोटो सेशन करते रहे.. बाद में प्रियंका भी हमारे साथ आ गई..
2007
चेन्नई वाले इस घर में शिफ्ट हो चुका था.. 6 अगस्त की शाम को एक एस.एम.एस. आया जिसने मुझे थोड़ा आश्चर्य में डाल दिया.. वो मेरी आभासी दुनिया की मित्र वंदना का था(जिसके बारे में मैं यहां लिख चुका हूं).. फिर मैं जल्दी ही सो गया.. रात बारह बजे विकास ने उठाया और मैंने पाया की केक का इंतजाम कर रखा है.. मोमबत्ती कुछ ऐसा की जितना भी बुझाओ फिर से जल उठता था.. उस समय विकास, शिवेन्द्र और विशाल रहते थे मेरे साथ.. केक काटने के बाद एक और सरप्राईज गिफ्ट मिला.. कामिक्स!! :) जो चेन्नई में नहीं मिलते हैं और संजीव ने रांची से भेजा था.. फिर अगले दिन ऑफिस चला गया.. शाम में वापस आया तो मेरे साथ काम करने वाली दो लड़कियां भी मेरे साथ मेरे घर आई जो उस समय घर के पास ही रहती थी.. नदिया और मुरुगेश्वरी.. फिर पास के ही एक रेस्टोरेंट में जाकर एक छोटी सी पार्टी दी.. बस... 1 दिन पहले मैंने एक नया कैमेरा खरीदा था, उसका भी जम कर प्रयोग किया था.. कुल मिला कर ठीक-ठाक था..
2008
सबसे पहले - अभी शाम के पांच बजे हैं और अभी तक मुझे आर्कुट पर बधाई संदेश देता हुआ 100 से ज्यादा स्क्रैप आ चुके हैं.. 25 के लगभग मेल मिल चुके हैं और जहां कहीं से फोन आ सकते थे वहां से फोन भी आ चुके हैं(2 लोगों को छोड़कर).. रात में शुरूवात हुई वंदना से जो 12 से पहले ही हो चुकी थी.. फिर भैया-भाभी.. फिर अमित.. फिर नीरज.. फिर निधि.. फिर चंदन.. फिर तो कतारे लग गई.. सभी का नाम लेने लगूंगा तो आप सभी बोर हो जायेंगे.. :)
अभी आफिस में बैठा हुआ हूं.. कुछ करने का मन नहीं कर रहा है.. कंप्यूटर स्कीन पर नजर जमाने और पिछले दो दिनों से नींद पूरी ना हो पाने के कारण से आंखों में जलन भी हो रही है.. मगर कुछ कर नहीं सकते हैं.. आज शाम का कोई प्लान दिखता नजर नहीं आ रहा है.. ऐसा लग रहा है आज की शाम भी यूं ही उदासी में गुजर जायेगा.. घर की याद भी बहुत आ रही है..