Thursday, March 20, 2008

अमावस्या की रात में टीम मेम्बर के साथ चलना

आजकल मैं लगभग उसी हालत में हूं जैसे अमावस्या की काली और घुप्प अंधकार से भड़ी रात, जिसमें हाथ को हाथ भी ना सूझता हो, में अपने साथीयों के साथ टहलना.. जिसमें आपको पता होता है की आपके साथ कौन है मगर किसी के साथ में होने का अहसास नहीं होता है.. कभी भी मदद के हाथ बढाने पर किसी के साथ का अहसास ना होना..

खैर इसे भी जीवन के संघर्ष का एक हिस्सा मान कर मैं भी उनके साथ चला जा रहा हूं.. कभी तो इस रात की सुबह होगी!!!

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2 comments:

  1. रहिमन चुप हो बैठिये, देख दिनन के फेर।
    जब नीके दिन आयेंगे, बनत न लागे देर॥

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  2. चलते रहें..सामने उजियारा होने को है..शुभकामनायें.

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