खुल कर कहूँ तो मैंने तस्वीर देखने तक की जहमत नहीं उठायी थी उस समय तक. घर पर पूछा गया था की कैसी जीवनसाथी चाहिए, तो बस इतना ही कहा की अपना निर्णय खुद लेने वाली हो, बाकी और कुछ नहीं.. दोपहर होते-होते भाभी का फोन भी आ चुका था, चुहल करती हुई..मेरे ठंढे प्रतिक्रिया ने उनके जोश को भी ठंढा कर दिया. शाम होते-होते मम्मी ने अनुजा का नंबर मुझे मैसेज करते हुए बोली आज ही बात कर लेना. मुझे ख़ुशी सिर्फ एक ही बात की थी, घर में सभी खुश हैं....मगर अन्दर से आवाज सुनाई देती...'और तुम्हारी ख़ुशी'? तत्क्षण मैं पशोपेश में था, मुझे यह भी नहीं पता था की मैं खुश हूँ भी या नहीं. बाहरी तौर पर दोनों मित्रों पर अपनी ख़ुशी ही ज़ाहिर की, उनके बधाई को खुश हो कर स्वीकार भी किया...मगर खुद से पूछे गए इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था, क्या मैं वाकई खुश हूँ?
कुछ बातें समय पर छोड़ देना चाहिए. समय सही निर्णय लेता है. समय पर छोड़ी गई बातें अक्सर समयातीत हो जाती है. आज पुरे एक साल बाद अपने रिश्ते को पलट कर देखता हूँ तो वाकई हमारा रिश्ता समयातीत हो चुका है..आज इस रिश्ते के बिना मेरे अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा!! आज यही लगता है की तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ अनुजा...
उसी दिन मैंने उसे फोन किया, मन में चल रहे उथल-पुथल से उसकी ख़ुशी, एक अलग से अहसास को फीका नहीं करना चाहता था..पूरे उत्साह से फोन किया. उस दिन बात नहीं हुई, रास्ते में थी, और घर पहुँचते-पहुंचते देर रात हो चुकी थी उसे..अगले दिन बात हुई. एक साधारण सी मगर लम्बी बात..
एक मजेदार किस्सा याद आता है, दो-तीन दिनों बाद ही उसे कलकत्ता के दम-दम हवाई अड्डे से मेलबर्न के लिए हवाई जहाज पकड़ना था.. देर रात गए मैं उस समय अपने मित्र शिवेंद्र के घर पर था. उसी ने मेरा फोन लेकर अनुजा का नंबर घुमा दिया और मुझे फोन दे दिया. थोड़ी देर की बात के बाद फोन काटने के बाद अनुजा का एक छोटा सा मैसेज आया. "It was a bliss in solitude". शिवेंद्र ने दोस्त की भूमिका निभाते हुए फोन छिनकर मैसेज पढ़ा, उसका मतलब पूछा. मैंने कहा "एकांत में आनंदातिरेक होना"..शिवेंद्र फिर से इस हिंदी अनुवाद का मतलब पूछा..और मैं हँसते-हँसते दोहरा हो गया.. चिढाते हुए उसे बोला, "साले, ना हिंदी समझता है और ना अंग्रेजी"
बीते एक साल में कई लम्हें गुजरे..अधिकाँश ख़ुशी के, कुछ नोंक-झोंक के, तो कुछ लड़ाई के भी. ज़िन्दगी भी तो ऐसी ही कुछ है, खट्टी-मीट्ठी..एक स्वाद आखिर कब तक किसी के जबान पर चढ़ सकता है? एक स्वाद अक्सर बोरियत ही लाता है. एक स्वाद के तुरत बाद ही हम दुसरे स्वाद को चखना चाहते हैं...तुम्हारा इश्क़ जैसे डिनर के बाद डेजर्ट खाना.. तुम्हारा इश्क़ जैसे जून के महीने में तेज आंधी के साथ बारिश.. तुम्हारा इश्क़ जैसे पाला पड़ते दिनों में खिली हुई धूप.. तुम्हारा इश्क़ जैसे किसी बच्चे की मुस्कान.. तुम्हारा इश्क़ जैसे तीखा मशालेदार चाय..तुम्हारा इश्क़ जैसे तुम!!! सिर्फ तुम्हारे इश्क़ का स्वाद ही है जो तालू से चिपकी हुई है, और मन चाहता है जीवन भर चिपकी रहे....आमीन!!!
कुछ बातें सार्वजनिक रूप में सीधे तुमसे कहनी है अनुजा - जानती हो, पिछले आठ-दस सालों में मुझसे सबसे अच्छा साल चुनने को अगर कहा जाए तो यह यही बीता हुआ साल है. शायद इसलिए पता भी नहीं चला की कैसे एक साल गुजर गए! शुक्रिया मेरी ज़िन्दगी में आने के लिए.....