Tuesday, May 28, 2013

ज्वलंत समय में लिखना प्रेम कविता

1.
जब देश उबल रहा था
माओवादी हिंसा एवं
आदिवासियों पर हुए अत्याचार पर

मैं सोच रहा था कि लिखूँ
एक नितांत प्रेम में डूबी कविता!!

2.
बुद्धिजीवियों के विमर्श का शीर्ष बिंदू
जब थी सामाजिक समस्याएँ

तब मैं सोच रहा था लिखूँ
कुछ ऐसा जो छू ले तुम्हारे अंतर्मन को

3.
तथाकथित बुद्धिजीवी
जब लगे थे इस जुगत में
की कैसे साधा जाए अर्थ संबंधी
अपना नितांत स्वार्थ

मैं सोच रहा था लिखूँ कुछ ऐसा
कि तुम हो जाओ मेरी

4.
उस क्षण जब
आदिवासियों को माओवादी
और
माओवादियों को राजनितिज्ञ करार दिया गया था

मैं डूबा था
तुम्हारे प्रेम की बातों में

5.
उस वक़्त जब लोग प्रयत्नरत थे
बन्दूक की नाल से सत्ता की ओर

मैं प्रयत्नरत था प्रेम की ओर
और तोड़ने में वे सभी हिंसक
मानसिक हथियार

16 comments:

  1. रिएक्शन में हम फन्नी सेलेक्ट किये हैं....

    हाउ सिली ना !

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  2. और क्या...हमें दुनिया से क्या....???
    excellent.............

    अनु

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  3. प्रेम बहेगा, पर दोनों ओर से मन खुला हो।

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  4. मैं प्रयत्नरत था प्रेम की ओर
    और तोड़ने में वे सभी हिंसक
    मानसिक हथियार

    गज़ब की सोच

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  5. अगर अधिकतर लोग प्रेम की बातें कर रहे हों ऐसे में ... तो शायद ये सब हो ही नहीं ...
    हर ख्याल लाजवाब ...

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  6. Premi kee dunia to premika ke ird gird hi hoti hai

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  7. मैं प्रयत्नरत था प्रेम की ओर
    और तोड़ने में वे सभी हिंसक
    मानसिक हथियार
    ..प्रेम की भाषा समझ आ जाय तो फिर क्या कहने ..सब कुछ ठीक ठाक चलने लगता है ..
    बहुत बढ़िया चिंतन से भरी रचना

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  8. उस वक़्त जब लोग प्रयत्नरत थे
    बन्दूक की नाल से सत्ता की ओर

    मैं प्रयत्नरत था प्रेम की ओर
    और तोड़ने में वे सभी हिंसक
    मानसिक हथियार .लाजवाब ..

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  9. काश सब प्रेम कविता ही लिख लेते बंदूकें छोड़ कर!
    ढ़
    --
    थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!

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  10. prerak rachna hai...jo samaj ko aaina dikhati hai...bas ek nazar ka sawaal hai!

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  11. आपकी यह पोस्ट आज के (१३ अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - प्रियेसी पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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  12. ज्वलंत समय में लिखना प्रेम कविता...
    अद्भुत है यह, अत्यावश्यक है यह भी, कि स्थितियां परिस्थितियां हैं संज्ञान में फिर भी इस भयावह समय में इतनी उर्जा है कलम में कि वो लिख सकती है प्रेम!
    बहुत सुन्दर!

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  13. इन दिनों मैं विक्टर फ्रैंकल कि किताब " man's search for meaning" पढ़ रहा हूँ। ( http://en.wikipedia.org/wiki/Man's_Search_for_Meaning)

    ये किताब १९४० में यहूदी होलोकास्ट का वर्णन करती है। लेखक , जो कि पेशे से साइकेट्रिस्ट हैं, उन परिस्थितिओं में भी मानते हैं कि प्रेम ही मनुष्य जीवन को सार्थकता देता है।

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  14. सुंदर और महत्वपूर्ण कविता है। पर इस के हर पैरा पर नंबर क्यों डाले हैं?

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