Wednesday, May 28, 2008

हिंदुस्तानी हिंदी क्या है?(दिल्ली डायरी 2)

कल के ज्ञान जी के चिट्ठे पर आयी ढ़ेर सारे कमेंट्स में से कई इसी बात पर ऐतराज कर रहे थे की इसमें अंग्रेजी के शब्द इतना अधिक क्यों है.. संयोग कुछ ऐसा कि मैं ये पोस्ट ज्ञान जी के पोस्ट के आने से पहले ही लिख चुका था मगर उसे समय कि कमी के चलते पोस्ट नहीं कर पाया था.. अगर मैं सही हूं तो आप सभी को ज्ञान जी के उस पोस्ट में अंग्रेजी के इतने शब्दों का कारण पता चल सकता है..

सच्ची हिंदुस्तानी हिंदी का असल मतलब मुझे किसी हिंदी के विद्वान या किसी हिंदुस्तानी ने नहीं, वरण एक विदेशी महिला ने समझाया था.. वो किस्सा कुछ ऐसा है..

सन् 2003 में प्रगती मैदान में विश्व व्यापार मेला लगा हुआ था.. मैं अपने एक मित्र के साथ वहां से रात के 9:30 पर लौट रहा था.. बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी सो ज्यादा शोर शराबा भी नहीं था.. तभी मैंने सुना की मेरे पीछे वाली सीट से कोई मोबाईल पर कोई महिला बात कर रही है जो कि बहुत ही सर्वसाधारण सी बात है.. सो मैंने भी नजरअंदाज कर दिया.. थोड़ी देर बाद फिर से उसके मोबाईल कि घंटी टनटना उठी.. इस बार वो अंग्रेजी में बात कर रही थी और उनके बोलने का लहजा पूरी तरह से विदेशी था.. सो इस बार उन्होंने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा.. मैं पीछे पलट कर देखा तो पाया कि वो एक विदेशी महिला थी जो थोड़ी देर पहले हिंदी में बात कर रही थी..

मुझे थोड़ी उत्सुकता हुई उनके बारे में जानने का सो मैंने ही बात करने की पहल की.. पता चला कि उनका नाम क्रिस्टीन है, वो कनाडा से हैं और जे.एन.यू. की छात्रा हैं(किस विषय से थी ये अब मुझे याद नहीं है) और लगभग 2 साल से भारत में हैं.. मैंने उनकी हिंदी के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे कहा कि इसे वो और उनके मित्र हिंदुस्तानी हिंदी कहते हैं.. उनसे मुझे पता चला की वो विशुद्ध हिंदी भी जानती हैं मगर उसे बोलने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि यहां के आम लोग जब उसे समझ ही नहीं सकते हैं तो उसे बोलने का फायदा क्या है.. उनकी नजर में हिंदुस्तानी हिंदी का मतलब ऐसी हिंदी जिसमें हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी घुला मिला हो.. उनका कहना मुझे बिलकुल सही लग रहा था और उनसे असहमत होने का मेरे पास कोई कारण नहीं था..

हम लोग मुनिरका में उतर गये.. वहां से उन्हें जे.एन.यू. तक जाना था जो अगर मुनिरका के चारों ओर से घूम कर जाने पर बहुत ही लम्बा रास्ता हो जाता और मुझे जे.एन.यू. के मेन गेट वाले हिस्से में जाना था.. सो मैंने उन्हें मुनिरका के सड़कों का चक्रव्यूह पार करा कर जे.एन.यू. के मेन गेट तक पहूंचा कर वापस आ गया और वो अपने रास्ते चली गई.. उसके बाद भी हम कई बार जे.एन.यू. में उसी मित्रवत व्यवहार के साथ मिले..

9 comments:

  1. आज से १० साल पहले मेरी भी मुलाकात एक रशियन से हुई थी जो धाराप्रवाह हिन्दी बोल रहा था.....उसकी हिन्दी देख बड़े बड़े शर्मा जाते थे ...

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  2. मेरे विचार से भाषा की बजाय कथन के प्रवाह और सम्प्रेषण की सहजता पर ज्यादा जोर होना चाहिये। आप पायेंगे कि अंतत आपको अपनी भाषा स्तरीय रखनी ही होगी। अन्यथा आपकी कोई सुनेगा नहीं।

    रही बात मेरे अंग्रेजी के शब्द ठूंसने की - वह तो पहले से कम है!:)

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  3. सही बात कही आपने.
    बड़ी विडम्बना है ये की इतनी समृद्ध हिन्दी के होते हुए भी हम अंग्रेजी के सहारे के बिना कोई बात दूसरे तक नहीं पंहुचा सकते.

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  4. पहली बात, हमने जो टिप्पणी ज्ञान जी की पोस्ट पर की थी उसमें पोस्ट में अंग्रेजी के शब्दों को लेकर आपत्ति तो सिर्फ़ एक बहाना थी. असल में तो उनकी आंकडा प्रियता को लेकर एक हलकी सी छेड़खानी की थी. एक बार फिर नए नजरिये से उस कमेन्ट को पढिये. और जरा उस कमेन्ट में स्माइली को भी देखिये.

    बाकी ज्ञान जी यहाँ बिल्कुल सही कह गए हैं. हम भी पूरी तरह अनुमोदन करते हैं. बजाय क्लिष्ट और कम समझ में आने वाले हिन्दी शब्द ठूंस कर वाक्य के प्रवाह को बाधित करने के अगर अंग्रेजी के ज्यादा आसान शब्दों को प्रयोग कर लिया जाए तो कोई भारी गलती नहीं है. फिर भी हिन्दी शब्दों का प्रयोग सामर्थ्यानुसार अधिकाधिक करना ही चाहिए.

    बाकी आप जो पोस्ट में कह रहे वो दरअसल एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिस पर गुजरे जमाने में बहुत चर्चा आन्दोलन आदि हो चुके हैं. आजादी के बाद राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी तय हुई, तब एक विचार ये भी रखा गया था बजाय हिन्दी के इसे हिन्दुस्तानी के रूप में रखा जाना चाहिए. पंडित नेहरू हिन्दुस्तानी के समर्थक थे. बहुत राजनीति हुई. शुध्धतावादी ऐसे किसी भी आग्रह के सख्त खिलाफ थे. एक किस्सा प्रसिद्ध है. महाकवि निराला का सामना जब नेहरू से हुआ तो निराला जी ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई, "भाषा को वर्णसंकर बनाना चाहता है?" कहते हुए.

    हिन्दी के vikaas की राह में कई rode atkaaye गए हैं. काफ़ी कुछ कहा सुना जा सकता है इस बारे में. और इन je en yu वालों का नाम मत लिया करो यार. tuchche marksvaadi हैं. apnnee अलग ही khoh में जीते हैं.

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  5. आपकी हर बात से सहमत हूं मैं.. वैसे भी मैने आपको निशाना करके वो पोस्ट नहीं लिखी थी.. फिर भी अगर आपको किसी बात का बुरा लगा हो तो आपसे क्षमा प्रार्थी हूं.. वैसे इतना सेंस ऑफ ह्युमर कि उम्मीद आप मुझसे कर सकते हैं..
    वैसे जे.एन.यू. को लेकर आपके कमेंट से भी सहमत हूं.. मगर मुझे जे.एन.यू. के कल्चर से बहुत कुछ जानने को मिला है जिसे मैं नहीं भूल सकता हूं(नोट - मैं कभी जे.एन.यू. का छात्र नहीं रहा हूं).. :)

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  6. ज्ञानजी की बात से पूर्णतः सहमत.

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  7. दिल्ली डायरी बढ़िया है।

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  8. दिल्ली डायरी पसंद करने के लिये धन्यवाद सर.. आप पहले चिट्ठाकार हैं जिन्होंने दिल्ली डायरी पर नजर डाली, नहीं तो अभी तक जिन्होंने भी पढा उन्होंने मेरी छोटी सी दुनिया को ही पढ़ा.. :)

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  9. bhaiyya aapke kisse padh ke bada mazaa aata hai.....

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