Sunday, June 10, 2007

कालिज की यादें

बडे उतावले थे यहा से जाने को,
ज़िन्दगी का अगला पडाव पाने को...
पर ना जाने क्यो..
दिल मे आज कुछ और आता है,
वक्त को रोकने को जी चाहता है.
जिन बातो को लेकर रोते थे,
आज उन पर हसी आती है...
ना जाने क्यो आज उन पलो कि याद बहुत आती है...
कहा करता था...
बडी मुश्किल से तीन साल सह गया,
पर आज क्यो लगता है कि कुछ पीछे रह गया...
कही-अनकही हजारों बातें रह गई,
ना भूलने वाली कुछ यादें रह गई...
मेरी टांग अब कौन खीचा करेगा,
सिर्फ़ मेरा सिर खाने कौन मेरा पीछा करेगा...
जहां २००० का हिसाब नहीं वहा २ रूपये के लिये कौन लडेगा,
कौन रात भर साथ जग कर पढेगा...
कौन मेरी सामान मुझसे पूछे बिना ले जायेगा,
कौन मेरे नये नये नाम बनायेगा...
मै अब बिना मतलब किस से लडूगा,
बिना topic के किस से फ़ालतू बात करूगा...
कौन Fail होने पर दिलासा दिलायेगा,
कौन गलती से Number आने पर गालियां सुनायेगा...
ऐसे दोस्त कहा मिलेंगे,
जो खाई मे भी धक्का दे आये,
पर फिर तुम्हे बचाने खुद भी कूद जाये...
मेरे गानो से परेशान कौन होगा,
कभी मुझे किसी लडकी से बात करते देख हैरान कौन होगा...
कौन कहेगा साले तेरे जोक पर हंसी नहीं आई,
कौन पीछे से बुला के कहेगा... "आगे देख भाई..."
Movies मै किसके साथ देखूगा,
किसके साथ Boring Lectures झेलून्गा...
मेरे फ़रजि Certificates को रद्दि केहने कि हिम्म्त कौन करेगा,
बिना डरे सच्ची राय देने कि हिम्म्त कौन करेगा...
Stage पर अब किस के साथ जाऊगा,
Juniors को फ़ालतु के Lectures कैसे सुनाऊगा...
अचानक बिन मतलब के किसी को भी देख कर पागलो कि तरह हंसना,
ना जाने ये फ़िर कब होगा
कह दो दोस्तो ये दुबारा से सब होगा?
दोस्तो के लिये Professor से कब लड पायेंगे,
क्या हम फिर ये कर पायेंगे...
रात को २ बजे पोहा खाने कौन जायेगा,
तेज गाड़ी चलाने कि शर्त कौन लगायेगा...
कौन मुझे मेरी काबिलीयत पर भरोसा दिलायेगा,
और ज्यादा हवा मे उड्ने पर जमीन पे लायेगा...
मेरी खुशी मे सच मे खुश कौन होगा,
मेरे गम मे मुझ से ज्यादा दुःखी कौन होगा...
मेरी ये कविता कौन पढेगा,
कौन इसे सच में समझेगा...
बहुत कुछ लिख्नना अभी बाकी है,
कुछ साथ शायद बाकी है...
बस एक बात से डर लगता है,
हम अजनबी ना बन जाये दोस्तो...
जिन्दगी के रंगों मे दोस्ती के रंग फ़िके ना पड जाये कहीं,
ऐसा ना हो दुसरे रिश्तो कि भीड़ मे दोस्ती दम तोड जाये...
जिन्दगी मे मिलने कि फ़रियाद करते रहना,
अगर ना मिल सके तो कम से कम याद करते रहना...
चाहे जितना हसो आज मुझ पर,
मै बुरा नहीं मानूगा,
इस हंसी को अपने दिल मे बसा लूगा,
और जब याद आयेगी तुम्हारी,
यही हंसी लेकर थोडा मुस्कुरा लूगा...

2 comments:

  1. Main baar-2 tumhari tarif karke thak chuki hoon but it's reality that like ur other poems this one is also very nice. Waise ise samajhne mein mujhe jyada dimag bhi nahi lagana pada . Main tumse hamesha kahti thi ki aisi poem likho.This one is really very-very gud. Just keep it up aur logon ka dimag khana kabhi mat band karna :D

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  2. अदभुत विचार!...कालिज के दूसरे साल में पढ़ते हुये मैं ये महसूस कर सकता हूँ की भविष्य में ऐसी भावनाओ से मेरा भी सामना होगा...और् निश्चय ही वो आसान ना होगा...
    जिन यादो का आपने ज़िक्र किया है,मेरा विद्यार्थी जीवन भी कुछ ऐसी ही यादें निरन्तर अर्जित कर रहा है....उमीद करता हूँ की इस proffesional जीवन में भी उन पलो को आप पुर्नजीवित कर पाये

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