Friday, November 04, 2011

एक सफ़र और जिंदगी में - भाग १

दिनांक २३-११-२०११



अभी चेन्नई से दिल्ली जाने वाली हवाई जहाज में बैठा ये सोच रहा हूँ की दस महीने होने को आये हैं घर गए हुए और आज जाकर वह मौका मिला है जब बिना किसी को बताए जा रहा हूँ.. मगर जाने क्यों मन बेहद उदास सा हुआ जा रहा है.. इस उदासी की वज़ह भी पता नहीं.. हाँ यह तो यक़ीनन कह सकता हूँ की अवसाद कि कोई रेखा मन में कहीं नहीं है, मगर जितना उत्साह जरूरी है वह नहीं आ पा रहा है.. फिलहाल गाना सुनते हुए यह टाईप कर रहा हूँ जिसमें एक पंक्ति जो अभी चल रही है - "देखूं, चाहे जिसको, कुछ-कुछ तुझ सा दिखता क्यों है.. जानू, जानू ना मैं, तेरा मेरा रिश्ता क्यों है.. कैसे कहूँ, कितना बेचैन है दिल मेरा तेरे बिना.." शायद पिछले पांच-छः दिनों से ठीक से नींद पूरी नहीं कर पाया था इसलिए मन और शरीर दोनों ही थका हुआ सा है.. यही हो तो अधिक अच्छा हो.. खैर.. अभी तो सफ़र की शुरुवात हुई है, उम्मीद है यह जिंदगी के सफ़र सा मायूस सफ़र ना साबित हो.. आमीन!!!!!

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