Wednesday, August 01, 2012

अतीत का समय यात्री

हम मिले. पुराने दिनों को याद किया. मैंने उसके बेटे कि तस्वीरें देखी, उसने मेरे वर्तमान कि पूछ-ताछ की. सात-आठ मिनटों में हमने पिछले छः-सात सालों को समेटने की नाकाम कोशिश की.

- तुम मोटी हो गई हो!
- मम्मी जैसी हो गई हूँ ना? मम्मी बन भी तो गई हूँ.
और एक बेतक्कलुफ़ सी हंसी...

- तुम शादी कब कर रहे हो? बूढ़े हो जाओगे तब कोई शादी भी नहीं करेगी तुमसे..
मैं बस मुस्कुरा भर दिया... चार साल पहले कि हमारी बात याद आ गई, जब उसने यही सवाल पूछा था और मेरे यह कहने पर की "थोड़े पैसे तो जमा कर लूं" के जवाब में वह पलट कर बोली थी "बोल तो ऐसे रहे हो जैसे दुल्हन खरीदनी है तुम्हें"

हमें जनकपुरी मेट्रो स्टेशन में बैठने के लिए कोई जगह नहीं मिली थी, सो हम सीढियों पर ही बैठ गए थे...और वहाँ से गुजरने वाले मुसाफिरों की आँखों में चुभ भी रहे थे. कुछ हमारे बगल से बुदबुदाते हुए भी, हमें कोसते हुए, वहाँ से गुजरे....और हम बेपरवाह अपनी ही बातों में मगन.

- कैसा मेट्रो बनाई हो तुमलोग? देखो सीढी हिल रहा है!
लोगों के वहाँ से गुजरने से सीढियों में होने वाले कंपन को महसूस करते हुए मैंने उसे उलाहना दिया, सनद रहे की मेरी मित्र दिल्ली मेट्रो में ही उच्च पद पर आसीन है.
- अब क्या करें, ऐसा ही है..
आँखें नचाते हुए उसने ऐसे जवाब दिया कि मैं हंसने लगा..

- समय कैसे गुजर जाता है, लगता है कल की ही बात है और हम सीतामढ़ी में अपनी कॉलोनी में हंगामा मचाते फिरते थे..
- हाँ, और मैं तुमको एक रूपया दिया था...चुकिया वाली गुल्लक लाने के लिए.. जो तुम्हारे स्कूल वाले रास्ते में बिकता था.
- और मैं ले ली थी?
विस्मयकारी भाव चेहरे पर लाते हुए उसने पूछा
- हाँ...
- मैं भी ना..पता नहीं कैसे ले ली थी?
- लेकिन अगले दिन वापस कर दी थी..शायद आंटी डांटी होगी..
इस दफे दोनों ही साथ-साथ हँसे...

- पता है? मैं भी कार चलाना सीख ली..लेकिन अभी स्टेशन से घर तक पहुँचते-पहुँचते मैं पसीने से भींग जाती हूँ..
- कार में एसी नहीं है क्या?
- है ना...लेकिन सीसा चढा रहेगा तो हाथ निकाल कर "हटो-हटो" कैसे चिल्लायेंगे?
"हटो-हटो" कहते समय उसका हाथ भी ऐसे ही हिल रहा था जैसे सामने वाले कार को हटने के लिए बोल रही हो...
- साफ़-साफ़ बोल दो ना कि मेरे घर के आस-पास मत दिखना नहीं तो तुम्हारे एक्सीडेंट के जिम्मेदार हम नहीं होंगे.. इशारों में क्यों धमका रही हो?
फिर से एक हंसी..दोनों कि ही साथ-साथ..

फिर वो अपने घर के लिए निकल ली.. कुछ देर बार उसका एस.एम.एस. आया, "इतने दिनों बाद मिलकर लगा कि कुछ रिश्ते कभी नहीं बदलते. लगा कि तुम पूछोगे की इंस्टीट्यूट जाना है क्या? ऐसे ही रहना." मुझे सहसा याद हो आया, जब पटना में किन्हीं वजहों से लगभग सात-आठ महीने उसे रोजाना एल.एन.मिश्रा इंस्टीट्यूट उसे छोड़ने जाता था.. भले ही मुझे कितना भी जरूरी काम क्यों ना रहा हो, उसकी प्राथमिकता को बाद में रखकर.. मैंने जवाब में लिखा "कुछ चीजों को नहीं ही बदलना चाहिए"

कुछ लोगों से मिलते वक्त हम अपना चोंगा उतार कर मिलते हैं.. मगर ऐसे लोग जिंदगी में कम ही होते हैं... जिंदगी कि भी अपनी ही रफ़्तार होती है.. सामने देखो तो वक्त कटता नहीं रहता है, पीछे देखो तो वक्त मानो लाईट-स्पीड को भी मात देती दिखती है.. जनकपुरी पश्चिम मेट्रो स्टेशन से हम दोनों की ही मेट्रो अलग दिशाओं में भागती चली जा रही थी...
"27-July-2012"

11 comments:

  1. कुछ लोगों से मिलते वक्त हम अपना चोंगा उतार कर मिलते हैं.. मगर ऐसे लोग जिंदगी में कम ही होते हैं...
    कभी-२ नहीं भी होते... लेकिन अगर हों. तो जिन्दगी आसान हो जाती है...

    ReplyDelete
  2. प्यारी मुलाकात! सुन्दर लिखाई!

    ReplyDelete
  3. वाह...
    प्यारी मुलाक़ात....प्यारी पोस्ट....

    अनु

    ReplyDelete
  4. कुछ चीज़ों को सच ही नहीं बदलना चाहिए बाबू और उनमें सबसे ऊपर है बचपन की दोस्ती. मुझे सबसे ज्यादा अफ़सोस इसी बात का है कि मैं अपने बचपन के दोस्तों से उन्नाव छोड़ने के बाद दुबारा नहीं मिली. फेसबुक पर भी एक ही सहेली मिली बचपन की. मेरी सबसे प्यारी सहेली. उससे आमने-सामने मिलना बाकी है..
    बचपन के दोस्तों से मिलना सबसे हसीन होता है.

    ReplyDelete
  5. वाह पीडी भाई, काफी कुछ कह गए ख़ामोशी के साथ...
    ये पैसे जमा करने वाली बात बहुत करीब से कही गयी लगती है !!!

    ReplyDelete
  6. "कुछ लोगों से मिलते वक्त हम अपना चोंगा उतार कर मिलते हैं.." kismat vale hai aise log jinke jeevan me aise 1-2 log bhi hain to...sundar lekhani

    ReplyDelete
  7. भाव बने रहें..
    वैसे शादी कब कर रहे हैं..

    ReplyDelete
  8. मेरी मित्र का इस पोस्ट पर कमेन्ट - "achcha hai na..15 min me zindagi 8 saal pichche chali jaati hai.. when we were carefree, energetic..and had time for ourselves..now there is no time for ourslve becoz have to meet each obligation of being mother, wife, employee, home maker.....the duty list is endless......."

    ReplyDelete
  9. हाँ दोस्त बिलकुल नहीं बदलना चाहिए. पर ये हमारे बस में है की हम नहीं बदलें लेकिन सामने वाले का क्या जिसे तुम चाहते थे और जानते भी थे के ये तो बनी रहेगी पर वो भी बदल जाए तो क्या करे दोस्त.दुनिया में न ऐसा बहुत कुछ है जो की हमारे बस में नहीं और कभी कभी तो ये मलाल भी होता है की टाइम मशीन से पीछे जा कर सब कुछ बदल देता तो फिर ऐसी कोई उम्मीद ही बाकी नहीं रक् जाती.

    ReplyDelete
  10. प्यारी पोस्ट...कुछ बातें हमेशा साथ रहती हैं...

    ReplyDelete
  11. सही में "कुछ चीजों को नहीं ही बदलना चाहिए"...
    इस तेज रफ़्तार वाली जिंदगी में उन चीजों का होना....हमें इस दुनिया में होने का एहसास कराती है...|
    इस पोस्ट के आसान से दिखते शब्दों में आपने गहरे जज्बात खोल के रख दिए हैं...बहुत ही उम्दा |

    ReplyDelete