Thursday, April 04, 2013

अतीतजीवी

ख़्वाब देखा था, ख़्वाब ही होगा शायद. अक्सर ख़्वाबों में कई दफ़े देखा है उनको अपने पास. बेहद क़रीब. इतना जैसे कि हाथ बढ़ाओ और उन्हें छू लो.

वो आये और आकर चले गए. ऐसे जैसे आये ही ना हों. मगर वो आये थे, इसका गवाह मेरे घर में बसे उनकी खुश्बू दे रहा है. ढेर सारे आशीर्वाद और ममत्व की खुश्बू. कुछ जूठे बर्तन, कुछ चाय के लिए लाया दूध, चायपत्ती कि एक डिब्बी जो अमूमन मेरे घर में नहीं रहती है, उनकी लायी कुछ मिठाइयाँ, चंद तस्वीरें जो मेरे कैमरे में बंद है, जाते समय उनके चेहरे कि मायूसी, जाते वक्त कि उनकी डबडबाई आँखें, पापा का लाल वाला चप्पल जो मेरे लिए छोड़ गए, उनके बिस्तर कि सिलवटें, घर में मौजूद मम्मी के कुछ लम्बे बाल....

कुछ कहते हुए पापा के चेहरे पर ख़ुशी बेसुमार थी. मुझे नहीं पता कि क्या कह रहे थे, मैं तो सिर्फ उनके चेहरे पर चढ़ते-उतरते भाव को ही देख रहा था. उनकी आँखें कभी छोटी, कभी बड़ी हो रही थी. हल्के झुर्रियों वाले चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे. अकचका कर अचानक वो मुझसे पूछते हैं, क्या देख रहे हो? मुझे खुद नहीं पता कि मैं क्या देख रहा था. बस मुस्कुरा भर दिया. होली का पर्व तो बीत चुका था, उल्लास का पर्व अब मनाया जा रहा था. देखा कि उनके गले के पास वाला वो काला मस्सा अभी भी वैसा ही है.

मम्मी के बालों को देखा, जो सामने से अब लम्बे हो गए थे. चेहरे पर कि मांसपेशियां जो पहले तनी रहती थी, अब ढुलक चुकी हैं. पहले तनाव में हमेशा दिखने वाले चेहरे पर अब हमेशा सौम्य सी मुस्कान दिखती रही. अभी बीते कुछ दिनों में अपने कुछ करीबी मित्रों की माँओं से मिलने का मौका मिला था, उन सबके बारे में सोचता हूँ. सब एक सी ही लगती प्रतीत होती हैं. लगता है जैसे एक उम्र के बाद सभी माँओं कि शक्लें एक सी ही हो जाती है. वही वात्सल्य भाव से सराबोर.

पहली रात खाना खाने के बाद पापा/मम्मी को किचेन के सिंक कि ओर बढ़ते देख चिल्लाता हूँ, ऐसे ही रख दीजिये, मैं साफ़ कर दूंगा. वे भी सिर्फ "हूँ" कहकर सिंक में छोड़ दिए. अगली सुबह उनसे थोड़ी देर से जगा तो पाया कि सारे बर्तन साफ़ हैं. अगली रात सारे बर्तन साफ़ करके सोया.

पहली सुबह पापा के फोन से नींद खुली, पता चला कि कहीं गए थे सुबह-सुबह और रास्ता भटक गए. मैं और मम्मी देर तक इस पर हँसते रहे. वापस घर आकर पापा भी हँसते रहे. लगा जैसे पूरा घर खुश है, दीवार और खिड़की पर टंगे परदे भी हंस रहे थे. लगा जैसे घर मुझे घूर रहा है, इतने कहकहे उसने अभी तक एक साथ नहीं देखे थे कभी.

शाम में पापा को लेकर बैंगलोर कि कुछ गलियाँ, कुछ मौसम, कुछ फैशन दिखलाता रहा. उन्हें मेरी बाईक पर बैठने में डर लगता है, पीछे का सीट कुछ ऊंचा है किसी भी स्पोर्ट्स बाईक की तरह इसलिए. फिर भी बिना ना-नुकुर किये मेरे साथ भटकते रहे, इस भरोसे के साथ कि बेटे के साथ हूँ तो क्या डर? और मैं सोच रहा था बचपन से लेकर अभी तक मैं भी तो अपने हर डर पर उनके साथ इसी तरह काबू पाना सीखा हूँ. घर आया तो देखा घर कुछ अधिक व्यवस्थित है, मम्मी काफी कुछ ठीक कर रखी थी.

सोमवार कि सुबह साढ़े आठ बजे तब वे जा चुके थे. पीछे छोड़ गए थे ढेर साडी हिदायतें. ऐसी हिदायतें जिनकी या तो जरूरत नहीं थी, या फिर वे भी जानते थे कि मैं वे सब चीजें पहले से ही करता हूँ, और जो नहीं करता वो आगे भी नहीं करूँगा. मैं उन्हें टैक्सी में बिठा कर वापस आकर घर के हॉल में लगे कुर्सी पर बैठ निर्वात में ताकता रहा. साढ़े नौ बजे अपने तक उसी अवस्था में बैठा सोचता रहा कि क्या वे वाकई यहाँ थे? फिर उठा बेमन से और वापस किसी यांत्रिक मानव कि तरह सारे कार्य करने लगा.

12 comments:

  1. mai abhi Mysore me hu Vatsal ke paas ....aise hi gujra pahla din ...jane ke baad aisa hi kuchh sochega wo bhi ... :-(

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    1. ऐसा ही होता है अर्चना जी. आप जैसा सोचेंगी वो भी मम्मी की ही सोच के आस-पास होगी. :(

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  2. आज की ब्लॉग बुलेटिन छत्रपति शिवाजी महाराज की जय - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. मेरे घर की दीवारें नहीं सुनती अब कहकहे वैसे, मेरी रसोई का चुल्हा अब भी उस चाय को तरसता है.
    एक ऐसा सपना याद करा दिया तुमने, जो अब पूरा होना संभव नहीं.

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  4. आपके पापा खुशकिस्मत हैं उन्हें इतना प्यार करने वाला बेटा मिला , पिता के लिए समर्पित यह पंक्तियाँ कभी लिखी थी ..

    अक्सर पेन पेन्सिल लेकर
    माँ कैसी थी ?चित्र बनाते,
    पापा इतना याद न आते
    पर जब आते, खूब रुलाते !
    उनके गले में,बाहें डाले,खूब झूलते , मेरे गीत !
    पिता की उंगली पकडे पकडे,चलाना सीखे मेरे गीत !

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  5. Maa papa bhi agali mulakaat tak yehi sochte honge " mera beta theek se to hai naa ?!!"

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  6. हर बार माता पिता के आने के बाद मन निश्चिन्त हो जाता है।

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  7. फिर भी बिना ना-नुकुर किये मेरे साथ भटकते रहे, इस भरोसे के साथ कि बेटे के साथ हूँ तो क्या डर? और मैं सोच रहा था बचपन से लेकर अभी तक मैं भी तो अपने हर डर पर उनके साथ इसी तरह काबू पाना सीखा हूँ...
    मन भीग सा गया पढ़ कर....

    अनु

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  8. Bahut kuch pichhe chhut rha hota h aur zindagi,ek behtar kal ke lie aage badh rhi hoti hai Aur Mata-pita apne bete ki behtri ke lie hi sochte hain.

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  9. ऐसे विज़िट्स सबके लिये बूस्टर का काम करते हैं, महसूस करते रहो अगली विज़िट तक।

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