मौसी : अरे बेटा बस इतना समझ लो कि घर में जवान बेटी सिने पर पत्थर कि शील की तरह होती है, बसंती का ब्याह हो जाये तो चैन कि सांस लूं।
मैं : हां, सच कहा मौसी आपने, बड़ा बोझ है आप पर।
मौसी : लेकिन बेटा इस बोझ को कोई कुंवे में तो फेंक नहीं देता। बुरा नहीं मानना, इतना तो पूछना ही पड़ता है कि लड़के का खानदान क्या है? उसके लक्षण कैसे हैं? कमाता कितना है?
मैं : कमाने का तो ये है मौसी कि एक बार बीबी-बच्चो की जिम्मेवारी सर पे आ गई तो विद्यार्थी का काम छोड़ कर नौकरी पेशा भी हो ही जायेगा और कमाने भी लगेगा।
मौसी : हें! तो क्या अभी कुछ भी नहीं कमाता?
मैं : नहीं-नहीं ये मैने कब कहा मौसी। कमाता है लेकिन, अब रोज-रोज तो छात्रवृति का इनाम नहीं जीत सकता है ना? साल में एक ही बार तो मिलता है।
मौसी : हें !! एक ही बार मिलता है?
मैं : हां, मौसी, ये कम्बख्त कंप्यूटर चीज ही ऐसी है, अब मैं VIT में टाप करने के बारे में क्या कहूं।
मौसी : हें, राम-राम !!! तो क्या वो VIT में पढता है?
मैं : छी! छी! छी! मौसी, वो और पढता है?? ना ना, वो तो बहुत अच्छा और नेक लड़का है। लेकिन मौसी, एक बार कोई सुंदर क्लासमेट मिल जाये ना फिर अच्छे-बुरे का कहां होश रहता है। हाथ पकड़कर बैठा लिया किसी कन्या ने पढने के लिये। अब इसमें बेचारे चंदन का क्या दोष।
मौसी : ठीक कहते हो बेटा, VITian वो, क्लास टापर वो, लेकिन उसका कोई दोष नहीं है।
मैं : मौसी आप तो मेरे दोस्त को गलत समझ रही हैं, वो तो इतना सीधा और भोला है, अरे बसंती से उसकी शादी करके तो देखिये। ये स्टुडेंट गिरी और क्लास में टाप करने कि आदत, सब खत्म हो जायेगा।
मौसी : अरे बेटा, मुझ बुढिया को समझा रहे हो?? ये पढने कि और क्लास में टाप करने की आदत किसी की छुटी है आज तक?
मैं : मौसी, आप चंदन को नहीं जानती। विश्वास कीजिये वो इस तरह का लड़का नहीं है। एक बार शादी हो गयी तो उस बैंगलोर वाली से चैट करना भी बंद कर देगा, बस चैटिंग की आदत अपने आप छूट जायेगी।
मौसी : हाये हाये !!! बस यही एक कमी रह गयी ती? वो क्या किसी बैंगलोर वाली से चैट भी करता है?
मैं : तो इस में कौन सी बुरी बात है मौसी? अरे, चैटिंग-सैटिंग तो राजा-महाराजा, उंचे-उंचे खानदान के लोग करते हैं।
मौसी : अच्छा!! तो बेटा ये भी बताते जाओ की तुम्हारा ये गुणवान दोस्त किस शहर में पढता है?
मैं : बस मौसी, VIT Vellore का पता मिलते ही हम आपको खबर कर देंगे।
मौसी : एक बात की दाद दूंगी बेटा, भले सौ बुराइयाँ हैं तुम्हारे दोस्त में, फिर भी तुम्हारे मूंह से उसके लिये तारीफ ही निकलती है।
मैं : हा हा (हल्का मुस्कुराते हुये), क्या करूं मौसी, मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है।
ये सारी चीजें मैंने चंदन के लिये तब लिखी थी जब मैं कालेज में था और इसे लिखने का प्रेरणा श्रोत और्कुट था। आज चंदन छात्रवृति नहीं पा रहा है, बल्कि नौकरी कर रहा है और वो भी एक अच्छे कंपनी में। पैसा भी अच्छा कमा रहा है, मगर बेचारे को बसंती अभी तक नहीं मिली है। इसके पास काम से इतना समय भी नहीं रहता है कि ये किसी से भी चैट कर सके, मगर फिर भी मौसी का दिल नहीं पसीजता। अब आप लोग् ही मौसी से आग्रह करें, शायद आपकी दुआ ही रंग ला दे। :)